नई दिल्ली : कमानी सभागार में आयोजित साहित्य अकादमी के छह दिवसीय साहित्य उत्सव एवं पुरस्कार वितरण समारोह में प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि लेखक का प्रतिपक्ष लेखक नहीं, सत्ता होती है। सत्ता तो हर समय जनता और लेखक विरोधी होती है। प्रसिद्ध साहित्यकार केदारनाथ सिंह ने कहा कि भारतीय साहित्य बीसवीं सदी के हैंगओवर से निकलकर नए रास्ते खोज रहा है। नए रास्ते का सूर्योदय पूर्वोत्तर से हो रहा है। सृजन की विविधता हमारी ताकत है।
दिल्ली में साहित्य अकादमी पुरस्कार वितरण समारोह को सम्बोधित करते प्रो.केदारनाथ सिंह
साहित्य अकादमी के अध्यक्ष प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि सभी पुरस्कृत लेखक हमारे लोक-जीवन की आवाज है। साहित्य सन्नाटे को शब्द देता है। मौन को मुखर करता है। सत्ता कोई भी हो, चाहे धर्म की हो, राजसत्ता हो या विचारों की, उसका रुख जनविरोधी रुख होता है। हम इस समय तकनीकी रूप से समर्थ तो हुए हैं, लेकिन तकनीक भाव विरोधी होती है। भाव साहित्य ही बचा सकता है। साहित्य अकादमी के उत्सव में चित्र प्रदर्शनी का उदघाटन करते हुए साहित्यकार डॉ. रामदरश मिश्र ने कहा कि प्रत्येक भाषा अनेकता में एकता के हमारे सूत्र को मजबूती देती है। वह जनजीवन को अंकित करती है।
कमानी सभागार, दिल्ली में छह दिवसीय साहित्य उत्सव के पहले दिन मुख्यअतिथि के रूप में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार केदारनाथ सिंह ने सम्मानित हो रहे लेखकों की तरफ इशारा करते हुए कहा कि ये लेखक समुदाय का प्रतिनिधि मंडल है। इनके सृजन की विविधता हमारी ताकत है। भारतीय साहित्य आज नये रास्ते खोज रहा है। साहित्य में नया सूर्योदय हो रहा है। साहित्य उत्सव के अवसर पर हिंदी में रमेशचंद्र शाह (उपन्यास ‘विनायक’), उर्दू में मुनव्वर राणा (गजल संग्रह ‘शहदावा’), मराठी में जयंत विष्णु नारलीकर सहित देश की चौबीस भाषाओं के साहित्यकारों को उत्कीर्ण ताम्र फलक और शाल के साथ एक-एक लाख रुपये से सम्मानित किया गया।
अस्वस्थ होने के कारण अंग्रेजी साहित्यकार आदिल जसावाला और बांग्ला लेखक उत्पल कुमार बासु परिजनों ने उनके पुरस्कार प्राप्त किए। साहित्य अकादमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवासराव ने अपने सम्बोधन में साहित्य अकादमी की उपलब्धियों की चर्चा करते हुए लेखकों और श्रोताओं का स्वागत किया। धन्यवाद ज्ञापन अकादमी के उपाध्यक्ष चंद्रशेखर कंबार ने किया।