: मजीठिया पर सुप्रीम कोर्ट की नोटिस को चैनलों ने भी खबर आइटम बनाने की जहमत नहीं उठाई : ‘पी 7 चैनल के पत्रकार कर्मचारी लंबी लड़ाई के मूड में हैं।’ इस चैनल के पत्रकारों के जारी आंदोलन और उनकी तैयारियों की बाबत भड़ास पर प्रकाशित इस पंक्ति सरीखी अनेक पंक्तियों एवं फोटुओं-छवियों से पूरी तरह साफ हो जाता है कि इस चैनल के पत्रकार कर्मचारी अपने मालिक की बेईमानी, वादाखिलाफी, कर्मचारियों को उनका हक-पगार-सेलरी-बकाया-दूसरे लाभ देने के लिए किए गए समझौते के उलट आचरण-बर्ताव करने का दोटूक, फैसलाकुन, निर्णायक जवाब देने के लिए तैयार-तत्पर-सक्रिय हो गए हैं। उनके रुख से साफ है कि वे किसी भी सूरत में झुकेंगे नहीं और अपना हक लेकर, अपनी मांगें पूरी करा कर रहेंगे।
चैनलिया पत्रकारों की ओर से शुरू किए गए तकरीबन इस अभूतपूर्व आंदोलन ने निश्चित रूप से हमारे जैसे उन अनगिनत पत्रकार और गैर पत्रकार कर्मचारियों का हौसला सातवें आसमान पर पहुंचा दिया है जो अनंत काल से अखबारी मालिकों-मैनेजमेंट के शोषण-उत्पीडऩ, अन्याय-अत्याचार, लूट-खसोट, जलालत-जहालत, बेकायदगी-अनियमितता आदि को सहते-झेलते-बर्दाश्त करते आ रहे हैं। हालांकि अखबारी मालिकों की दरिंदगीपूर्ण हरकतों-करतूतों पर मजीठिया वेज बोर्ड के जरिये हल्का सा लगाम लगाने की कोशिश जरूर की गई है, लेकिन वह भी ज्यादा प्रभावी-कारगर होता नजर नहीं आ रहा है। क्यों कि मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों के क्रियान्वयन को लेकर हमारी ओर से लड़ी जा रही कानूनी लड़ाई को मीडिया के नए अवतार इलेक्ट्रॉनिक मीडिया-चैनलों की ओर से रत्ती भर भी सक्रिय समर्थन नहीं मिल रहा है।
नहीं-नहीं, हम उन साथियों को नहीं कोस रहे हैं जो अपने हक के लिए खुलकर, अहर्निश मैदान में डटे हुए हैं। हम तो उनका हर स्तर पर, हर तरह से समर्थन करते हैं, समर्थन देने को तैयार हैं। हम उनके मालिक की बदमाशी, वादाखिलाफी की घोर निंदा करते हैं। हमें तो शिकायत उन बड़े ओहदेदार संपादकों, संपादकीय मैनेजरों और उनके समान-सहधर्मी अफसरों से है जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के मालिकों के चरण रज लेने, उनकी वंदना में मशरूफ हंै, रमे हुए हैं। उन्हें अपनी मोटी पगार, सुविधाओं, अधिकार आदि के अलावा यहां तक कि अपने मातहतों की मुसीबतों-समस्याओं तक की भी परवाह नहीं है। हमें नहीं लगता कि उन बड़े ओहदेदार संपादकों, मैनेजरों आदि ने पी 7 चैनल के पत्रकार साथियों के आंदोलन को किसी भी कोने से समर्थन दिया होगा जिनकी मौजूदगी में, जिनके सामने समझौता हुआ था। और जिस समझौते पर तत्काल अमल करने की बात कही गई थी।
हमें भी ऐसे ही मठाधीश टाइप संपादकों, मैनेजर संपादकों और संपादकीय पुरोधाओं से शिकायत है जिन्होंने मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई अवमानना याचिकाओं और उन पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा अखबार मालिकों-मैनेजमेंट को जारी नोटिसों के बारे में जरा सी भी खबर-सूचना प्रसारित-प्रदर्शित नहीं की। इससे साफ जाहिर होता है कि चैनलों के कथित सूरमा-मठाधीश संपादकों को ऐसी किसी भी सूचना-जानकारी-खबर से कोई वास्ता नहीं है जो समस्त मीडिया जगत के छोटे-मातहत-निचले स्तर के कर्मचारियों के हित से जुड़ी हुई हो। इन माननीय संपादकों के लिए छोटे कर्मचारी उसी तरह से दुश्मन-शत्रु जान पड़ते-दीखते हैं जैसे धनपशु मीडिया मालिकों को दिखते-लगते हैं। इन महान संपादकाचार्यों की जमात वैसे तो उसूलों, सिद्धांतों, आदर्शों, मानवीयता, मानवीय मूल्यों, नियम-कायदे, न्याय-इंसाफ आदि की बातें-वकालतें जोर-शोर से करती, लिखती-पढ़ती, गाती-गुनगुनाती, यहां तक कि चीखती-चिल्लाती रहती है। पर, जब मातहतों की बात आती है तो हिकारती नजरों से देखते हुए उस ओर से नजरें फेर लेती है।
हिंदी, अंग्रेजी के कुछ न्यूज चैनलों जैसे आजतक, एनडीटीवी, एबीपी, इंडिया न्यूज, टाइम्स नाउ, आईबीएन7, सीएनएन-आईबीएम आदि में अनेक ऐसे पुरोधा-महान-अन्यतम संपादक हैं जो छोटे से लेकर बड़े से बड़े हर स्तर के मसलों पर इस कदर बोलते, उन्हें पेश करते, उनकी छानबीन, जांच-पड़ताल पेश करते, उन्हें इतनी बारीकी-गहराई से दर्शकों-श्रोताओं के समक्ष पेश करते-परोसते हैं कि ऐसा लगता है मानों वह अंतिम है, उससे ज्यादा और कुछ हो ही नहीं सकता। अर्थात सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, साहित्यिक-सांस्कृतिक-कलात्मक आदि से जुड़े मसलों पर इस तरह बतियाते हैं, जिरह करते हैं कि बड़े से बड़े विशेषज्ञ, माहिर, मर्मज्ञ, ज्ञानी, विद्वान अपना माथा पकड़ लें। ये संपादक-एंकर किसी घोटाले, भ्रष्टाचार, अनियमितता आदि की किसी हाथ लग गई स्टोरी को इस कदर पेश करते-परोसते हैं, ऐसा मीडिया ट्रायल दिखाते हैं कि दर्शक स्वत: पुकार उठते हैं कि दंड, इंसाफ हो तो ऐसा हो, इस तरह का हो। लेकिन अपने चैनल के अंदर कर्मचारियों के चल रहे सतत् शोषण-उत्पीडऩ से अनजान बने रहते हैं।
इसके अलावा एनडीटीवी एवं कई ऐसे चैनल भी हैं जो इंडियन एक्सप्रेस सरीखे अखबारों में छपी खबरों-स्टोरियों को दिन भर चलाते-दिखाते रहते हैं। साथ ही उसकी साइड स्टोरी-फॉलोअप स्टोरी भी प्रस्तुत करते चलते हैं। लेकिन जब मीडिया कर्मचारियों के मसलों-समस्याओं को उठाने-दिखाने-प्रस्तुत करने की बात होती है तो इन चैनल बहादुरों को सांप सुंघ जाता है, मुंह पर ताला लग जाता है, मुंह सिल जाता है। नजरें कुछ और निहारने लगती हैं। मिसाल के तौर पर मजीठिया वेज बोर्ड के मामले को ही ले लीजिए। इंडियन एक्सप्रेस, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण के कर्मचारियों की कंटेम्प्ट रिट याचिका पर जब सर्वोच्च न्यायालय ने इन अखबारों के मालिकान-मैनेजमेंट को नोटिस जारी किया तो इन चैनलों ने इसे खबर बनाना, अपने दर्शकों को इसकी जानकारी देना, इससे अवगत कराना किसी भी लिहाज से मुनासिब नहीं समझा। पूछा जा सकता है कि इन नोटिसों के बारे में किसी अखबार में भी तो कोई खबर नहीं छपी थी। बिल्कुल ठीक, लेकिन लोकतंत्र का चौकस चौथा स्तंभ होने का डंका बजा-बजाकर दावा करने वाले चतुर चैनलों को अनिवार्य-अपरिहार्य रूप से इन नोटिसों को प्रमुख खबर बनानी चाहिए थी। पर वे भी तो चूक गए। या कहें कि उन्होंने भी इसे खबर बनाने की जहमत नहीं उठाई।
इस संदर्भ में जमीनी हकीकत यह है कि चाहे प्रिंट के मालिक हों या इलेक्ट्रॉनिक के, बुनियादी तौर पर सब एक हैं। इन सबका लक्ष्य एक है- कर्मचारियों की गाढ़ी मेहनत को लूटना और उन्हें मजदूरी-पगार-वेतन एवं सुविधा के नाम पर न्यूनतम से न्यूनतम देना। और यदि वे अपनी पगार-सुविधाएं बढ़ाने, मजीठिया के हिसाब से वेतन एवं सहूलियतों की मांग करते हैं, आवाज उठाते हैं तो उन्हें खामोश-चुप कराने के लिए जघन्य से जघन्य, अमानवीय हथकंडों का इस्तेमाल करना और गैर कानूनी कृत्य-कारनामों को अंजाम देना।
इस प्रकार देखा जाए तो प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया समेत सभी मीडिया में प्रमुख पदों पर बैठे, ऊंची संपादकीय कुर्सियों पर विराजमान हो रहे सारे लोग मालिकों-पंूजीपतियों-धन्नासेठों-धनपशुओं के चाकर- कारकून-कारिंदे हैं। वे मालिकों से मिले मोटे पैसे अपने बटुओं में ठूंसते हैं और उनके इशारे पर अपने मातहतों-छोटे कर्मचारियों पर हर तरह का जुल्म, शोषण, अत्याचार बरपा करते हैं। बावजूद इन सबके यदि प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और अन्य मीडिया के सभी पत्रकार एवं गैर पत्रकार कर्मचारी एकजुट होकर अपने हक-अधिकार के लिए लड़ें तो उन्हें कामयाबी निश्चित रूप से मिलेगी। साथ ही मालिकों के कर्मचारी विरोधी कारनामों-कृत्यों पर रोक लगेगी और एक हद तक उससे निजात मिलेगी।
हर तरह के मीडिया कर्मियों की एकता का मुद्दा मजीठिया: इस संदर्भ में कर्मचारियों की तात्कालिक एकजुटता का मुद्दा मजीठिया वेज बोर्ड है। मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों को लागू करने के लिए जब सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी किया तो कुछ पत्र-पत्रिकाओं ने उस पर तकरीबन पूरी तरह अमल किया। इससे उत्साहित इलेक्ट्रॉनिक न्यूज चैनलों के कुछ तबके की ओर से अपने लिए भी ऐसे ही एक वेज बोर्ड के गठन की मांग-आवाज उठाई गई थी। वजह साफ थी। मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों के आधार पर वेतन एवं दूसरे लाभ स्वत:स्फूर्त ढंग से बढ़ जाने थे और बढ़ गए भी। यह मांग हमारे सरीखे बहुत सारे पत्रकार और गैर पत्रकार कर्मचारियों को बेहद अच्छी लगी थी। हम तो चाहते हैं कि आगे एक ऐसा वेज बोर्ड बने जो प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और अन्य दूसरे मीडिया कर्मचारियों यानी सबके लिए वेतन वृद्धि-वेतन में संशोधन की सिफारिश करे। जिससे सारे पत्रकार और गैर पत्रकार कर्मचारी समवेत रूप से लाभान्वित हों।
भूपेंद्र प्रतिबद्ध
चंडीगढ़
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Comments on “ये संपादक लोग अपने चैनल के अंदर कर्मचारियों के चल रहे सतत् शोषण-उत्पीडऩ से अनजान क्यों बने रहते हैं”
chatukarita se mili kursi patrakarou ka hak dabane k liye hi hai. yek manniy sampak k 4 sal k karykal mai stingars ko jise we shoukiya pathak kahte hain yek bhi paisa nhi badha, kya kahaige yaise sampadakou ko?