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सियासत

क्या क्रिश्चियन कंट्रीज और इस्लामी देशों के बीच महायुद्ध होने वाला है?

-निशीथ जोशी-

जो कुछ हुआ वह फ्रांस में हुआ फिर भारत में सड़कों पर क्यों उतरा जा रहा है। यदि विरोध करना है माहौल खराब करना है फ्रांस जा कर करें। मुन्नवर राणा को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान, भारत से भाग कर मलेशिया में छिपे जाकिर नाइक और मलेशिया के पूर्व पीएम महातिर मोहम्मद के स्तर पर जाता देख बहुत दुख हुआ।

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सारी प्रगतिशीलता कहां चली गई। यही प्रगतिशीलता का असली चेहरा है। जबकि सऊदी अरब फ्रांस के साथ जा खड़ा हुआ है। सऊदी अरब ने नीस के नोट्रे_ डेम कैथेड्रल में आतंकी हमले की निन्दा की है। साथ ही कहा है कि ऐसे चरम पंथी हमलों को स्वीकार नहीं किया जा सकता जो सभी धर्मो और मानवीय विश्वासों के खिलाफ हैं। सऊदी अरब ने उस सभी प्रथाओं को खारिज करने के महत्व पर जोर दिया है जो घृणा, हिंसा और अतिवाद फैलाते हैं। साऊदी अरब के बोल तुर्की, पाकिस्तान, बांग्लादेश, कतर, ईरान, मलेशिया जैसे इस्लामिक देशों के ठीक विपरीत हैं।

इस्लाम का जन्म मक्का मदीना की धरती सऊदी अरब में हुआ था। सऊदी अरब से ही इस्लाम की धारा तय होती रही है। अब विश्व विश्व जब दो धड़ों में बंट रहा है तो कौन सऊदी अरब के साथ खड़ा होगा कौन विरोध में इस पर विश्व का भविष्य काफी हद तक तय होगा।

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विश्व के हालत उतने सहज नहीं हैं जैसे दिख रहे हैं। तूफान के पहले की शांति बड़े खतरे की आहट होती है। आइए दुआ करें कि इस्लामिक देशों और ईसाई देशों के बीच बढ़ वैमनस्य पर रोक लगे। वरना विश्व रक्त रंजित हो उठेगा।


-नदीम एस अख्तर-

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फ्रांस और तुर्की पे भाई लोग मुझे लिखने को कह रहे हैं, पर लिखने को नया क्या है? ईसाइयत और इस्लाम का टकराव होना है, होता आया है और आगे बहुत बड़े लेवल पर होगा। लड़ाई ये नहीं है कि लोकतंत्र है, आज़ादी है, फलना है या ढिमका है। ये सब ऊपरी बहाने हैं। अंदरखाने बात ये है कि इस दुनिया में किस मज़हब का राज अंतिम रूप से होगा? इस्लाम का या ईसाइयत का? देर-सबेर लोकतंत्र की खाल ओढ़े सारे मुल्क धर्म के झंडे तले अपने-अपने पाले में खड़े होंगे।

बात बहुत मामूली है। अगर कोई धर्म कहता है कि उसके पैगम्बर का कार्टून मत बनाओ क्योंकि यह उसके धर्म में हराम है तो तथाकथित प्रोग्रेसिव मुल्क उस धर्म और उसके अनुयायियों की आस्था का सम्मान क्यों नहीं करते? अगर कल को ईसाई कहें कि प्रभु यीसु का कार्टून ना बनाओ तो फिर दुनिया में कहीं भी उनका #कार्टून नहीं बनना चाहिए। ये अलग बात है कि यीसु की मूर्ति बनाकर वो उसे पूजते हैं और ईसा अलैह. इस्लाम के पैगम्बर हैं। सो मुसलमान उनकी भी ना कोई मूर्ति बना सकते हैं और ना कार्टून।

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ऐसा ही एक मसला भारत में भी आया था जब #एमएफहुसैन ने हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं की नग्न तस्वीरें बनाई थीं। नतीजतन उनको देश छोड़कर भागना पड़ा था। हुसैन को क्या हक था और ज़रूरत थी हिन्दू धर्म के देवताओं की नग्न तस्वीरें बनाने की, जिससे उनकी भावनाएं आहत होती थीं।

हमारे देश का सुप्रीमकोर्ट भी कह चुका है कि फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन absolute नहीं है और इसके साथ तमाम बंदिशें भी हैं। उसमें एक बात ये है कि आपके फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन से किसी की जायज़ भावनाएं आहत ना हों। तो क्या फ्रांस के राष्ट्रपति मेक्रों को ये बात पता नहीं? फिर वे पैगम्बर #मुहम्मद साहब का कार्टून बनवाने और दिखाने पे क्यों आमदा हैं? ये दुनिया में कहीं भी फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन नहीं है, ये गुंडई है, लुच्चई है, अभिव्यक्ति की आज़ादी की आड़ में धर्मयुद्ध की चाल है। वो तो इनकी किस्मत अच्छी है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद एक साजिश के तहत खिलाफत खत्म कर दी गई वरना खलीफा के एक हुक्म से दुनियाभर के इस्लामी मुल्क इसे धर्म युद्ध करार देकर फ्रांस पर आक्रमण कर देते। अब आपको समझ आया कि ईसाइयत ने इस्लामी दुनिया से खिलाफत खत्म क्यों की थी? यही दिन दिखाने के लिए। पर अबकी बार अमरीका का पिछलग्गू सऊदी अरब भी फ्रांस के खिलाफ बोला है। ये बहुत बड़ा शिफ्ट है, जिसके असरात अमरीकी चुनाव के बाद और दिखेंगे।

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रही भारत की बात तो यहां भी हिन्दू समुदाय के लोगों के विरोध के बाद अक्षय कुमार की एक आने वाली फिल्म का नाम बदलना पड़ा है। फ़िल्म का नाम था-लक्ष्मी बम। इस फ़िल्म के नाम पर आपत्ति थी ही, इसे लव जेहाद को बढ़ावा देने वाला भी बताया गया था।

तो दो बातें हैं।

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  1. अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पे किसी धर्म का अपमान करने की इजाज़त आपको नहीं मिल सकती और
  1. मेरा खून, खून और तेरा खून, पानी नहीं चलेगा। जो सूरमा भारत में बैठकर फ्रांस के राष्ट्रपति का साथ दे रहे हैं, उनको इस बात के लिए भी लड़ना चाहिए कि “लक्ष्मीबम” नाम में क्या बुरा है? क्यों नाम बदला जाना चाहिए?

और अगर आप इस बात पे राज़ी हैं कि लक्ष्मी बम नाम बदलकर सिर्फ -लक्ष्मी- करना बिल्कुल सही है तो फिर मेरे पहले पॉइंट पे आइए।Freedom Of Expression के नाम पे किसी भी धर्म के अनुयायियों की भावनाएं आहत नहीं होनी चाहिए।

रही ईसाइयत और इस्लाम के बीच आखिरी धर्म युद्ध की बात, तो दुनिया उसी ओर बढ़ रही है। ये वर्चस्व की लड़ाई है। राज़ कौन करेगा, इसकी खींचतान है। और जब ये अंतिम लड़ाई होगी तो दुनिया के दूसरे धर्म अपनी-अपनी सहूलियत के हिसाब से इन्हीं दो धर्मों के झंडे तले खड़े होंगे। यहूदी इज़राइल तो ईसाइयत के साथ खड़ा रहेगा, ये अभी से तय है। बाकी धर्म किधर खड़े रहेंगे, ये तब के हालात तय करेंगे।

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