Sanjaya Kumar Singh : कुछ लोग अभी भी कह रहे हैं कि, “जेएनयू में जो हुआ वो गलत था।” लेकिन जेएनयू में हुआ क्या? रिपोर्टिंग के नाम पर मीडिया के एक वर्ग का नंगा नाच। ऐसा फर्जीवाड़ा जिसकी पोल इतनी जल्दी पूरी तरह खुल गई। ऐसा फर्जीवाड़ा जिसे संभाल नहीं पाए। ऐसा शर्मनाक कृत्य जिसका साथ वालों ने ही विरोध कर दिया – खुले आम। नौकरी छोड़ने की कीमत पर। पत्रकारिता में जो पहले कभी नहीं हुआ वो करवा लिया। फिर भी किसी को मीडिया के इस तरह नंगे होने का अफसोस नहीं है तो उसे भारत के खिलाफ या पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाने वालों के खिलाफ कार्रवाई से किसने रोका है। जब पुलिस कमिश्नर जैसा बड़ा अधिकारी अपने रिटायरमेंट के बाद के जुगाड़ में लगेगा और ऐसे ही जुगाड़ होते रहेंगे तो पाकिस्तान के पक्ष में नारा लगाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जरूरत कहां रहेगी।
जरूरत तो विरोधियों का मुंह बंद करने की हो जाएगी। उन्हें किसी तरह फंसाने और सबक सीखाने की होगी। कार्रवाई दोषी के खिलाफ नहीं होगी। सेवा करने के लिए, देश भक्ति के नाम पर स्वामी भक्ति दिखाने के लिए होगी। जो अपनी सेवाएं देगा – ली जाएगी कुछ टुकड़े उसे भी मिल जाएंगे। ऐसे में जेएनयू में जो हुआ बिल्कुल गलत हुआ। हर गलती के दोषी और अपराधी पकड़े जाएं, सबको सजा हो। किसी के साथ पक्षपात नहीं हो।
देश के खिलाफ या पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगे तो उसे किसने, कब, कहां कहा कि सही है। अगर बाहर के लोगों ने नारे लगाए तो शुरू से ही कहा जा रहा है कि वह गलत है। किसी ने उसका समर्थन नहीं किया है। और अगर किसी ने किया है तो उसके खिलाफ कार्रवाई कौन करेगा? क्यों नहीं हुई। किसने मना किया। उसके बदले किसी निर्दोष को पकड़ना। फर्जी फोटो और वीडियो फैलाना, साबित हुए बिना टीवी चैनलों पर किसी को देशद्रोही कहना और अदालत में पेशी के दिन पुलिस कमिश्नर का टीवी चैनल पर कहना कि पर्याप्त सबूत है और फिर पुलिस के तय किए अपराधी को वकीलों की भीड़ द्वारा पीटा जाना और इसके बाद पुलिस आयुक्त का कहना कि हम जमानत का विरोध नहीं करेंगे। इसके बावजूद लोगों को नहीं समझ में आ रहा है कि जेएनयू में क्या हुआ। जेएनयू का मामला बहुत आगे बढ़ गया है।
वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से.