अरुण श्रीवास्तव-
चूंकि कि मैं कानून का ज्ञाता नहीं इसलिए कानून की बारीकियां भी नहीं पता। पर सब कुछ कानून के नजरिए से तय नहीं होता। हमारा अपना भी नज़रिया होता है फिर इस देश का संविधान कानून और सरकार हर नागरिक को समीक्षा/आलोचना का अधिकार देती है और अदालतें भी। आखिर इसी अधिकार के तहत ही तो देश ने भगतसिंह और उनके साथियों को फांसी दिए जाने के लिए ब्रिटिश हुकूमत की खिलाफत की थी। जब ब्रिटिश हुकूमत के समय उसके अदालती फैसलों की निंदा की जा सकती है तो भारतीय संसद द्वारा पारित किए गए काले कानून की भी निंदा की जा सकती है। शायद इसीलिए कानूनन जज की नहीं जज के फैसले की आलोचना/समीक्षा की जा सकती है।
आज संविधान की धारा 370 पर पर देश की सर्वोच्च अदालत ने फैसला दिया। मेरे विचार से यह सर्वोच्च न्यायालय उसी तरह का फैसला है जो बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि के विषय में दिया गया था। क्योंकि यह विवाद आजादी के पहले से चला आ रहा था इसलिए इस पर एक फैसला आना जरूरी था हिंदुओं के पक्ष में मंदिर का फैसला आया तो मुसलमानों के पक्ष में एक मस्जिद बनाने का फैसला दिया गया। फैसला और न्याय में अंतर होता है। फिर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कुछ फैसले जन दबाव में भी लेने पड़ते हैं।
जैसा कि पहले ही कह चुका हूँ कि मैं संविधान का ज्ञाता नहीं हूं इसलिए धारा 370 पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को न्याय नहीं मानता। आजादी के बाद की स्थिति बिल्कुल इससे अलग थी अगर इतिहास में जाएं तो इस तरह के दो-तीन मामले देखने को मिलेंगे जैसे हैदराबाद की आबादी हिंदू बहुल थी और वहां का शासक मुस्लिम था कुछ इस तरह से जम्मू कश्मीर का शासक हिंदू था किंतु अधिकांश जनता मुसलमान थी। इसी प्रकार का मामला जूनागढ़ का था। 15 अगस्त 1947 से पहले ये तीनों रियासतें भारत में मिलना नहीं चाहतीं थीं। हैदराबाद और जूनागढ़ का विवाद तो धीरे-धीरे समाप्त हो गया किंतु जम्मू-कश्मीर की सीमा अन्य देशों से मिलती थीं इसलिए विलय के बाद भी समस्या का समाधान नहीं हुआ।
विलय के लिए विलय के समय उस समय की सत्ता ने, शासकों ने तत्कालीन राजा से कुछ वादे किए थे या यूं कहें कि उनकी शर्तें मानीं थीं। मानना मजबूरी भी थी क्योंकि उसे भारत में शामिल कराना था। यहां यह भी ध्यान देने वाली बात है कि इस तरह की स्थितियां हैदराबाद और जूनागढ़ के साथ नहीं थी।
जिस की सुविधाएं जम्मू-कश्मीर को धारा 370 के तहत दी गई थी ठीक उस तरह की या उससे मिलती-जुलती (कम ज्यादा) पूर्वोत्तर राज्यों को मिली हुई हैं। अगर इस प्रदेश के बाहर रहने वाला व्यक्ति यहां जमीन नहीं खरीद सकता तो हिमाचल के बाहर रहने वाला व्यक्ति भी हिमाचल प्रदेश में जमीन नहीं खरीद सकता। यहीं पर एक बात और प्रचारित की जाती है कि जब एक देश है तो एक संविधान होना चाहिए। इस तरह की बातें उस विचारधारा को मानने वाले कर रहे हैं लंबे समय तक जिनका कोई संविधान ही नहीं था। फिर ऐसे देशों की संख्या भी अच्छी खासी है जिनका कोई लिखित संविधान नहीं है। तो क्या वो देश एक नहीं हैं।
यही हाल रहा तो कल को ऐसे लोग कहेंगे कि एक देश है तो झंडा भी एक होना चाहिए। चलिए यह बात तो फिर भी समझ में आती है लेकिन अगर इस तरह का चलन बढ़ता गया तो ये बात भी उठने लगेगी कि एक देश एक भाषा होनी चाहिए, एक देश एक पहनावा होना चाहिए, खानपान भी एक जैसा होना चाहिए जैसा कि बीच-बीच में मुद्दा उठाया जाता है कि फलां समुदाय के लोग बीफ क्यों कहते हैं। या नवरात्रि में मांस नहीं बिकना चाहिए।
ध्यान देने वाली बात यह भी है कि अभी हाल ही में राजस्थान में भाजपा के एक विधायक चुनाव जीतने के कुछ ही देर बाद सड़क पर आ गए और नानवेज की ठेलियां हटवाने लगे। जबकि ये सब संविधानिक नहीं है।
देश का संविधान हर नागरिक को देश के किसी कोने में रहने बने और नौकरी करने की छूट देता है। अगर अब तक यह जम्मू-कश्मीर में नहीं था तो इसलिए कि इसे विशेष राज्य का दर्ज़ा विशेष परिस्थितियों के चलते हासिल था।
गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर इकलौता प्रदेश नहीं है। देश के कई राज्यों (पूर्वोत्तर) को कुछ विशेष सुविधाएं दी गई हैं। यहां यह भी बताते चलें कि जम्मू कश्मीर का संविधान या झंडा कभी भी भारत के संविधान और झंड़े से ऊपर नहीं रहा है। समय-समय पर जो भी बदलाव किए गए हैं उन्हें वहां की जनता ने स्वीकार किया था।
anu
December 12, 2023 at 2:14 pm
very true sir. jammu kashmir me 370 vivad me yeh to kehte hai ki waha jameen nahi kharidi ja sakthi to aisa to himachal me bhi hai. to kya himachal bhi desh se alag hai? yeh hamare desh ka durbhagya hai ki bjp isse jaise dikhana chah rahi hai desh wiase he usse dekh raha hai. khud social media ka istmaal karke 2 time jeetne wali bjp ki aur se modi keh rahe hain ki social media ke dwara bhramit nahi kiya ja sakta…BJP 2024 me na haari to desh khatam ho jayega aur jo log bjp ke paksh me hinduvaad ki baat karte hain unka kahi na kahi swarth juda hua hai.
Sudhir kumar chaudhary
December 16, 2023 at 8:56 am
This judgement is true. It is turning point for bharat.