Rajendra Tripathi : पुलिस ने मीडिया पर किया बर्बर लाठी चार्ज.. अभी कल ही मैने अपने फ़ेसबुक वॉल पर एक पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की बात आम की थी। एक बार फिर याद दिला देता हूँ। इस अधिकारी का कहना था कि पुलिस चौराहों पर दो काम करती है। पहला उगाही। दूसरा कुंठा में होने के कारण जनता से बदसलूकी। आज बीएचयू में हुई हिंसा में हमारे दो साथियों के साथ पुलिस की कुंठा ही सामने आई है। अमर उजाला के रिपोर्टर आलोक त्रिपाठी के सिर में गंभीर चोटें आई हैं। पुलिस ने परिचय देने के बाद भी उन पर बर्बरतापूर्वक लाठियाँ बरसाईं। इसी तरह फोटो जर्नलिस्ट धीरेंद्र कुमार जायसवाल भी शिकार हुए। सामने से आ रहे पत्थरों की तरफ़ इशारा कर के कहा – जाओ ….उधर जाकर फोटो लो, यहाँ हमारे पीछे क्यों खड़े हो। धीरेंद्र ने परिचय दिया, हाथ में कैमरा था पर उनके हाथ रुके नहीं। दोनों साथियों को रात में ही भेलूपुर के एक अस्पताल में ट्रीटमेंट कराया गया। पथराव में अमर उजाला के ही पुष्पेंद्र त्रिपाठी और फोटो जर्नलिस्ट जावेद अली और नरेंद्र यादव को पत्थर लगे हैं। अभी हाल ही में जस्टिस काटजू के हवाले एक मेसेज सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था कि बीएचयू जैसे हालातों की कवरेज करने वाले पत्रकारों के साथ सुरक्षा बल बदत्तमीजी ना करे। जस्टिस काटजू प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया के चैयरमैन रह चुके हैं। पुलिस ने बर्बरता का व्यवहार किया है। बताने के बावजूद दोनों के साथ हद दर्जे की बदसलूकी की….बर्बरता की है।
Shrikant Asthana : बीएचयू के वीसी, मुख्यमंत्री योगी, वाराणसी के सांसद और प्रधानमंत्री मोदी किसके रक्षक हैं और किसके भक्षक यह सबके सामने है। वे गुंडों और छेड़छाड़ करने वालों के प्ररतिनिधि और रक्षक हैं सुरक्षा की मांग कर रही अनशनरत लड़कियों को पीट रहे हैं। आप भी तय करिए कि आप किसके पक्ष में हैं। पिटने वाली लड़की आपकी या आपके ही किसी भाई की बेटी या बहन है। आप आततायियों से उसकी रक्षा नहीं करेंगे तो आप भी आततायियों के साथ खड़े हैं। अगर सत्ताधारी गुंडों और सत्ता की गुंडागर्दी के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकते, उनका विरोध करने से बचना चाहते हैं तो जान लीजिए आपका घर-आंगन भी असुरक्षित हो जाएगा। ये गुंडे आपकी बेटी-बीवी-बहू का मानमर्दन आपके घर में घुस कर करेंगे और आप रोने-बिलबिलाने या प्रतिक्रिया में अपराध की ओर जाने के सिवा कुछ नहीं कर पाएंगे। इस नवरात्र आदिशक्ति की पूजा का दिखावा छोड़िए, उनकी सजीव प्रतिमूर्तियों के साथ खड़े होकर राक्षसों के नाश में योगदान कीजिए।
Nitin Thakur : आज BHU की आंदोलनरत लड़कियों के लिए घटिया से घटिया बातें होता देख रहा हूं। उन पर लाठियां चलीं मगर कई लोग फिर भी चुप हैं। इनके लिए अपनी राजनीतिक निष्ठा सबसे ज़्यादा अहम है। आपको पहचानना होगा कि ये कौन हैं। इनकी चुप्पी दर्ज कर के रखिए। ये वही हैं जो पत्रकार गौरी लंकेश को रंडी, कुतिया और शूपर्णखा करार दिए जाने पर भी चुप थे। हत्या को जस्टिफाई तो खैर कर ही रहे थे। इनके चेहरे पहचानिए। ये आपकी लिस्ट में हैं। आप इन्हें भैया, दादा, अंकल, दोस्त कह कर पुकारती हैं। कुछ से आपकी प्रगाढ़ता इतनी है कि यहां से निकलकर असल जि़ंदगी में भी मुलाकात करती हैं। आज ये वक्त सचेत होने का है। भले ही आपसे ये लोग सभ्य तरीके से बात करते हों मगर BHU की छात्राओं पर लाठियां भांजने के वक्त सन्नाटा ओढ़ने की और एक निहत्थी बूढ़ी महिला की मौत को सेलिब्रेट करने की इनकी वो मानसिकता समझिए जो कल आप पर भी भारी पड़ सकती है। इसे किसी बौद्धिक विमर्श का भारी भरकम मामला मान कर कन्नी मत काटिए। मैंने कम कपड़ों में देर तक बाहर घूमनेवाली औरतों के बलात्कार की यहां पैरवी करनेवाले लोगों को घर की महिलाओं से मारपीट करते देखा है। अब समझिए कि जब ये लोग लड़कियों के हक मांगने या किसी औरत की हत्या को इसलिए सही ठहरा सकते हैं जो इनके रुझान से उलट बात करे तो किसी के रेप से ही इन्हें क्यों दिक्कत होगी। फैसला आपका है, आपको लिस्ट में कैसे तत्व रखने हैं ये आप देखिए, ये भी आप ही तय कीजिए कि इन लोगों से आपको कितनी करीबी रखनी है।
Harsh Vardhan Tripathi : जो छात्र राजनीति और छात्र संगठन से परिचित नहीं हैं। वे नहीं समझ सकेंगे और सरकार में पहुँचते ही हर किसी को छात्र हितों की बात करने वाले लफ़ंगों का समूह दिखने लगते हैं। लेकिन, छात्र राजनीति, आन्दोलन समझने वाले जानते है कि देश में हुए हर बदलाव की बुनियाद वहीं बनती है। छात्र आन्दोलन को अराजकता बताने वालों के लिए यही कहूँगा कि “अराजक छात्र” न हों, तो लोकतंत्र के तानाशाही में बदलने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगता। और #UnSafeBHU में पुलिस लाठीचार्ज आपको इसलिए जायज लग रहा है कि उसमें विरोधी राजनीतिक दल कूद पड़े हैं, तो आपकी बुद्धि की बलिहारी है। विरोधी राजनीतिक दल या छात्र संगठन बेवक़ूफ़ हैं अगर वो छात्रों के हक़ के किसी आन्दोलन को मज़बूत नहीं कर पा रहे हैं। ये पूरी तरह से बीएचयू प्रशासन और सरकार के ग़ैर ज़िम्मेदार रवैये की वजह से है। १९९६ से यहाँ छात्रसंघ नहीं है। होता, तो आज कुछ नेता होते, जिनसे बात की जा सकती। छात्र एकता ज़िन्दाबाद। देश का रास्ता तो छात्र राजनीति से ही तय होगा। भविष्य ही तय करेगा कि देश का भविष्य क्या होगा, कैसा होगा।
Gouri Nath : BHU में चाकरी कर रहे तथाकथित प्राध्यापकनुमा क़रीब एक दर्जन बेचारे आलोचकों, कवियों, लेखकों, संपादकों का फ़ेसबुक-वाल देखा। उनके वाल से BHU की अलग ही तस्वीर झलक रही है। कहीं शानदार कार्यक्रमों की भव्य तसवीरें हैं, कहीं आगामी आयोजन की पूर्व सूचना है, कहीं यात्राओं के ख़ुशनुमा अनुभव हैं। उनके अनुसार, BHU में पूरी तरह अमन-चैन है, लड़कियों के आंदोलनरत होने या उनके ऊपर पुलिसिया आतंकी हमले होने का कोई अनुमान भी नहीं लग रहा है। जय हो गुरु! तुम्हारी कोई बहन-बेटी नहीं होगी इस दुनिया में। सोचो गुरु, कि किस बेशर्मी से तुम लोग दशहरे के बाद इन लड़कियों से आँख मिलाकर बात करोगे?
सौजन्य : फेसबुक
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