-दीपांकर पटेल-
कभी-कभी सोचता हूं, सबको स्कूल में “कार्टून बनाने” का एक पेपर भी पढ़ा देना चाहिए.
कार्टून बनना/बनाना बहुत जरूरी है, रोज दो-चार भावनाओं को आहत करने वाला बना देना चाहिए,
ऐसा रोज रोज होने लगा तो कार्टून से भावनाएं आहत होनी बंद हो जाएंगी.
मेरी तो पेंटिंग बहुत ख़राब है खैर लेकिन जिनको भी ब्रश पकड़ना आता है, ना भी सीखा हो तो कूची चला ही देनी चाहिए.
सामूहिक मूर्खता के सुधार का उपाय भी सामूहिक होना चाहिए.
कितने सीने चाक करोगे…
-राहुल पांडेय-
कितने सीने चाक करोगे?
कितने पन्ने राख करोगे?
कलमों के कोरो से हम सब
हर सुबह नई बनाएंगे
यूं ही ना मिट पाएंगे
यूं ही ना मिट पाएंगे।
दस मारोगे, सौ आएंगे
बंदूकों से ना डर पाएंगे
नफरत जिससे तुम करते हो
प्रेम गीत वो हम गाएंगे
गीत हमारे गाने पर तुम
गोली से इंसाफ करोगे?
कितने सीने चाक करोगे?
कितने पन्ने राख करोगे?
पैगंबर की ध्वजा उठाकर
हरे रंग पर लहू बिछाकर
लाशों का अंबार लगाकर
कैसे खुद को माफ करोगे?
कितने सीने चाक करोगे?
कितने पन्ने राख करोगे?
हंस हंस के हम चलते हैं
तो दुनिया आगे बढ़ती है
हंसने पे गोली चलती है
तो दुनिया रंग बदलती है।
अब हंसी का तुम हिसाब करोगे?
कितने चेहरे खाक करोगे?
कितने पन्ने राख करोगे?
हो जाएगी दुनिया वीरानी
सांसे होंगी तब बेइमानी
ये नहीं तुम्हारी नादानी
अब पत्थर में जज्बात भरोगे?
कितने सीने चाक करोगे?
कितने पन्ने राख करोगे?
कितने सीने चाक करोगे?
कितने पन्ने राख करोगे?
कलमों के कोरो से हम सब
हर सुबह नई बनाएंगे
यूं ही ना मिट पाएंगे
यूं ही ना मिट पाएंगे।