-यशवन्त सिंह-
अरतुगुल ग़ाज़ी के पांचों सीजन देख गया। आखिरी पार्ट कल निपटाया। तुर्की के शासकों ने इस्लामिक प्रोपेगैंडा के मक़सद से इसे बनवाया है। बहुत कुछ नाटकीय है। पर ये कहानी सच है कि एक काई कबीले के लड़के ने ईमानदारी, साहस और बुद्धिमत्ता के बल पर तत्कालीन अशांत दुनिया के बड़े हिस्से को जीतकर अपने परचम तले लाने में कामयाबी हासिल की। फिर उर्तुगुल के बेटे ओस्मान ने जीत का दायरा वैश्विक कर दिया। यूरोप से लेकर एशिया तक। यह तुर्की का स्वर्ण काल था। उसी सुनहरे दौर की विजय गाथाओं के बहाने इस्लाम और तुर्की की महानता की गाथा इस वेब सीरिज में है।
मुझे इतिहास से जुड़ी वेब सीरीज देखने में आनन्द आता है। साढ़े चार सौ पार्ट के लगभग देखना कोई छोटा काम न था, वो भी ओरिजिनल तुर्किश लैंग्वेज में, अंग्रेजी सब टाइटिल्स के सहारे। तुर्किश के बहुत सारे शब्द हम लोग बोलते हैं। मासूम, तिजारत, आला…! करीब पचासों शब्द निकलेंगे।
उस दौर में केवल तलवार था। बेइमानों की दुनिया में ईमान वाले का जीना मुश्किल था। लेकिन उर्तुगुल ने इस्लाम का सच्चा अनुयायी बनकर निजी और सार्वजनिक जीवन में जो प्रतिमान स्थापित किया, उससे उनके फॉलोवर्स की संख्या बढ़ने लगी। तब का इस्लाम गरीबों-शोषितों के उद्धार करने के लिए तलवार उठाने का नाम था। अबका इस्लाम कार्टून कलाकारों के गर्दन उड़ाने के लिए चाकू छुरी तलवार उठाने को कहने लगा है।
तबके इस्लामी शासन में कलाकारों, विद्वानों को मिन्नत कर बुलाया बसाया जाता था, दूसरे धर्मों के लोगों को बराबरी से रहने, अपनी मर्जी से अपने तरीके से इबादत करने की छूट मिली हुई थी। अबका इस्लाम पूरी दुनिया से गैर-मुसलमानों का खात्मा कर सिर्फ इस्लामिक परचम शेष बचे रहने का ख्वाब देखता है। तबका इस्लाम प्रगतिशील था। अबका इस्लाम मनुष्यता विरोधी है।
तब कुछ न था, तलवारों के अलावा। सिर्फ तलवार, घोड़े और युद्ध थे।
अब सब है। एटम बम तक। पर लड़ाई प्रोपेगैंडा से लड़ी जा रही है।
जाहिल लोग फंसते जा रहे हैं। अपनी हरकतों से खुद को अलग थलग करते जा रहे हैं। चालाक यूरोपीय शासक अपनी शातिर चालों से ये मैसेज देने में कामयाब दिख रहे हैं कि इन जाहिलों की दुनिया सीमित कर दी जाए, इन्हें सभ्य देशों में रहने का हक़ नहीं है क्योंकि ये वहशियों की तरह दौड़ लगाते हुए यहां वहां चाकू छुरी चमकाते हैं।
एम्बुश है! ट्रैप है!
फंसते, धँसते जा रहे ही!
जितना नकारात्मक उछलकूद करोगे उतना एक्सपोज होगे। यही तो फ्रांस अमेरिका भारत आदि के शासक चाहते हैं।
सुन लो, धर्म मर चुके हैं। बस इनका कार्टून ही शेष है। धर्म के कार्टूनों को ढोया जा रहा है। तुम खुद कार्टून ढोते ढोते कार्टून बन गए हो, दुनिया की नज़रों में। तुम्हें अभी और उकसाया जाएगा। तुम अभी और गड्ढे में गिरोगे। तुमसे दुनिया नफरत करने लगेगी। तुम्हारी जाहिलियत की सजा तुम्हारी मासूम पीढियां पाने झेलने के लिए अभिशप्त होंगी।
पर तुम न समझोगे क्योंकि तुम अशिक्षित, जाहिल, धर्मांध, कट्टर, अवैज्ञानिक सोच वाले हो!
उर्तुगुल ग़ाज़ी उस जमाने का एक स्वर्णिम सच था।
लेकिन दुनिया भर में इस्लाम को लेकर फैली दुर्गंध आज का सच है।
इस आधुनिक सच को कोई वेब सीरीज पर ले आए तो हजार पार्ट भी कहानी कहने के लिए कम पड़ेंगे।
सभी धर्मों का नाश हो। खासकर दुनिया भर में फैले खून पीने वाले असभ्य बर्बर मज़हब का फौरन नाश हो!
इस्लाम के वैश्विक आतंक से मुक्ति के लिए सभी गैर इस्लामी देशों के बीच एका बनता दिख रहा है।
हमारे जैसे लोग भी इधर या उधर का पक्ष लेने को मजबूर किए जाएंगे।
युद्ध में कोई किंतु परन्तु नहीं होता। आपको एक पक्ष चुनना ही पड़ता है। भले ही वो युद्ध जनविरोधी और जबरन थोपा गया हो।
कलम-कूँची को तलवार से रौंदने वाले वहशी धर्म के साथ ये दुनिया न खड़ी होगी।
मैंने अपना स्टैंड ले लिया है। जिस तरह हिंदू कट्टरपंथियों की घटिया हरकतों के खिलाफ लड़ता लिखता रहा हूँ उससे ज्यादा अब मुसंघियों कठमुल्लों के खिलाफ लिखूंगा। ग्लोबल थ्रेट इस्लाम से है, हिन्दू धर्म से नहीं। सवाल बड़े वहशी का है। बड़े वहशी के रिएक्शन में, बड़े वहशी से मुकाबिल होने के लिए छोटे मोटे वहशी पैदा हो ही जाते हैं, होने भी चाहिए। यह क्रिया प्रतिक्रिया का नियम है।
आओ जाहिलों कठमुल्लों-मुसंघियों, नीचे कमेंट बॉक्स में आओ और इस्लाम को छोड़कर बाकी सभी टॉपिक पर कन्टेन्ट कॉपी पेस्ट करते जाओ। मेरे चरित्र हनन के लिए कुछ तस्वीरें, कुछ आरोप पेस्ट करते जाओ।
आज हम सबका धैर्य से पढ़ेंगे, फिर उनका जवाब कल देंगे। तुम्हारी जाहिलियत का जवाब हमारे कलम में है। तुम खुद को नंगा करवाओगे मुझसे!
भड़ास संस्थापक यशवन्त सिंह की एफबी वॉल से।
उपरोक्त एफबी पोस्ट पर आए कुछ कमेंट्स देखें-
हिंदू धर्म में अतिवाद एक्सेप्शन है, इस्लाम में यह मेन स्ट्रीम है!
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