मायावती का धर्म परिवर्तन राजनीति से प्रेरित!

लखनऊ : ‘मायावती का धर्म परिवर्तन राजीनीति से प्रेरित है.’ यह बात आज एस. आर. दारापुरी, पूर्व पुलिस महानिरीक्षक एवं संयोजक जनमंच उत्तर प्रदेश ने प्रेस को जारी ब्यान में कही है. उनका कहना है कि मायावती की धर्म परिवर्तन की धमकी के पीछे उसके दो उद्देश्य हैं- एक तो भाजपा जो हिंदुत्व की राजनीति कर रही है पर दबाव बनाना और दूसरे हिन्दू धर्म त्यागने की बात कह कर दलितों को प्रभावित करना.  मायावती की इस धमकी से बीजेपी और हिन्दुओं पर कोई असर होने वाला नहीं है क्योंकि हिन्दू तो बुद्ध को विष्णु का अवतार और बौद्ध धर्म को हिन्दू धर्म का एक पंथ मानते है.

गठबंधन की कोशिशों पर बहनजी का ग्रहण, माया के एक दांव से ढेर सारे धुरंधर हुए धराशायी

अजय कुमार, लखनऊ

बिहार की सत्ता से बेदखल होने के बाद लालू एंड फेमली जख्मी शेर की तरह दहाड़ रही है। उसको सपनों में भी मोदी-नीतीश दिखाई देते हैं। नीतीश के मुंह फेरने से लालू के दोनों बेटे आसमान से जमीन पर आ गिरे। सत्ता का सुख तो जाता रहा ही, सीबीआई भी बेनामी सम्पति मामले में लालू परिवार के पीछे हाथ धोकर पड़ गई है। ऐसे में लालू का तमतमा जाना बनता है। चारा घोटाले में सजायाफ्ता लालू यादव ने बिहार खोया तो उत्तर प्रदेश में अखिलेश, मायावती और कांग्रेस के सहारे वह मोदी को पटकनी देने की राह तलाशने में लग गये। वैसे भी लालू लम्बे समय से उत्तर प्रदेश में बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन की वकालत करते रहे हैं।

मायावती से तीखा सवाल पूछने वाली उस लड़की का पत्रकारीय करियर शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो गया!

Zaigham Murtaza : अप्रैल 2002 की बात है। उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा था। मायावती की सत्ता में वापसी की आहट के बीच माल एवेन्यु में एक प्रेस वार्ता हुई। जोश से लबरेज़ मैदान में नई-नई पत्रकार बनी एक लड़की ने टिकट के बदले पैसे पर सवाल दाग़ दिया। ठीक से याद नहीं लेकिन वो शायद लार क़स्बे की थी और ख़ुद को किसी विजय ज्वाला साप्ताहिक का प्रतिनिधि बता रही थी। सवाल से रंग में भंग पड़ गया। वहां मौजूद क़रीब ढाई सौ कथित पत्रकार सन्न।

हरिशंकर तिवारी के यहां दबिश पर विधानसभा से वाकआउट करने वाली मायावती सहारनपुर के दलित कांड पर चुप क्यों हैं?

लखनऊ : “मायावती की सहारनपुर के दलित काण्ड पर चुप्पी क्यों?” यह बात आज एस.आर. दारापुरी, भूतपूर्व आई.जी. व प्रवक्ता उत्तर प्रदेश जनमंच एवं सस्यद, स्वराज अभियान ने प्रेस को जारी ब्यान में कही है. उनका कहना है कि एक तरफ जहाँ मायावती हरीशंकर तिवारी के घर पर दबिश को लेकर बसपा के प्रदेश अध्यक्ष को गोरखपुर भेजती है और विधान सभा से वाक-आऊट कराती है वहीं मायावती सहारनपुर के शब्बीरपुर गाँव में दलितों पर जाति-सामंतों द्वारा किये गए हमले जिस में दलितों के 60 घर बुरी तरह से जला दिए गए, 14 दलित औरतें, बच्चे तथा बूढ़े लोग घायल हुए में न तो स्वयम जाती है और न ही अपने किसी प्रतिनिधि को ही भेजती है. वह केवल एक सामान्य ब्यान देकर रसम अदायगी करके बैठ जाती है.

नोटबंदी के बाद पार्टी एकाउंट में करोड़ों जमा कराने को लेकर चुनाव आयोग ने बसपा को दी भारी राहत

बहुजन समाज पार्टी द्वारा नोटबंदी के बाद दिल्ली के करोल बाग़ स्थित यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया के अपने पार्टी अकाउंट में 02 दिसंबर से 09 दिसंबर 2016 के बीच 104 करोड़ रुपये के पुराने नोट जमा कराये जाने के सम्बन्ध में निर्वाचन आयोग ने पार्टी को भारी राहत दी है. इस सम्बन्ध में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में पीआईएल दायर करने वाले प्रताप चंद्रा की अधिवक्ता डॉ नूतन ठाकुर ने बताया कि निर्वाचन आयोग ने 29 अगस्त तथा 19 नवम्बर 2014 द्वारा वित्तीय पारदर्शिता सम्बन्धी कई निर्देश पारित किये थे.

…लेकिन मायावती सबक लेने को तैयार नहीं हैं!

अजय कुमार, लखनऊ
फिर बसपा से एक और नेता की विदाई और एक बार फिर मायावती पर धन उगाही का आरोप। यह सिलसिला लगता है कि बीएसपी के लिये अनवरत प्रक्रिया हो गई है। बसपा छोड़ने या निकाले जाने वाला शायद ही कोई ऐसा नेता रहा होगा जिसने ‘बहनजी’ पर धन उगाही का आरोप न लगाया हो। नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने भी इसी सिलसिले को आगे बढ़ाया है। अपनी बात साबित करने के लिये उनके द्वारा मायावती से टेलीफोन पर हुई वार्तालाप का ऑडियो क्लिप जारी किया गया है। नसीमुद्दीन की विदाई के साथ ही बीएसपी में एक युग समाप्त हो गया है। नसीमुद्दीन को कांशीराम ही बसपा में लाये थे। नसीमुद्दीन के बाहर जाने के बाद अब बसपा में कांशीराम के समय का कोई कद्दावर नेता पार्टी में नहीं बचा है। बड़े नेताओं के नाम पर मााया के अलावा सतीश मिश्रा ही बचे हैं। सतीश मिश्रा भले ही बीएसपी के कद्दावर नेता हों, लेकिन बीएसपी में उनका आगमन काफी देरी से हुआ और बीएसपी मूवमेंट में उनका कोई खास योगदान भी नहीं रहा है।

…तो क्या तत्कालीन आईबीएन7 के यूपी हेड शलभ मणि त्रिपाठी को मारने की साजिश थी?

बसपा से निकाले गए नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने आज खुलासा किया कि मायावती अपने खिलाफ न्यूज लिखने दिखाने वालों को मारने की साजिश रचती थीं. इस बयान के सामने आने के बाद लखनऊ के कई पत्रकारों के दिमाग में तत्कालीन मायावती सरकार का वह मंजर घूम गया जिसमें एनएचआरएम घोटाले को लेकर लगातार हत्याएं हो रही थीं. तत्कालीन आईबीएन7 चैनल के यूपी हेड शलभ मणि त्रिपाठी ने एनआरएचएम घोटाले की कई परतों का पर्दाफाश किया था और उनका चैनल लगातार इसे दिखा भी रहा था. इसको लेकर बसपा सरकार बहुत असहज थी.

(शलभ मणि त्रिपाठी)

मायावती को दौलत की बेटी बताते हुए वरिष्ठ नेता मुंशीलाल जयंत ने बसपा से इस्तीफा दिया

उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के रहने वाले और बसपा के वरिष्ठ नेताओं में शुमार मुंशीलाल जयंत ने आज बसपा सुप्रीमो पर गंभीर आरोप लगाते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। गुजरात और तीन अन्य प्रदेशों के प्रभारी मुंशीलाल जयंत ने बसपा सुप्रीमो पर गुजरात चुनावों में टिकट के बदले रुपये मांगने का आरोप लगाया। यह कोई पहला मामला नहीं जब बसपा नेताओ ने अपने सुप्रीमो पर चुनाव में टिकटों के बदले रुपये मांगने का आरोप लगाया हो।

बहनजी हार का कारण खुद को बतातीं तो समर्थक टूट जाते, इसलिए EVM को दुश्मन बनाया!

मायावती के निशाने पर ईवीएम के मायने… राजनीति में अक्सर ईवीएम को मोहरा बना दिया जाता है…  बीएसपी की हार से नाखुश दिख रहे दलित हितों को प्रमुखता से उठाने वाले एक संपादक ने मुझसे निजी बातचीत में बहन मायावती जी रवैये पर खासी नाराजगी जाहिर की. कहा, हार के कारणों की सही से समीक्षा नहीं होगी, तो ईवीएम को गलत ठहराने से बहुजन समाज पार्टी का कुछ भी भला नहीं होगा. बहन जी से मिलकर सबको सही बात बतानी चाहिए, भले ही उसमें अपना घाटा ही क्यों ना हो जाये. मैंने अपने संपादक मित्र से इस मामले पर एक घटना का जिक्र किया. जिसे आपके लिए भी लिख रहा हूं.

मायावती का दलित वोट बैंक क्यों खिसका?

हाल में उत्तर प्रदेश में हुए विधान सभा चुनाव में मायावती और उनकी बहुजन समाज पार्टी की बुरी तरह से हार हुयी है। इस चुनाव में उसके बहुमत से सरकार बनाने के दावे के विपरीत उसे कुल 19 सीटें मिली हैं जिनमें शायद केवल एक ही आरक्षित सीट है। उसके वोट प्रतिशत में भी भारी गिरावट आयी है। एनडीटीवी के विश्लेषण के अनुसार इस चुनाव में उत्तर प्रदेश में बसपा को दलित वोटों का केवल 25% वोट ही मिला है जबकि इसके मुकाबले में सपा को 26% और भाजपा को 41% मिला है। दरअसल 2007 के बाद बसपा के वोट प्रतिशत में लगातार गिरावट आयी है जो 2007 में 30% से गिर कर 2017 में 22% पर पहुँच गया है। इसी अनुपात में बसपा के दलित वोटबैंक में भी कमी आयी है। अभी तो बसपा के वोटबैंक में लगातार आ रही गिरावट की गति रुकने की कोई सम्भावना नहीं दिखती। मायावती ने वर्तमान हार की कोई ईमानदार समीक्षा करने की जगह ईवीएम में गड़बड़ी का शिगूफा छोड़ा है। क्या इससे मायावती इस हार के लिए अपनी जिम्मेदारी से बच पायेगी या बसपा को बचा पायेगी?

मीडिया ने बसपा और मायावती जैसी कद्दावर ताकत को चुनावी लड़ाई से बाहर कर दिया!

Ashwini Kumar Srivastava : अद्भुत है मीडिया और उसमें काम कर रहे तथाकथित पत्रकार। वरना बसपा और मायावती जैसी कद्दावर ताकत को ही इस बार के चुनाव में लड़ाई से बाहर कैसे कर देता! वैसे मुझे तो इसका कोई आश्चर्य नहीं है। क्योंकि एक दशक से भी ज्यादा वक्त तक दिल्ली और लखनऊ में देश …