जी हां, जांबाज शहीद पत्रकार जगेन्द्र मामले में आरोपी राज्यमंत्री राममूर्ति वर्मा व घूसखोर इंस्पेक्टर श्रीप्रकाश राय के खिलाफ रपट दर्ज हो जाने के बाद भी अगर कार्रवाई नहीं हो पा रही है तो अखिलेश सरकार पर सवाल खड़ा होना लाजिमी है। क्या ऐसे ही मंत्रियो, बाहुबलियों, श्रीप्रकाश राय, संजयनाथ तिवारी जैसे लूटेरा व घुसखोर इंस्पेक्टर, भ्रष्ट आईएएस अमृत त्रिपाठी व आईपीएस अशोक शुक्ला आदि के सहारे समाजवादी पार्टी 2017 की वैतरणी पार करने का सपना संजो रखी है? अगर ऐसा नहीं है तो सच सबके सामने आ जाने के बाद इंस्पेक्टर समेत राज्यमंत्री को बर्खास्त करने में इतनी देर क्यों की जा रही है
जी हां, जांबाज शहीद पत्रकार जगेन्द्र सिंह की हत्या में शामिल राज्यमंत्री राममूर्ति वर्मा, जिन्होंने अपने दामन पर लगे छींटो को बचाने के लिए घुसखोर इंस्पेक्टर श्रीप्रकाश राय से जिंदा जलवा डाला, को अखिलेश सरकार बर्खास्त कर पायेंगी। यह सवाल बड़ा इसलिए भी हो गया है कि पत्रकार ने राज्यमंत्री के काले करतूतों, जिसमें बलातकार से लेकर उनकी हर घटिया हरकतों को फेसबुक पर पोस्ट किया था। जिससे चिढ़कर ही उन्होंने लूटेरा कोतवाल से घटना को अंजाम दिलवाई थी। मतलब साफ है राज्यमंत्री के खिलाफ इतने सारे आरोपों के बाद भी अब तक कोई कार्यवाही न किया जाना दर्शाता है उनकी ऊंची पहुंच को। कहा जा सकता है क्या ऐसे ही मंत्रियो, बाहुबलियों, श्रीप्रकाश राय, संजयनाथ तिवारी जैसे लूटेरा व घुसखोर इंस्पेक्टर, भ्रष्ट आईएएस अमृत त्रिपाठी व आईपीएस अशोक शुक्ला आदि के सहारे समाजवादी पार्टी 2017 की वैतरणी पार करने का सपना संजो रखी है? अगर ऐसा नहीं है तो सच सबके सामने आ जाने के बाद इंस्पेक्टर समेत राज्यमंत्री को बर्खास्त करने में इतनी देर क्यों की जा रही है। खासकर उस वक्त जब प्रकरण में राज्यमंत्री राममूर्ति वर्मा व तत्कालीन इन्स्पेक्टर श्रीप्रकाश राय के विरुद्ध धारा 302, 504, 506, 120 बी के तहत रपट दर्ज हो गयी है।
फिरहाल, कहने को लोकतंत्र का चैथा स्तम्भ है पत्रकारिता। लेकिन हालात बता रहे है कोई स्तम्भ नहीं बल्कि रसूखदारों की बड़ाई और बखानवाजी का माध्यम बनकर रह गया है पत्रकारिता। तभी तो सच्चाई बयां करने वाले पत्रकार एक-एक कर मारे जा रहे है। माफिया, बाहुबलि, भ्रष्ट अधिकारी व भ्रष्ट नेताओं के काले कारनामों को उजागर करने वाले पत्रकारों की घर-गृहस्थी लूटे जा रहे है। बड़े पैमाने पर फर्जी मुकदमें पत्रकार पर दर्ज हो रहे है। बावजूद इसके सूबे व केन्द्र की सरकारों से इसका हिसाब क्यों नहीं लिया जा रहा। जिस कलम-स्याही व कैमरा की बदौलत सत्ता बदल दी जाती है वह आज क्यों लाचार व बेबस दिख रही? जगेन्द्र की मौत, हर किसी से यही सवाल ढोल बजा-बजाकर पूछ रही है? मतलब साफ है जगेन्द्र की मौत एक तंत्र की मौत है। इसके कारण को तलासना सबकी जिम्मेदारी है। जगेन्द्र की मौत के जिम्मेदारों को इसकी सजा मिलनी ही चाहिए। जी हां, यूपी सरकार में इन दिनों जांबाज पत्रकारों पर पुलिस-माफिया, बाहुबलि, भ्रष्ट जनप्रतिनिधि व भ्रष्ट अधिकारियों के गठजोड़ कहर बरपा रहे है। ये सभी अपने काले कारनामों को उजागर न होने देने के लिए किसी भी हद तक चले जा रहे है। जो पत्रकार इनकी काली करतूतों को उजागर करता फिर रहा है उस पर सत्ता का रौब जमाकर फर्जी मुकदमें से लेकर हत्या कराने व घर-गृहस्थी लूटवाने तक की साजिश की जा रही है। बात अखिलेश सरकार के तीन साल कार्यकाल की किया जाय तो अब तक दर्जनभर पत्रकारों की हत्या, दो दर्जन से अधिक पत्रकारों के घर-गृहस्थी लूटने व सैकड़ों पत्रकारों पर फर्जी मुकदमें दर्ज कराएं जा चुके है।
बड़ा सवाल तो यही है कि अमूमन पत्रकार पर हाथ डालने से ये भ्रष्ट अधिकारी पहले तो घबराते है, लेकिन जब इन्हें दलाल पत्रकारों का साथ मिल जाता है तो इनका मनोबल दुगुना हो जाता है। दलाल पत्रकारों को साजिस में लेने के बाद ये भ्रष्ट अधिकारी जांबाज पत्रकारों का न सिर्फ उत्पीड़न करते है, बल्कि हत्या जैसे अंजाम को देने से भी बाज नहीं आ रहे है। वारदात बाद ये दलाल पत्रकार उत्पीड़न के शिकार को पत्रकार न होने की बात कहकर भ्रष्ट अधिकारियों के साथ सूर से सूर मिलाने लग जाते है। हद तो तब हो गयी जब भदोही का साजिद अली अंसारी नामक दलाल पत्रकार ने पत्रकार उत्पीड़न के मामले में भ्रष्ट व लूटेरा कोतवाल के पक्ष में लिखित बयान तक दे डाला। शाहजहांपुर में भी कुछ ऐसा ही हुआ है। पत्रकार जगेन्द्र भ्रष्ट मंत्री और भ्रष्ट पुलिस के साथ-साथ दलाल पत्रकारों की साजिश का शिकार होकर 8 जून को लखनउ के अस्पताल में दम तोड़ दिया। जबकि 22 मई को सूबे के वरिष्ठ अधिकारियों को भेंजे पत्र में जागेन्द्र ने अपनी हत्या की आशंका जता दी थी, लेकिन कुछ हो न सका। अब इस पूरे मामले में सरकार मौन है।
यहां जिक्र करना जरुरी है आवास विकास कालोनी निवासी जगेंद्र सिंह के घर एक जून को दोपहर करीब तीन बजे कोतवाली प्रभारी निरीक्षक, शाहजहांपुर श्रीप्रकाश राय, दो दारोगा और चार सिपाहियों ने दबिश दी थी। आरोप है कि पुलिस उन्हें गिरफतार कर थाने ले जाने के बजाय मौके पर ही शरीर पर पेट्रोल छिड़ककर जिंदा जलाने का प्रयास किया। जब शरीर का 75 फीसदी से भी अधिक हिस्सा झुलस गया, तो पुलिस वाले भाग खड़े हुए। परिजन सहित पड़ोसियों ने आनन-फानन में उन्हें जिला अस्पताल पहुंचाया। जहां हालत गंभीर होने पर लखनउ के लिए चिकित्सकों ने रेफर कर दिया। सिविल अस्पताल, लखनऊ में इलाज के दौरान जगेंद्र ने कई पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के अलावा नेताओं को बयान दिया कि राज्यमंत्री राममूर्ति वर्मा के इशारे पर इंस्पेक्टर श्रीप्रकाश राय ने उन पर पहले फर्जी मुकदमा दर्ज किया और बाद में गिरफतारी की आड़ में जिंदा जलाने का प्रयास किया। पुलिस के मुताबिक 12 मई को बरेली मोड़ निवासी अमित भदौरिया ने जगेंद्र सिंह के खिलाफ गाली गलौज करने, जबरन वाहन में ले जाने की कोशिश तथा जान से मारने की नीयत से फायर करने के आरोप के तहत रिपोर्ट दर्ज कराई थी। इस केस के सिलसिले में ही पुलिस दबिश देने पहुंची थी।
हालांकि पास-पड़ोस के लोगों का कहना रहा कि जगेंद्र के झुलसने की वारदात में पुलिस की भूमिका संदिग्ध है। श्री राय की भूमिका पर सवाल उठने के चलते ही एसपी ने उन्हें लाइन हाजिर कर दिया था। बाद में श्री राय का तबादला झांसी हो गया। बताते हैं कि वारदात के बाद से ही जागेंद्र के कई महत्वपूर्ण अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। इस कारण उनकी स्थिति लगातार बिगड़ती चली गई। खुटार क्षेत्र के मूल निवासी जागेंद्र सिंह सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय रहते थे। वह अपने पीछे पिता, पत्नी, दो पुत्र तथा एक पुत्री को छोड़ गए थे। प्रशासन की काफी किरकिरी के बाद जिलाधिकारी शुभ्रा सक्सेना ने इस प्रकरण की मजिस्ट्रेटी जांच के लिए अपर जिलाधिकारी (वित्त एवं राजस्व) पीके श्रीवास्तव को नामित किया है। अस्पताल में इलाज के दौरान जगेन्द्र ने बताया था कि इससे पूर्व भी 28 अप्रैल को उनके आवास के पास उनपर जानलेवा हमला किया गया किन्तु इसमें अब तक कोई कार्यवाही सिर्फ इसलिए नहीं की गयी, क्योंकि कोतवाल श्रीप्रकाश राज्यमंत्री के कहने पर सबकुछ कर रहे थे। मृत जगेन्द्र का कहना रहा कि मंत्री की तमाम गड़बडि़यों, जमीन पर बलपूर्वक कब्जा करने और सत्ता के दुरुपयोग को उजागर करने के कारण उन्हें यह सब झेलना पड़ा।
लगातार उत्पीड़न को देखते हुए उन्होंने गत 22 मई को एनएचआरसी समेत सूबे के वरिष्ठ अधिकारियों को भेंजे पत्र में अपने जानमाल के सुरक्षा की गुहार लगाई थी। पत्र में कहा है कि बाहुबलि मंत्री पुलिस से मिलकर उनकी हत्या करा सकते हैं। इस समय नेता, गुंडे और पुलिस सब मेरे पीछे पड़े हैं। सच लिखना भारी पड़ रहा है जिंदगी पर। पुलिस एवं मंत्री के कुछ कारनामों का खुलासा किया तो हमला करा दिया। उनके लोगों पर रिपोर्ट दर्ज करा दी तो मंत्री ने एक स्मैकिया से मेरे खिलाफ लूट, अपहरण और हत्या के प्रयास की रिपोर्ट कोतवाली में दर्ज करवा दी। 28 अप्रैल को हुए हमले में मेरे पैर का पंजा टूटा था और प्लास्टर चढ़ा हुआ था। अब पुलिस को कैसे समझाएं कि पैर टूटा आदमी अपहरण कैसे कर सकता है मारपीट तो दूर की बात है।
अब पुलिस मेरे घर पर ऐसे दबिशें दे रही है जैसे मैं कहीं से डकैती डालकर कत्ल करके भागा होऊं। डीजीपी, गृह सचिव व डीआईजी बरेली सभी से मिला और मुझ पर दर्ज हुई रिपोर्ट की जांच कर कार्रवाई करने की बात कही, लेकिन लगता है कि सपा सरकार में सारे अधिकारी मंत्री के दबाव में हैं। पत्र में कहा गया है कि विश्वस्त सूत्रों से सूचना मिल रही है कि राज्यमंत्री मेरी हत्या का षड़यंत्र रच रहे हैं और जल्द ही कुछ गलत घटने वाला है। इन सवालों व जवाबों के बाद कहा जा सकता है जगेन्द्र की मौत ने पुलिस प्रशासन को कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया है। बताते है कि पुलिस ने उनके घर में इस कदर से प्रवेश किया कि जैसे वह किसी संगीन वारदातो के हिस्ट्रीशीटर बदमाश हो। आरोप है कि पुलिस ने जगेन्द्र को घर में पकड़ कर दबोच लिया और जब वह साथ चलने को तैयार हुए तो कोतवाल श्रीप्रकाश एवं उनके हमराह भड़क उठे और पत्रकार के ऊपर पेट्रोल डालकर आग लगा दी। जब जगेन्द्र की चीख-पुकार सुनकर पड़ोसी और परिवार के लोग मौके पर पहुंचे तो पुलिसवालो के हाथ पांव फुल गए। सबको धमकी देकर भगाने लग गए। घटना की सूचना मिलते ही प्रशासन के आला अधिकारी और कई अन्य पत्रकार मौके पर पहुंचे। जुगेन्द्र सिंह का बयान लिया। जुगेन्द्र ने टीवी साक्षात्कार में उन्हें गिरफ्तार करने आए पुलिसकर्मियो पर सीधा आरोप लगाते हुए जान से मारने की बात कही। इसके बाद भी प्रशासन ने आरोपियो के खिलाफ कार्रवाई नहीं की।
बता दें, उत्तर प्रदेश सरकार के तीन साल के कार्यकाल में पत्रकार की उत्पीड़न की 200 से अधिक घटनाएं हो चुकी है, जिसमें 8 जांबाज पत्रकारों की हत्या पुलिस एवं माफिया जनप्रतिनिधि करा चुके है। जबकि दो दर्जन से अधिक पत्रकारों की माफिया जनप्रतिनिधियों एवं दलाल पत्रकारों की साजिश के चलते घर-गृहस्थी लूटा जा चुका है। जांच के नाम पर यूपी के भ्रष्ट अधिकारी व पुलिस माफियाओं, लूटेरों को बचाने में फर्जी जांच रिपोर्ट शासन को भेंज रहे है। सिर्फ पत्रकार पर ही इस सरकार में हमलें नहीं हुए है बल्कि इस दौरान दंगे और अपराधों का ग्राफ कितनी तेजी से बढ़ा है यह भी किसी से छिपा नहीं है। तीन वर्ष के कार्यकाल मे लगभग 650 पुलिसकर्मियों के खिलाफ मामले दर्ज हुए हैं। सिपाही, दारोगा से बदसलूकी हुई है। यहाँ तक की सीओ स्तर तक के अधिकारियों के साथ “मैन-हैंडिलिंग” की घटनाएँ हुयीं है। ये दिखाता है कि लोगों मे कितना गुस्सा है इस सरकार के खिलाफ। अपराधी बेखौफ हैं और जनता मे डर बैठा है। यही है इस सरकार की तीन साल की उपलब्धि। पत्रकार जगेंद्र सिंह के मामले में राजीव शर्मा सहित पत्रकारों ने जबरदस्त आक्रोश व्यक्त किया है। तमाम पत्रकारों ने राज्यपाल को सम्बोधित ज्ञापन के जरिए प्रकरण की सीबीसीआईडी से जाँच कराने, उनके परिजनों को सुरक्षा उपलब्ध कराने, जगेंद्र सिंह के परिजनों को मुख्यमंत्री राहत कोष से धनराशि उपलब्ध कराने की मांग की है। कहा पत्रकार पर हमला पूरी मीडिया जगत पर हमला है जिसे पत्रकार किसी भी सूरत में बर्दास्त नही करेगा। एक निर्भीक पत्रकार हैं।
लेखक एवं पत्रकार सुरेश गांधी से संपर्क : [email protected]