कुछ स्वयंभू पत्रकारों ने स्वार्थ पूरा करने के लिए एक सम्मानित संस्था ( एनजीओ ) कानपुर प्रेस क्लब कानपुर महानगर पर धोखाधड़ी कर और क्लब के संस्थापक सदस्यों को दर किनार कर न सिर्फ कब्ज़ा किया बल्कि फ़र्ज़ी कागजों के दम पर उसका नवीनीकरण करा कर 7 के स्थान पर 17 लोगों की फ़र्ज़ी कार्यकारिणी बना दी। आरटीआई में प्राप्त कागजों से कानपुर प्रेस क्लब कानपुर महानगर का फर्जीवाड़ा खुल रहा है।
उप निबन्धक फर्म चिट्स एवं सोसायटीज के कार्यालय से प्राप्त एक पत्र अनुसार 12 दिसंबर 2010 को कानपुर प्रेस क्लब की साधारण सभा की विशेष बैठक चुनाव अधिकारी भूपेन्द्र तिवारी की अध्यक्षता में हुई थी। चुनाव अधिकारी द्वारा चुनाव कार्यक्रम भी तय कर दिया गया था। वहां उपस्थित सभी सदस्यों को इसकी जानकारी दी थी और सभी सदस्यों ने अपनी सहमति दी भी थी। जबकि प्राप्त पत्र पर उस समय की पंजीकृत प्रबन्धकारिणी समिति के अध्यक्ष सहित किसी भी पदाधिकारी और सदस्य के हस्ताक्षर नही हैं| इतना ही नहीं चुनाव अधिकारी के भी हस्ताक्षर नहीं हैं। साधारण सभा का गठन प्रबन्धकारिणी समिति और सदस्यों को मिलाकर होता है। इस पत्र में है कि साधारण सभा के कुल 17 मे से 13 सदस्य उपस्थित दिखाए गए, जब प्रबन्धकारिणी समिति के सात सदस्य उस बैठक मे नही थे तो बाकी 13 सदस्य कौन थे ? और प्रबन्धकारिणी समिति के सात सदस्यों की उपस्थित ही नही थे तो कोरम कैसे पूरा था ? उप निबन्धक फर्म चिट्स एवं सोसायटीज के कार्यालय से प्राप्त एक पत्र जिसमें स्क्रीनिंग कमेटी का कार्यवृत ( कमेटी क्या – क्या करेगी ) में लिखा है।
इस पत्र पर भी उस समय की पंजीकृत प्रबन्धकारिणी संमिति के किसी भी पदाधिकारी और सदस्य के हस्ताक्षर नहीं है। आश्चर्यजनक रूप से इस पत्र पर भी स्क्रीनिंग कमेटी के चेयरमैन एवं सदस्यों के हस्ताक्षर नही हैं| और तो और इस पत्र में यह भी नहीं लिखा है कि स्क्रीनिंग कमेटी का गठन और इसके चेयरमैन एवं सदस्यों का मनोनयन कब, कहाँ और किसके द्वारा को किया गया था ? उप निबन्धक फर्म चिट्स एवं सोसायटीज के कार्यालय से प्राप्त एक पत्र के अनुसार अनाधिकृत और विधिविरुद्ध तरीके से संस्था के पंजीकृत स्मृति पत्र में लिखे उद्देश्यों को निहित स्वार्थवश अतिक्रमित कर चुनाव में स्वंय व अपने सहयोगियों चुनाव जितवाने के लिये स्क्रीनिंग कमेटी ने केवल उन दैनिक अखबारों को सदस्यता अभियान में शामिल किया जिनका रजिस्ट्रेशन कम से कम तीन वर्ष पुराना था। और तो और सदस्यता के लिये प्रत्येक सदस्य को अपनी सैलरी स्लिप, कार्यालय से प्राप्त होने वाले चेक अथवा कम से कम तीन माह के बैंक स्टेटमेंट की फोटोकापी अनिवार्य रुप से प्रस्तुत करनी थी व नकद वेतन पाने वालों को तीन माह के बाउचर की फोटोकापी देनी थी। जबकि संस्था के स्मृति पत्र में यह स्पष्ट रुप से लिखा है कि संस्था अपने क्षेत्र के अंतर्गत पत्रकारिता व्यवसाय से सम्बद्ध समस्त छोटे बड़े पत्रकारों कर्मियों की दैवीय आपदाओं के समय पर सम्भव मदद करने का प्रयास करेगी तथा उनकी समस्याओं को सुनकर उनके निराकरण हेतु हर संभव प्रयास करेगी। उनका प्रतिनिधित्व करना तथा उनके हितार्थ उच्चाधिकारियों से सम्पर्क करना उनका ध्यानाकर्षण कराकर समाधान की दिशा मे प्रयास करना था लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्योकि न तो सभी 617 लोग अपनी सैलरी स्लिप दिए न बैंक स्टेटमेंट और न ही बाउचर उसके बाद भी उन्हें सदस्य्ता दी गयी ?
उप निबन्धक फर्म चिट्स एवं सोसायटीज के कार्यालय से प्राप्त एक पत्र के अनुसार 18 फरवरी 2013 को संस्था के तत्कालीन कार्यकारिणी सदस्य पुरुषोत्तम द्विवेदी ने थाना कोतवाली कानपुर नगर में एक प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर सूचना दी थी कि संस्था का मूल पंजीयन प्रमाण पत्र जिसकी संख्या – 1086 सन् 2005-2006 तथा पंजीकृत प्रधान कार्यालय – 6 नवीन मार्केट कानपुर नगर में है, कार्यालय के रख रखाव मे कहीं खो गया है। जबकि पुरुषोत्तम द्विवेदी द्वारा कोतवाली में दिए गए प्रार्थना पत्र पर हस्ताक्षर और 2005 में पंजीकरण के समय प्रस्तुत किये गये स्मृति पत्र में किये गये उनके हस्ताक्षर एक दूसरे से भिन्न हैं। प्रार्थना पत्र में कोतवाली थाने से जी.डी. नं0 भी नहीं दिया गया, फर्ज़ीवाड़े की बानगी यहाँ भी दिखाई दी संस्था की पंजीकृत नियमावली में महामंत्री के अधिकार एंव कर्तव्यों को अगर देखें तो प्रशासनिक व अदालती कार्यवाही का संचालन केवल महामंत्री द्वारा किया जायेगा तो फिर यह प्रार्थना पत्र कार्यकारिणी सदस्य पुरुषोत्तम द्विवेदी द्वारा क्यों दिया गया ? उप निबन्धक फर्म चिट्स एवं सोसायटीज के कार्यालय से प्राप्त एक पत्र के अनुसार चुनावों के पहले चलाये गए सदस्य्ता अभियान में प्राप्त सदस्यता फार्म की स्क्रीनिंग रिपोर्ट है जो – 15 मार्च 2013 को दी गयी। इसमें दिखाया गया है कानपुर प्रेस क्लब के कार्यालय से जारी फार्म में से केवल 886 फार्म ही प्राप्त हुए थे। इसमें 566 फार्म ही स्वीकृत किये गये है जब कि 320 फार्म निरस्त कर दिये गये। आश्चर्यजनक रुप से इस रिपोर्ट पर भी तत्तकालीन प्रबन्धकारिणी समिति के अध्यक्ष सहित किसी भी पदाधिकारी और सदस्य के हस्ताक्षर नहीं है और न ही स्क्रीनिंग कमेटी के चेयरमैन या सदस्यों के हस्ताक्षर है।
फर्ज़ीवाड़े की बानगी यहाँ भी दिखाई देती है कि धोखाधड़ी कर चुनाव में स्वयं व अपने सहयोगियों को चुनावों में जितवाने के इरादे से उन्ही आवेदकों को सदस्यता दी गयी जो इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले व्यक्तियों की इच्छानुसार मतदान करें। चुनाव में स्वतन्त्र रुप से मतदान करने वाले आवेदक जो चुनाव का परिणाम बदल सकते थे। उन 320 आवेदकों के फार्म के फार्म भी बिना कारण बताये निरस्त कर दिये गये। इस रिपोर्ट के अनुसार कुछ समाचार पत्र के पत्रकारों की संख्या आश्चर्यजनक रुप से अत्याधिक है। जैसे आज से 55, अमर उजाला से 60, हिन्दुस्तान से 61, जागरण से 94, जन सन्देश से 30 दर्शाये गये है, लेकिन यह सभी लोग नियमानुसार अपनी सदस्यता के लिए अपनी सैलरी स्लिप, कार्यालय से प्राप्त होने वाले चेक अथवा 3 माह की सैलरी का बैंक स्टेटमेन्ट देने में शायद ही दे सके होंगे, लेकिन फिर भी स्क्रीनिंग कमेटी ने इन्हे संस्था का सदस्य बनाते हुए चुनाओं में वोटिंग करने का अधिकार दिया | उप निबन्धक फर्म चिट्स एवं सोसायटीज के कार्यालय से प्राप्त नियमावली के अनुसार – संस्था की प्रबन्धकारिणी समिति में अध्यक्ष एक, उपाध्यक्ष एक, महामंत्री एक, कोषाध्यक्ष एक शेष कार्यकारणी सदस्य थे, पंजीयन के समय प्रबन्धकारिणी समिति में 05 पदाधिकारी व 02 सदस्यों सहित कुल संख्या 07 थी। नियमावली में यह भी लिखा है कि प्रबन्धकारिणी समिति की संख्या को आवश्यकता अनुसार बढ़ाया जा सकेगा। यह संस्था के पंजीकरण के समय प्रस्तुत की गयी नियमावली ही है जिस पर नवनिर्वाचित पदाधिकारियों/सदस्यों ने अपने – अपने हस्ताक्षर कर नवीनीकरण के लिए उप निबन्धक फर्म चिट्स एवं सोसायटीज के कार्यालय में जमा कराया था। इस नियमावली में कोई भी संशोधन नहीं किया गया है न ही पदाधिकारियों और कार्यकारिणी सदस्यों की संख्या ही बढ़ायी गयी है, तब एक उपाध्यक्ष के स्थान पर 2 उपाध्यक्ष, तथा एक मंत्री के स्थान पर 2 मंत्री एवं दो कार्यकारिणी सदस्यों के स्थान पर 11 कार्याकारिणी सदस्यों का चुनाव कैसे कराया गया और कैसे पद रेवड़ी की तरह बाँटे गए ? 7 के स्थान पर 17 पदों पर किस प्रकार स्वयंभू पत्रकार चुनावों में जीते और फर्ज़ीवाड़े की हद देखिये कि उन्होंने स्वयं को ही अपने हस्ताक्षरों से जीता हुआ घोषित किया गया जो इन पदों पर चुनाव जीते।
इस पूरे फर्ज़ीवाड़े में उन्होंने बाकायदा पुलिस और प्रशासन का भी सहयोग लिया और चुनावों के दौरान उनकी उपस्थिति में इस फ़िल्मी ड्रामे को अंजाम दिया | स्क्रीनिंग कमेटी के नियमानुसार केवल उन दैनिक समाचार पत्रों को सदस्यता अभियान में शामिल किया जाना था जो काम से काम 3 वर्ष पुराना हो अपनी सदस्यता के लिए अपनी सैलरी स्लिप, कार्यालय से प्राप्त होने वाले चेक अथवा 3 माह की सैलरी का बैंक स्टेटमेन्ट और अगर नकद सैलरी लेता है तो बाउचर दे सके। इस कमेटी के नियमों में इलेक्ट्रानिक चैनलों के किसी पत्रकार को सदस्य्ता देने कोई भी नियम ही नहीं है, तो अवनीश दीक्षित – ई टी0वी0 व नीरज अवस्थी – सहारा समय को सदस्य्ता कैसे मिल गयी ? और अगर दी भी गयी तो उन्होंने क्या अपनी सैलरी स्लिप, कार्यालय से प्राप्त होने वाले चेक अथवा 3 माह की सैलरी का बैंक स्टेटमेन्ट दिया या कोई बाउचर? उनके तमाम इलेक्ट्रानिक चैनल के साथियों को भी कानपुर प्रेस क्लब कानपुर महानगर की सदस्यता दी गयी जो भी अपनी सैलरी स्लिप, कार्यालय से प्राप्त होने वाले चेक अथवा 3 माह की सैलरी का बैंक स्टेटमेन्ट दिया या कोई बाउचर शायद ही अपने आवेदन पत्रों के साथ दिए होंगे | स्क्रीनिंग कमेटी के नियम के विरुद्ध उपरोक्त सभी के सदस्यता आवेदन पत्रों न केवल स्वीकार किया गया बल्कि अत्यन्त आश्चर्यजनक रुप से . नामांकन पत्र भी स्वीकार किया गया तथा उन्हें उनके मनचाहें पदों पर चुनाव में विजेता भी घोषित किया गया। यह सब शायद इसलिए सम्भव हो सका क्योकि फिल्मी स्टाइल में विधिविरुध और षड्यन्त्रपूर्वक चुनाव और चयन की सारी प्रक्रिया की पटकथा और व्यवस्था स्वयं इन्हीं स्वयंभू पत्रकारों के निर्देशन में इनके और इनके सहयोगियों के द्वारा रची जा रहीं थी।
इस पूरे फर्ज़ीवाड़े की फिल्मी कहानी के लेखन और निर्देशन पर तो यही कहावत सही बैठती है कि शातिर से शातिर अपराधी भी कहीं न कहीं कोई गलती कर कर कोई न कोई सुराग अवश्य छोड़ जाता है। उपरोक्त कहावत को चरितार्थ करते हुए कानपुर प्रेस क्लब कानपुर महानगर -6 नवीन मार्केट कानपुर नगर को पत्रावली संख्या .-35365 रजिस्ट्रीकरण प्रमाण पत्र संख्या 1086/2005-2006 तेरह दिसंबर 2005 के जारी होने के बाद से ही इसके नवीनीकरण के लिये और इस पर कब्ज़ा करने के लिए आवश्यक सभी कागजों पर केवल वर्तमान महामंत्री ने अपने व अपने सहयोगियों को मनचाहे पदों पर चुनाव में विजेता घोषित करवाने के लिए फ़र्ज़ी कागज बनवाने के बाद उन सारे कागजों पर स्वयं अपने व अपने सहयोगियों के हस्ताक्षरों से कराकर झूठे शपथपत्र के साथ लगाकर कर नवीनीकरण के लिये उप निबन्धक फर्म चिट्स एवं सोसायटीज कानपुर मण्डल कानपुर के कार्यालय में प्रस्तुत किया और पत्रकारों का दबाव और स्वयं को पत्रकारों का नेता होने का रौब दिखाकर नवीनीकरण भी करा लिया लेकिन क्या उप निबन्धक उप निबन्धक फर्म चिट्स एवं सोसायटीज आँखों पर पट्टी बंधे बैठे थे जो इन्हे यह अनिमियताएं और फर्जीवाड़ा नहीं नहीं दिखाई दिया ?
नवीनीकरण से उत्साहित वर्तमान पदाधिकारियों ने संस्था में आ रहे पैसों के प्रति और लालच पनपने लगा और कार्यकारिणी भी बड़ी हो गयी थी सभी को संतुष्ट रखना जरूरी था| पैसों का बन्दर बाँट में हिस्सा घट रहा था इसलिए न केवल सदस्य्ता शुल्क 51 रुपये से बढ़ाकर 400 किया बल्कि प्रेस कांफ्रेंस की फीस भी 300 से बढ़ाकर 1000 कर दी क्योकि अब 7 के स्थान पर 17 लोग कार्यकारिणी में हो गए तो उनका खर्च भी बढ़ गया था और उन्हें खुश और चुप भी रखना था सो चुनाव के बाद से जनता और पत्रकारों से वसूले गए लाखों रुपये फिर बंदरबांट की भेंट चढ़ रहे हैं ? क्योकि वर्तमान महामंत्री के शपथ पत्र के अनुसार संस्था के कार्यालय में कोई वैतनिक कर्मचारी है नहीं और नवीन मार्किट स्थित प्रेस क्लब भवन के कार्यालय का किराया और बिजली का बिल मांगने की किसी की हिम्मत है ही नहीं ? कौन ओखली में सर दे और पत्रकारों से बैर ले ?
एसआरन्यूज़ से साभार