मायावती से तीखा सवाल पूछने वाली उस लड़की का पत्रकारीय करियर शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो गया!

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Zaigham Murtaza : अप्रैल 2002 की बात है। उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा था। मायावती की सत्ता में वापसी की आहट के बीच माल एवेन्यु में एक प्रेस वार्ता हुई। जोश से लबरेज़ मैदान में नई-नई पत्रकार बनी एक लड़की ने टिकट के बदले पैसे पर सवाल दाग़ दिया। ठीक से याद नहीं लेकिन वो शायद लार क़स्बे की थी और ख़ुद को किसी विजय ज्वाला साप्ताहिक का प्रतिनिधि बता रही थी। सवाल से रंग में भंग पड़ गया। वहां मौजूद क़रीब ढाई सौ कथित पत्रकार सन्न।

मायावती ने पलटकर पूछा तुम कौन हो?

लड़की से पहले एक पत्रकार ने जवाब दिया बहनजी पहली बार दिखी है एक मिनट रुकिए।

किस अख़बार से हो?

मान्यता है?

अंदर कैसे आईं?

ये विजय ज्वाला क्या है?

इस नाम का अख़बार तो हमने नहीं सुना।

अरे यार सीएम बनने वाली हैं। इनका अपमान कैसे कर सकती हो

नई आई हो? तमीज़ नहीं है।

सौ से ज़्यादा सवाल और सब कथित पत्रकारों के। एक भी बहनजी का नहीं। एक पत्रकार ने पुलिस बुला ली। लड़की पूरी रात हज़रत ग॔ज थाने में रही। मायावती के ओएसडी की तहरीर पर मुक़दमा हुआ। 6 दिन बाद ज़मानत मिली और पत्रकारिता शुरू होने से पहले ख़त्म। कांफ्रेंस में मौजूद एक बड़े पत्रकार बाद में रिलायंस के नौकर हो गए। एक दो प्रेस मान्यता समिति मे रहे। कुछ को सरकारी फ्लैट और प्लॉट जैसी सुविधाएं हासिल हैं। कुछ सीधे सीधे राजनीतिक कार्यकर्त्ता बन गए हैं।

लेकिन इन सबमें न उस नौसिखिया जैसा साहस है और न नाम मात्र की नैतिकता। लखनऊ शहर में क़रीब एक हज़ार मान्यता और दो हज़ार चप्पल घिस्सू पत्रकार हैं। एक शहर मे शायद ही कहीं इतने हों मगर सवाल पूछने का साहस किसी में नहीं है। अगर इक्का दुक्का क्रांतिवीर आ भी जाता है तो सरकार से पहले कथित प्रवक्ता उसे सही रास्ते पर ले आते हैं। यही वजह है कि दसवीं पास सिपाही इनका मान मर्दन करते हुए सोमवार को प्रेस क्लब मे घुस आए और एक पूर्व डीजी सहित 31 सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करके ले गए। किसी ने नहीं पूछा कि क्या पत्रकार वार्ता करना गुनाह है? या फिर इनमें कोई चोर, उचक्का या अपराधी है?

सवाल अब भी उठाए जाएंगे लेकिन सरकार पर नहीं। प्रेस कांफ्रेंस और इसे करने वालों की नीयत सवालों के घेरे में है। सरकार आज से 20 साल पहले वाली भी सर्वोपरि थी और आज वाली भी। पत्रकारिता۔۔۔ माफ कीजिएगा, चाटुकारिता के मानक न तब बदले थे और न अब। सो प्रेस क्लब में सरकार के हमले को अघोषित इमर्जेंसी, प्रेस पर हमला या पत्रकारिता पर आघात मानने की भूल न करें। ये ज़रूर हो सकता है कि प्रेस क्लब में पुलिस किसी पत्रकार ने ही बुलाई हो। वैसे भी लखनऊ को इराक़ के कूफा शहर जैसा ऐसे ही थोड़े माना जाता है।

पत्रकार ज़ैग़म मुर्तज़ा की एफबी वॉल से.

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Comments on “मायावती से तीखा सवाल पूछने वाली उस लड़की का पत्रकारीय करियर शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो गया!

  • Shripal teotia says:

    Charanvandna krke taluye chatke patrkaarita krne wale Ab mutti bhar me jyada Ho chuke hain,
    Lekin Andar se khokhle hi hote hain ye log bhale hi kitna bhi laabh kamaa lein, zarurat thi us bahadur journalist ko awsar dene ki lekin afsos hai is chatukaarita ne hmare bahut saathiyon ko field badalne ko vivash kiya hai.
    Shararm aani chahiye aise behrupiyon ko.

    Reply

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