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साहित्य

रायपुर से लेकर लखनऊ वाया बनारस तक कौन-कौन ‘फासीवाद’ का आपसदार बन गया है, अब आप आसानी से गिन सकते हैं

Abhishek Srivastava : मुझे इस बात की खुशी है कि रायपुर साहित्‍य महोत्‍सव के विरोध से शुरू हुई फेसबुकिया बहस, बनारस के ‘संस्‍कृति’ नामक आयोजन के विरोध से होते हुए आज Vineet Kumar के सौजन्‍य से Samvadi- A Festival of Expressions in Lucknow तक पहुंच गई, जो दैनिक जागरण का आयोजन था। आज ‘जनसत्‍ता’ में ‘खूब परदा है’ शीर्षक से विनीत ने Virendra Yadav के 21 दिसंबर को यहीं छपे लेख को काउंटर किया है जो सवाल के जवाब में दरअसल खुद एक सवाल है। विनीत दैनिक जागरण के बारे में ठीक कहते हैं, ”… यह दरअसल उसी फासीवादी सरकार का मुखपत्र है जिससे हमारा विरोध रहा है और जिसके कार्यक्रम में वीरेंद्र यादव जैसे पवित्र पूंजी से संचालित मंच की तलाश में निकले लोगों ने शिरकत की।”

Abhishek Srivastava : मुझे इस बात की खुशी है कि रायपुर साहित्‍य महोत्‍सव के विरोध से शुरू हुई फेसबुकिया बहस, बनारस के ‘संस्‍कृति’ नामक आयोजन के विरोध से होते हुए आज Vineet Kumar के सौजन्‍य से Samvadi- A Festival of Expressions in Lucknow तक पहुंच गई, जो दैनिक जागरण का आयोजन था। आज ‘जनसत्‍ता’ में ‘खूब परदा है’ शीर्षक से विनीत ने Virendra Yadav के 21 दिसंबर को यहीं छपे लेख को काउंटर किया है जो सवाल के जवाब में दरअसल खुद एक सवाल है। विनीत दैनिक जागरण के बारे में ठीक कहते हैं, ”… यह दरअसल उसी फासीवादी सरकार का मुखपत्र है जिससे हमारा विरोध रहा है और जिसके कार्यक्रम में वीरेंद्र यादव जैसे पवित्र पूंजी से संचालित मंच की तलाश में निकले लोगों ने शिरकत की।”

अच्‍छा होता यदि विनीत अपनी बात को वीरेंद्र यादव (और कहानीकार अखिलेश भी) तक सीमित न रखकर उन सब ”लोगों” के नाम गिनवाते जो ‘फासीवादी सरकार के मुखपत्र’ के आयोजन में होकर आए हैं। हो सकता है विनीत को सारे नाम न पता हों या वे भूल गए हों, लेकिन इस छोटी सी भूल के चलते उनके लेख का मंतव्‍य बहुत ”निजी” हो जा रहा है और ऐसा आभास दे रहा है मानो वे बाकी लोगों को बचा ले जाना चाह रहे हों। बहरहाल, उनकी बात बिलकुल दुरुस्‍त है और आज का उनका लेख ‘फासीवादी सरकार के मुखपत्र’ के आयोजन के क्रिएटिव कंसल्‍टेंट Satyanand Nirupam को तो सीधे कठघरे में खड़ा करता ही है। उसके अलावा Piyush Mishra, Swara Bhaskar, Prakash K Ray, Rahat Indori, Waseem Bareillvy, Munawwar Rana, malini awasthi, बजरंग बिहारी तिवारी, शिवमूर्ति समेत ढेर सारे लोगों को विनीत कुमार फासीवाद का साझीदार करार देते हैं जो लखनऊ के ‘संवादी’ में गए थे या जिन्‍होंने जाने की सहमति दी थी।

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अब आप आसानी से गिन सकते हैं कि रायपुर से लेकर लखनऊ वाया बनारस तक कौन-कौन ‘फासीवाद’ का आपसदार बन गया है। सबसे दिलचस्‍प बात यह है कि इस आपसदारी में कहीं कोई खेद नहीं है, क्षमा नहीं है, अपराधबोध नहीं है और छटांक भर शर्म भी नहीं है। ‘हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे’ की तर्ज पर जवाब दिए जा रहे हैं। अपनी-अपनी सुविधा से खुद को और अपने-अपने लोगों को बख्‍श दिया जा रहा है। समझ में नहीं आ रहा कि कौन किसके हाथ में खेल रहा है। सच कहूं, मुझे तो कांग्रेस फॉर कल्‍चरल फ्रीडम के पढ़े-सुने किस्‍से अब याद आने शुरू हो गए हैं। इस नाम को गूगल पर खोजिएगा, मज़ा आएगा।

मीडिया विश्लेषक और सरोकारी पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से.

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0 Comments

  1. shardul maheshwari

    January 7, 2015 at 3:28 pm

    रायपुरसाहित्य संघी सम्मेल्लन के शामिल होने पर जो दिल्ली ,लखनऊ,के कई साहित्यकारों को रायपुर और छत्तीसगढ़ की असलियत पता ही नही हे,,इस सम्मेलन में छत्तीसगढ़ के दस फी सदी फासीवादी लेखक ,नाटककार ,कवि ,पत्रकार आदि विधा के ,शामिल हुए,ये उनका निजी फैसला रहा ,,इस संघी साहित्य सम्मेल्लन में रायपुर ,बिलासपुर .रायगढ़ सहित छत्तीसगढ़ के दर्ज़नो शहर ,गाओं के प्रगतिशील लेखक, ,साहित्यकार ,पत्रकार ,शामिल नही हुए ,जबकि इनको सरकार का आमंत्रण था ,,और इन्का शामिल ना होना सरकार का लिए चिंता का विषय था,,,इस बात से न वीरेन्द्र यादव और ना विनीत कुमार ,ना जनसत्तायी सरकार पोषित साहित्यकार पत्रकार वाकिफ हे, या वाकिफ होने पर भी अनजान बन रहे हे,छत्तीगढ़ के सम्पूर्ण वाम लेखक संघ आंदोलन की जानकारी ना वीरेंद्र यादव ,ना बाकि को पता हे,,या अनजान बन रहे हे,रायपुर साहीत्य सम्मेल्लन का विरोध कहा ,किसने किया ,और सरकार के पास क्या रिपोर्ट हे ,ये एक तबका ,जानता हे ,,ये असली नायक हे,और सालो से संयुक्क्त मध्य प्रदेश के ज़माने से देश भर में एक आंदोलन को अपने लेख ,कहानी ,मीडिया ,के जरिये आज भी जारी रखे हे,,,और इन् वाम समर्थक संघी विरोधी साहित्यकारों ने आर्थिक नुक्सान भी उठाया ,ये माद्दा ,ना विनोद कुमार शुक्ल ,में ना अशोक वाजपई एंड गैंग में हे, इन्होने वाम लोगो ने कोई एहसान नही किआ ,ये फ़ासी विरोधी मुहिम में सालो से लगे हे ,ये सरकारी पोषित लेखक नही इनको किसी को जवाब देने की ज़रूरत नही हे,,और प्रगतिशील लेखक ,सोच ,एक आंदोलन हे ,विरोध का साहस हर किसी में नही होता ,,सरकारी पोषक कहानिकारर विनोद कुमार शुक्ल ,अशोक वाजपई,( कल तक अर्जुन सिंह के आँगन में थे,आज संघी भाजपा रमन सिंह के आँगन में हाथ पसारे ,खड़े हे, ,),पुरुषोत्तम अग्रवाल ,,अशोक चकधरर ये सभी विचार शुन्यय हे,,फासीवाद के खिलाफ खड़ा होना ,इनके बस की बात भी नही ,,अब ओम थानवी की मजबूरी हे अंसरकारी लेखको का साथ देना ,क्योंकि ओम थानवी वामपंथी लेखक विरोधी खेमे के हे, और इनको भी मीडिया का ,सरकार का सहारा होना, कल जनसत्ता से रवाना हुए तो ,नमस्ते कोई नहीं करेगा,,
    ,बाकी छत्तीसगढ़ के जो तथाकथित साहित्यकार ,नाटककार , विचारक ,कवि शामिल हुए ,, इनकी मीडिया में चर्चा भी नही हुयी,,और देश के पढ़े लिखे ग्यानी लेखो से सूना रहा ये सम्मेलन,इनकी बाये प्रदेश से बाहर आये लेखक को मीडिया ने छपा, ,और अंततः में फिरर से छत्तीसगर् का फासीवादी ,संघी विरोधी लेखकको ,विचारको का बहुत बड़ा तबका इस रायपुरिया साहित्य सम्मेल्लन में शामिल नही हुआ था..रायपुर से बाहर बैठे वाम समर्थक ,और विरोधी सत्य जाने तब लिखे,,,,अन्नत में किसी भी सरकार के खिलाफ विरोध और विचारशील ही कर सकता हे,

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