पत्रकार और शिक्षक नदीम एस. अख्तर ने लांच की रीयल इस्टेट कंपनी

Nadim S. Akhter : आप सभी दोस्तों एवं शुभचिंतकों को सूचित करना चाहता हूं कि मैंने Real Estate की एक कम्पनी बना ली है और इसका नाम रखा है–वास्तोस्पति (VASTOSPATI). यह नाम मैंने ऋग्वेद से लिया है. कुछ वक्त पहले ही मैंने फेसबुक के इस मंच पर कहा था कि अब वक्त आ गया है कि मैं पढ़ने-पढ़ाने और लिखने से जुदा कोई अलग रास्ता बनाऊं. पहले भारतीय नौ सेना की नौकरी छोड़ी, फिर सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनते-बनते IIMC आ गया और पत्रकारिता में रम गया. फिर एक और पड़ाव आया जब मैं पत्रकारिता पढ़ाने IIMC के Radio and Television Department में आ गया. लगभग 15 साल के इस कैरियर में जीवन के बहुत उतार-चढ़ाव देखे. अपनों को दूर जाते देखा और परायों को अपना बनते देखा. इस छोटी उम्र में ही जीवन के कई रंग देख लिए. सबको आजमा लिया-समझ लिया. फिर मन बनाया कि कुछ अपना करते हैं. कई जगह दिमाग लगाया कि क्या किया जाए. E-commerce से लेकर सब्जी बेचने तक के धंधे को टारगेट में लिया लेकिन finally रीयल इस्टेट का बिजनेस मुझे भाया. वैसे E-commerce का धंधा भी मेरे राडार में है क्योंकि मैंने वर्ष 1998 में पटना में उस वक्त इंटरनेट के माध्यम से लड़का-लड़की ढूंढने का (Shaadi.com टाइप) आइडिया बताया था, जब ऐसी कोई वेबसाइट भारतीय बाजार में उपलब्ध नहीं थी और उस वक्त भारत में इंटरनेट बहुत-बहुत नया था. खैर.

आपके एक और भारत रत्न हैं, जिनके पास संसद के लिए नहीं, लेकिन फेरारी कार की रेस के लिए वक्त होता है!

Nadim S. Akhter : कांग्रेस बीजेपी लेफ्ट राइट समाजवाद जनतावाद आमवाद और सारे वाद वाली पार्टियों ! जिस तरह भगवान, इंसान के चढ़ावे का मोहताज नहीं, आपके शिरनी-लड्डू-सोने के आभूषण-हलवे और फलों के प्रसाद का इच्छुक नहीं, उन्हें इसकी चाह नहीं-परवाह नहीं, ठीक उसी तरह… हमारे देश की महान विभूतियां तुम्हारे यानी राजसत्ता (जब तुम लोग इस पर काबिज होते हो) द्वारा प्रदत्त सम्मानों-पुरस्कारों-अलंकरणों की भूखी नहीं, उन्हें इसकी दरकार नहीं, जरूरत नहीं. वे जनता के दिल में हैं. वे देश के इतिहास में हैं. इतिहास लिखा जाएगा, फिर मिटा दिया जाएगा. फिर लिखा जाएगा और फिर बदल दिया जाएगा. फिर लिखा जाएगा और फिर ऐसी ही कोई कोशिश होगी…

सम्पादक जी, ये तो ना करिए, ये देश आपका ऋणी रहेगा

चिंता मत करिए. -अच्छे दिन- आ गए हैं. क्या यूपी, क्या एमपी और क्या दिल्ली और क्या भारत-क्या इंडिया…ऐसे -अच्छे दिनों- की ख्वाहिश इस देश की जनता ने तो नहीं ही की थी. फिर ये किसके अच्छे दिन हैं?? फैसला आप कीजिए.

अर्नब गोस्वामी पत्रकारिता छोड़ने का फैसला कर चुके थे, मुंबई ने उन्हें रोक लिया!

Nadim S. Akhter :  Times Now वाले अर्नब गोस्वामी को मैं पसंद करता हूं. आप उन्हें अच्छा कहें या बुरा कहें या जो कहें, मुझे लगता है कि तमाम सीमाओं के बावजूद (एक बार फिर दोहरा रहा हूं, बाजार और सियासत की तमाम सीमाओं के बावजूद) वो अपना काम शिद्दत से कर रहे हैं. हां, अफसोस तब होता है जब रवीश कुमार के अलावा हिंदी चैनलों में मुझे अर्नब जैसा passionate एक भी पत्रकार नहीं दिखता.