जावित्री अस्पताल तथा टैस्ट ट्यूब बेबी सेण्टर, तेलीबाग, लखनऊ द्वारा प्रकाशित प्रचार सामगी में कहा गया कि वे 75,000/- रू0 के पैकेज में टैस्ट ट्यूब बेबी उपलब्ध कराऐंगे। इसको देखकर परिवादी सुशील कुमार अपनी पत्नी के लिए डॉ0 राजुल त्यागी से मिला जिन्होंने उसे विश्वास दिलाया कि टैस्ट ट्यूब तकनीक द्वारा बच्चा पैदा किया जा सकता है और उसको पंजीकृत किया। इसके पश्चात् विभिन्न प्रकार के परीक्षण करने के उपरान्त दिनांक 07-06-2016 को परिवादी की पत्नी श्रीमती इन्द्र कुमारी के यूटेरस में एम्ब्रियो को रखा गया और फिर उसे अस्पताल से छोड़ दिया गया।
समय-समय पर अल्ट्रा सोनोग्राफी यह जानने के लिए होती रही कि बच्चा गर्भ में कैसा है। इसके अतिरिक्त एण्टी स्केन, डबल मार्कर टैस्ट भी किया गया। जब बच्चा 13 सप्ताह का हो गया तब टीफा स्केन किया गया। 16 सप्ताह का गर्भ होने पर पुन: टीफा स्केन किया गया और बताया गया कि बच्चा स्वस्थ है और उसकी गर्दन, चेहरा,गला, हृदय, किडनी, लीवर, फैंफड़े और हड्डियॉं सामान्य हैं। इसी प्रकार 21 सप्ताह, 26 सप्ताह, 27 सप्ताह पर यह परीक्षण किया गया और गर्भ 31 सप्ताह का होने पर दिनांक 13-01-2017 को सीजेरियन आपरेशन के माध्यम से समय से पहले बच्चे का जन्म हुआ और तब देखा कि बच्चे के अन्दर कई तरह के दोष हैं।
डिलीवरी होते ही बच्चे को तुरन्त किंग जॉर्ज मेडिकल कालेज, लखनऊ में परीक्षण हेतु भेज दिया गया। बच्चे के शरीर में कई तरह की कमियॉं पाई गईं। उसके दोनों हाथों में प्लास्टर किया गया तथा एनोवेस्टीबुलर फिस्टुला सर्जरी भी की गई। परिवादी ने तब यह पाया कि उसके साथ छल हुआ है और बच्चा गर्भ में ही अपूर्ण और अविकसित था और उसमें कई तरह की कमियॉं थीं लेकिन विपक्षी डॉक्टर ने इस बारे में उन्हें नहीं बताया तब उसके द्वारा विपक्षी के विरूद्ध राज्य उपभोक्ता आयोग, लखनऊ में परिवाद दायार किया गया।
राज्य उपभोक्ता आयोग के प्रिसाइडिंग जज श्री राजेन्द्र सिंह और सदस्य श्री विकास सक्सेना द्वारा इस परिवाद की सुनवाई की गई। निर्णय उदघोषित करते हुए प्रिसाइडिंग जज श्री राजेन्द्र सिंह ने कहा कि इस मामले में अल्ट्रा सोनोग्राफी, एण्टी स्केन, टीफा स्केन से गर्भधारण करने के 10 सप्ताह में यह ज्ञात हो जाता है कि गर्भ में पल रहे शिशु में क्या-क्या कमी हैं किन्तु इस मामले में विपक्षीगण जावित्री हास्पिटल और उसकी डॉक्टर श्री राजुल त्यागी ने परिवादी को बच्चे के शरीर की कमियों के बारे में कोई सूचना नहीं दी और यह कहती रहीं कि बच्चे का हर अंग सामान्य है और बच्चा स्वस्थ है।
जावित्री अस्पताल की वेबसाइट पर यह देखने को मिला कि टैस्ट ट्यूब बेबी की सफलता की दर 80 प्रतिशत है जबकि उनके द्वारा बताया गया था कि सफलता की दर 20 से 25 प्रतिशत होती है। राज्य आयोग ने पक्षकारों को सुनने के उपरान्त परीक्षण रिपोर्टों को देखा और यह पाया कि विपक्षी को 10 सप्ताह में ही मालूम हो गया था कि बच्चे के शरीर में कई तरह की कमियॉं हैं लेकिन इनको बताया नहीं गया और बच्चे की सीजेरियन डिलीवरी करवाई गई और फिर बच्चे को किंग जॉर्ज मेडिकल कालेज, लखनऊ में भेज बदया गया जिससे यह स्पष्ट हुआ कि इस अस्पताल में दी जाने वाली सुविधाओं का अत्यन्त अभाव है।
समस्त तथ्यों और साक्ष्यों को देखने के उपरान्त राज्य उपभोक्ता आयोग ने पाया कि विपक्षी की सेवा में कमी है और विपक्षी द्वारा इस मामले में घोर लापरवाही प्रदर्शित की गई है।
राज्य उपभोक्ता आयोग ने विपक्षी को आदेश दिया कि वह परिवादी को 57,55,000/- रू0 क्षतिपूर्ति और हर्जाना, चिकित्सा में लापरवाही, भविष्य के इलाज के लिए खर्च, वाद व्यय, मानसिक उत्पीड़न, शारीरिक कष्ट, अवसाद आदि के मद में प्रदान करे और कहा कि इस पर दिनांक 11-01-2017 से 10 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज भी अदा करे और इसका भुगतान इस निर्णय के 45 दिन के अन्दर किया जाए अन्यथा ब्याज की दर 15 प्रतिशत वार्षिक होगी जो दिनांक 11-01-2017 से अन्तिम भुगतान की तिथि तक देय होगा। आयोग ने यह भी आदेश दिया कि यदि इस निर्णय का अनुपालन 45 दिन में नहीं किया जाता है तब परिवादी को यह अधिकार होगा कि वह विपक्षी के विरूद्ध उनके खर्चे पर निष्पादन कार्यवाही न्यायालय में आरम्भ करे।