अमित सिंह रघुवंशी : काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के इतिहास का काला अध्याय. 24 सितम्बर का दिन बीएचयू के 100 वर्षों के इतिहास में सबसे काला दिन के नाम से जाना जायेगा. तानाशाह कुलपति जी सी त्रिपाठी के दिशा निर्देश पर सबसे पहले त्रिवेणी संकुल में महिला वार्डेन द्वारा लड़कियों के साथ धक्का मुक्की की गई, उन्हें रोका गया. लड़कियां तथा कुछ लड़के जब कुलपति आवास पर गयी तो उन पर लाठी चार्ज किया गया, जिससे दो लड़कियों को गम्भीर चोट लगी तथा एक छात्र का हाँथ टूटा, उसके बाद लंका पर प्रोटेस्ट कर रही लड़कियों के ऊपर पुलिस प्रशासन और पीएसी द्वारा बिना महिला पुलिस के लाठी चार्ज की गई तथा एमएमवी गेट के अंदर खड़ी लड़कियों के ऊपर लाठी चार्ज किया गया, उसके बाद बिरला छात्रावास पर छात्रों के ऊपर पेट्रोल बम, रबर की गोली मारी गयी. महामना के बगिया का इतना शर्मनाक दिन आज से पहले कभी नही देखा गया, और लड़कियों के ऊपर हुये लाठीचार्ज का जिम्मेदार कुलपति है!
Siddhant Mohan : मैं बनारस से बोल रहा हूं. यहां बीएचयू के अंदर महिला महाविद्यालय है. रात बारह के करीब पुलिस ने जिलाधिकारी की मौजूदगी में बीएचयू के मेन गेट पर बैठे छात्रों और छात्राओं पर लाठीचार्ज कर दिया. लड़के भागे अंदर. तो पुलिस ने भी दौड़ा लिया अंदर तक. लड़कियां भागीं महिला महाविद्यालय के अंदर तो कुछ लोगों ने महिला महाविद्यालय का दरवाजा भी तोड़ दिया. अब पुलिस महिला महाविद्यालय के अंदर भी घुस गयी. लड़कियों को दौड़ाकर पीटा. भागने में जो लड़कियां गिर गयीं, पुलिस ने उनके ऊपर चढ़कर पिटाई की. पुलिस ने लड़कियों को जहां देखा, वहां पीटा. रोचक बात ये जानिए कि महिला पुलिसकर्मी एक भी नहीं. लड़कियां मुझे फोन कर-करके रोते हुए बदहवासी में जानकारियां दे रही हैं. एक लड़की बोलती हैं, “हमें इस खबर को किसी तरह बाहर पहुंचाना है.” अब थोड़ा और अंदर चलें तो पुलिस बिड़ला हॉस्टल के अंदर घुस गयी है. बिड़ला चौराहे पर लड़कों पर आंसू गैस के गोले और रबर की गोलियां चलायी जा रही हैं. लड़के उधर से पत्थर चलाकर आंदोलन को दूसरी दिशा में मोड़ चुके हैं. ऐसा दो टके का कुलपति नहीं देखा, जो मिलने का वादा करके मिलता नहीं है, और सीसीटीवी लगवाने की मांग करती लड़कियों पर लाठी चलवा देता है. लेकिन लाठी चलना अच्छा है. लाठीचार्ज प्रदर्शन का एक पक्ष है, किसी प्रदर्शनकारी के जीवन में यह जितना जल्दी आ जाए, उतना अच्छा. डर उतना जल्दी भागता है. ये मत सोचिए कि मैं लाठीचार्ज को इंडोर्स कर रहा हूं. बल्कि मैं एक पहले से ज्यादा बेख़ौफ़ हुजूम का और खुले दिल से स्वागत कर रहा हूं. अब सुनिए. लड़कियां वापिस गेट पर आ गयीं हैं. एसएसपी की गाड़ी को घेर लिया है और पूछ रही हैं, “हमें मारा क्यों?” और यह भी कि “अब तो जान देकर रहेंगे.” कहा था न कि लाठी एक बेख़ौफ़ कौम का निर्माण करती है.
Avanindr Singh Aman : बीएचयू का माहौल तनावपूर्ण. विश्वविद्यालय कैम्पस में सुरक्षा की मांग कर रही लड़कियों के हौसले तोड़ने के लिए किए गए लाठीचार्ज के बाद विश्वविद्यालय का माहौल तनावपूर्ण है। छात्राएं आंदोलन कर रही है, विश्वविद्यालय में पत्थरबाजी और तेज आवाज गूंज रही है। आक्रोशित छात्राएं आरपार के मूड में है मगर अब कैम्पस में शांति बहाल होनी चाहिए क्योंकि मरीजों को अब दिक्कत शुरु हो गई है। जब तक आंदोलन गाँधीवादी तरीके से था तब तक ठीक है मगर अब नहीं। यह तय है कि यह माहौल खराब करने में उन लोगों का ही हाथ होगा जो लड़कियों की सुरक्षा के लिए खतरा बने हुए है।
Ashutosh Aryan : बीएचयू कैंपस में लड़कियों को किस तरीके से जिला प्रशासन के नेतृत्व में बेसुध तरीके से पीटा गया है तस्वीर में हक्कीत देखिये। महिला पुलिसकर्मी के अनुपस्थिति में किस तरह पुरूष पुलिसकर्मियों लात-घूंसो से इन लड़कियों को बेरहमी से मार-पीटा गया है। उफ्फ…..! इन बच्चियों की आंसू। यह आँसू ही योगी आदित्यनाथ व बीएचयू के संघी वीसी गिरीश चन्द्र त्रिपाठी जो कहता है कि बीएचयू की लड़कियां स्कॉलरशिप के पैसे दहेज के लिए बचा कर रखती है उसके ताबूत की आखिरी कील साबित होगी। देखिए इन छोटी-छोटी मासूम बच्चियों को आपको इनमें जरूर अपनी बहन-बेटियां नजर आयेंगी। कितना बेशर्म व धूर्त है विश्वविद्यालय प्रशासन।अरे बनारस वाले एकदम से मुर्दा हो गए हो क्या? अपनी बहन-बेटियों को पीटते कैसे देख रहो हो? अगर अब भी आप जिंदा हैं अगर आपका खून पानी नहीं हुआ हों तो खड़ा होइए इन बहादुर लड़कियों के पक्ष में।कब तक ‘चुप्पी के संस्कृति’ के नाम पर सहनशीलता का लिबास ओढ़े रहोगे?
Ankit Kumar Singh : काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) की छात्राओं का अपनी सुरक्षा के लिए देर तक आंदोलन और एक छात्रा द्वारा सिर का बाल मुंडवा कर प्रतीकात्मक विरोध करना यह दिखाता कि वहाँ का स्थानीय/विश्वविद्यालयीय प्रशासन कितना बेशर्म हो चुका है,जो कि सुरक्षा के सवाल पर छात्राओं की माँगो को मानने की जगह उनसे बात करने में भी अहंकारी बना हुआ है। बातचीत अपनी शर्तों पर तोलमोल के साथ करने की प्रशासन की जिद या ढिठाई सिर्फ उसके अहंकार को दिखाती है। क्या ऐसे प्रशासनिक लोगों को अपनी लापरवाही और अहंकार के आगे मानवीय मर्म का एहसास नहीं होता क्या ? संवेदनाये मर चुकी है,क्या इनकी ?
Yashwant Singh : बीएचयू में छात्र-छात्राओं पर लाठीचार्ज घोर निंदनीय है. छात्राओं को सुरक्षा देने में असफल विश्वविद्यालय प्रशासन अब तानाशाही के बल पर मुंह बंद कराने पर आमादा है. पीएम नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से छात्राओं के आंदोलन से कन्नी काटी, वह भी बेहद दुखद और आहत करने वाला है. बीएचयू में दो साल मैं भी रहा हूं. पत्रकारिता की डिग्री वहीं से ली. छात्र राजनीति भी की. पर जैसा माहौल इस वक्त है, वैसा कभी नहीं रहा. खासकर छात्राओं का इतने बड़े पैमाने पर आंदोलनरत होने की परिघटना पहली बार है. पूरे मसले को संवेदनशील तरीके से और बातचीत के जरिए हल करने की जरूरत है. उम्मीद करें कि भगवा ब्रिगेड को अकल आ जाए वरना ये बच्चे ऐसा बदला लेंगे कि इन्हें दूर तक और देर तक कहीं शरण नहीं मिलेगी. छात्राओं के आंदोलन और इन पर ढाए गए पुलिसिया जुल्म के गवाह ये वीडियो जरूर देखें ताकि सच्चाई पूरे देश में फैल सके…
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