अर्नब गोस्वामी पत्रकारिता छोड़ने का फैसला कर चुके थे, मुंबई ने उन्हें रोक लिया!

Share the news

Nadim S. Akhter :  Times Now वाले अर्नब गोस्वामी को मैं पसंद करता हूं. आप उन्हें अच्छा कहें या बुरा कहें या जो कहें, मुझे लगता है कि तमाम सीमाओं के बावजूद (एक बार फिर दोहरा रहा हूं, बाजार और सियासत की तमाम सीमाओं के बावजूद) वो अपना काम शिद्दत से कर रहे हैं. हां, अफसोस तब होता है जब रवीश कुमार के अलावा हिंदी चैनलों में मुझे अर्नब जैसा passionate एक भी पत्रकार नहीं दिखता.

अर्नब मुझे पसंद हैं क्योंकि मुझे उनमें FIRE दिखता है जो कि पत्रकारिता के लिए बहुत जरूरी है. हालांकि मुझे भी मेरे कई बॉसेज कह चुके हैं कि तुममें बहुत FIRE है, संभल कर, कहीं अपना हाथ ही ना जला बैठो लेकिन मुझ जैसे “FIRE PERSONALITY” (अपने मुंह मियां मिट्ठू भी समझ सकते हैं) को भी जब अर्नब में आग दिखती है तो या तो ये मेरी समझ बहुत कम है या फिर ये एक सच्चाई है. खैर, अभी अर्नब का एक लंबा भाषण सुना, जिसमें उन्होंने अपने पत्रकारीय जीवन के कुछ -राज- खोले और पत्रकारिता पर अपने विजन की चर्चा की. सोचा कि आप लोगों से भी शेयर करूं. तो पहली बात ये कि

1. अर्नब गोस्वामी ने वर्ष 2003 में पत्रकारिता छोड़ने का फैसला कर लिया था लेकिन Times Group के मालिकों ने जब उन्हें चैनल लॉन्च करने के लिए मुंबई में समुद्र किनारे टहलते हुए उन्होंने अपना फैसला बदल दिया.

2. अर्नब मुंबई को देश का मीडिया हब बनाना चाहते हैं यानि नोएडा की फिल्म सिटी को खाली करके सारा तामझाम मुंबई में शिफ्ट कराना चाहते हैं.

3. उनके अनुसार मुंबई से पत्रकारिता ईमानदारी से की जा सकती है क्योंकि तब आप दिल्ली के नेताओं को टाल सकते हैं और फालतू की चमचागीरी-सोशल सर्कल को avoid कर अपना पूरा फोकस खबर के कंटेंट और उसकी निष्पक्षता पर लगा सकते हैं.

4. अर्नब आज जो कुछ भी हैं, सिर्फ और सिर्फ मुंबई शहर की वजह से हैं. अगर ये शहर ना होता तो आज अर्नब गोस्वामी भी ना होते….

5. एक सबसे महत्वपूर्ण बात, जो मुझे खटक रही है, वो ये कि अर्नब पत्रकारिता के बेसिक उसूल यानी basic principle को बदलना चाहते हैं. संभव हो तो उसे जमीन में दफ्न करना चाहते हैं. और ये मूलभूत सिद्धांत है खबरों में Objectivity यानी निष्पक्षता बनाए रखने का यानी खबर में views, opinions या विचार मिक्स नहीं करने का.

अर्नब कहते हैं कि मुंबई में हुए आतंकवादी हमले के बाद उन्होंने दिल्ली में सीखा ये उसूल हमेशा के लिए दफ्न कर दिया है. उनके अनुसार पत्रकार अगर सही-गलत के बीच में खड़ा होकर ये कहे कि मैं तो सिर्फ फैक्ट बताऊंगा, बाकी पाठक-दर्शक पर छोड़ दूंगा तो वह अपने पेशे से न्याय नहीं कर रहा है. पत्रकार को स्टैंड तो लेना ही होगा और वो लेते हैं. अर्नब के अनुसार पत्रकारिता में इस बदलाव की बहुत जरूरत है और news के साथ reporter का view दिखाना जरूरी है.

अब सोचिए कि अगर संघ या कांग्रेस या वाम समर्थक कोई पत्रकार अपनी खबर में view दिखाने लगे, स्टोरी प्लांट करने लगे तो भारत की पत्रकारिता किस ओर जाएगी?? मुझे लगता है कि समान्य परिस्थितयों में पत्रकार को -विचार- बताने से अलग ही रखना चाहिए. हां, जैसे मुंबई हमले के समय भी क्योंकि ऐसा ना हो कि -देशभक्ति- के चक्कर में आपकी किसी खबर से किसी का ऐसा बुरा हो कि उसका पूरा जीवन ही बर्बाद हो जाए. खैर ये डिबेट का विषय तो है ही.

और आखिरी बात जो अर्नब ने कही. वो ये कि मुंबई से जल्द दी दुनिया को बीबीसी और सीएनएन को टक्कर देने वाला एक हिन्दुस्तानी अंग्रेजी चैनल मिलने वाला है. और हम दुनिया भर में टीवी न्यूज इंडस्ट्री की परिभाषा बदल कर रख देंगे.

खैर, पूरे भाषण के दौरान कुछ कर गुजरने की अर्नब की छटपटाहट मुझे अच्छी लगी. यही तो है अर्नब की कामयाबी का राज

नोटः पत्रकारिता के विद्यार्थियों (जो हम सब आज भी हैं) को अर्नब का ये लम्बा भाषण जरूर सुनना चाहिए क्योंकि यह उनका News Hour शो नहीं है. इससे आप को पता चलेगा कि अर्नब ऐसे क्यों हैं और टाइम्स नाऊ ऐसा क्यों है.

और एक सवाल मेरे मन में भी है. क्या हम हिंदी में भी टाइम्स नाऊ के तेवर और कलेवर वाला चैनल ला सकते हैं. अगर हां, तो उस दिन देश के टेलिविजन इतिहास में एक नई क्रांति का जन्म होगा.

देखिए, अर्नब का पूरा भाषण.

https://www.youtube.com/watch?v=JBV_FK_x7t8

युवा और तेज-तर्रार पत्रकार नदीम एस. अख्तर के फेसबुक वॉल से. नदीम कई अखबारों और न्यूज चैनलों में वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके हैं.



भड़ास का ऐसे करें भला- Donate

भड़ास वाट्सएप नंबर- 7678515849



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *