मनीष श्रीवास्तव-
लखनऊ से प्रकाशित ‘सन्देश वाहक‘ अख़बार ने भ्रष्टाचार के एक मामले का खुलासा किया है। उत्तरप्रदेश मेडिकल सप्लाई कार्पोरेशन में महानुभावों के खेल बड़े निराले हैं। ये सरकारी अस्पतालों को समय पर दवाओं की आपूर्ति करने में भले फिसड्डी हों, लेकिन कमीशनखोरी के खातिर मानकों से अधिक करोड़ों की खरीद में इनका कोई सानी नहीं है। तभी एनएचएम के बजट से एचआईवी और एचसीवी ( हेपेटाइटिस सी) एलाइजा किटों को तय मात्रा से 96 गुना अधिक खरीदकर कार्पोरेशन में एक बड़े घोटाले की नींव रखी गयी।
घोटाले को दबाने की नीयत से अफसरों का पूरा जोर सिर्फ भुगतान कराने पर है। कारपोरेशन ने करीब साढ़े 15 करोड़ की किटें खरीद डाली। एनएचएम ने कहा कि हम करीब 15 लाख 91 हजार रुपए का ही भुगतान कर सकते हैं। सन्देशवाहक लंबे समय से इस फर्जीवाड़े को उजागर करने के प्रति प्रयासरत था। सच्चाई सामने आने के बाद सारे अफसरों ने चुप्पी साध रखी है क्योंकि जो मैंने बड़े अफसरों को बताया था, वो अक्षरशः सत्य साबित हुआ है। किटों के परिवहन में कोल्ड चेन का भी ध्यान नहीं रखा गया। किटों के पॉजिटिव, निगेटिव कंट्रोल तक खराब होने की सूचना है। पूर्व एमडी मुथु ने भी फाइल को नहीं छुआ था।
करोड़ों की एचआईवी और हेपेटाइटिस किटों की खरीद में हुए फर्जीवाड़े की जांच के लिए शासन ने चार सदस्यीय कमेटी का गठन किया है। इससे पहले मेडिकल कारपोरेशन के एमडी जगदीश ने शासन को एक प्रारम्भिक आख्या भेजी। जिसमें उन्होंने कारपोरेशन का बचाव करते हुए गड़बड़ियों का सारा ठीकरा एनएचएम के सर थोप दिया।
भई जब किटों का बजट लाखों में था, प्रति टेस्ट के रेट आपको एनएचएम से मिले थे तो आपने साढ़े 15 करोड़ की किटें क्यों खरीदी। आपने एनएचएम से पूछना भी जरूरी नहीं समझा। फिर सबसे अहम सवाल कि एमडी ने शुरुआती रिपोर्ट में लिखा कि मामले की जांच उच्च पदस्थ तकनीकी विषय विशेषज्ञ लोगों से कराई जाए। निष्पक्ष जांच के लिए कारपोरेशन और एनएचएम के लोग इसमें न हों। तब शासन की जांच कमेटी में मेडिकल कारपोरेशन के एफसी और एमडी को क्यों शामिल किया गया। इससे निष्पक्ष जांच होगी या फिर कारपोरेशन को क्लीनचिट मिलेगी। सिर्फ अंदाज़ा लगाइए।
लब्बोलुआब ये कि करोड़ों की एक्सपायरी किटें लखनऊ के ट्रांसपोर्टनगर में अभी भी डंप हैं। कोल्ड चेन तक परिवहन के दौरान मेंटेन नहीं रखी गयी। फर्जीवाड़े के कई खुलासे होना अभी बाकी है…