कमला नेहरू प्रौद्यौगिकी संस्थान सुलतानपुर में भ्रष्टाचार की जडे़ं इतनी गहरी है जिसका पूरा अन्दाजा लगा पाना थोड़ा मुश्किल है। तकनीकी शिक्षा के लिए सरकारी गजट और शासन द्वारा बनाये गये नियम कानून के यहां कोई मायने नहीं हैं। कई कहानियां हैं। एक-एक कर बताते हैं। यहां कार्यवाहक निदेशक के रूप में के.सी. वर्मा तैनात है। इनकी खुद की तैनाती एक बड़ी कहानी है, जिसे बाद में बताएंगे। पहले इनके अपने अपने चहेते सदा शिव मिश्र के बारे में जानिए। वर्मा जी ने अपने चहेते सदा शिव मिश्र को 2012 में दो बार पदोन्नति दी, शासनादेश एवं निर्देशों की धज्जियां उड़ाकर। लाबिंग मजबूत करने के लिए राम चन्द्र तिवारी को निदेशक के वैयक्तिक सहायक के पद पर अनर्गल पदोन्नत करने के साथ ही अन्य लाभ देने का काम किया गया।
खास बात है कि पहले संस्थान में वित्त एवं लेखाधिकारी का पद सृजित नहीं था जिससे वित्त सम्बन्धी कार्यों में खासी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। संस्थान की बोर्ड ऑफ गवर्नर ने वित्त की इन समस्याओं को संज्ञान में लेते हुये संस्थान में एक अतिरिक्त ‘सहायक कुलसचिव (लेखा)’ के पद हेतु अनुमोदन दिया, जिस पर आरसी सिंह की नियुक्ति हुयी थी। कुछ वर्षों बाद 1988-89 में उ.प्र. शासन द्वारा केएनआईटी में एक वित्त एवं लेखाधिकारी नियुक्त किया गया। इसके बाद बोर्ड ऑफ गवर्नर ने स्वीकृत अतिरिक्त ‘सहायक कुलसचिव(लेखा)’ के पद हेतु यह आदेश दिया कि यह पद केवल तभी तक जीवित रहेगा जब तक आरसी सिंह सेवानिवृत्त नहीं हो जाते और आरसी सिंह के सेवानिवृत्त होने के बाद वह पद स्वतः ही समाप्त माना जायगा।
कमला नेहरू प्रोद्यौगिक संस्थान सुलतानपुर के सोसाइटी बाइलॉज के अनुसार प्रशासनिक पद कुलसचिव, उपकुलसचिव एवं सहायक कुलसचिव के पद हैं। इन पदों की भर्ती प्रक्रिया में कुलसचिव, उपकुलसचिव नियम 4सी व सहायक कुलसचिव नियम 4ए के अन्तर्गत गठित चयन समिति के मध्यम से की जायेगी और इन पदों के लिए अर्हता स्टीयरिंग कमेटी द्वारा निरधारित की जायेगी, लेकिन 2012 मे अशोक तिवारी की मृत्यु के रिक्त सहायक कुलसचिव प्रशासन पद पर सीधी भर्ती प्रक्रिया का अनुपालन करते हुए बिना विज्ञापन के कार्यवाह निदेशक के.सी. वर्मा अपने चहेते सदा शिव मिश्र की नियुक्ति कर दी, बिना स्टीयरिंग कमेटी के, जो नियमानुसार गलत था ।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ. के.बी. नायक के कार्यकाल में भी सहायक कुलसचिव प्रशासन पद पर शैलेन्द्र श्रीवास्तव को भी निदेशक के वैयक्तिक सहायक की पदोन्नति एवं उपकुलसचिव पद पर अशोक तिवारी की पदोन्नति कर दी गयी थी। शासन के हस्तक्षेप के बाद प्रतिकूल कार्यवाही की थी। एस.सी. भट्ट को उपकुलसचिव सीधी भर्ती पर नियुक्त किया और पदोन्नत कर्मचारियों को उनके मूल पद पर वापस कराया। सदाशिव मिश्रा ने भी सहायक कुलसचिव पद पर प्रोन्नत हेतु आवेदन किया था जिसे निरस्त कर दिया गया था, लेकिन अवसर देखकर श्री मिश्रा ने अपनी पदोन्नति ‘सीधी-भर्ती’ के पद पर करा ली।
जानकारी के अनुसार वर्तमान सहायक कुलसचिव प्रशासन सदाशिव मिश्रा की पदोन्नति क्लर्क से प्रधान सहायक पद पर भी नियम विरुद्ध तरीके से की गयी। संस्थान में तकनीकी सहायक वर्ग एवं तृतीय श्रेणी के गैर तकनीकी वर्ग के कर्मचारियों के प्रोन्नति हेतु संस्थान नियमावली में वर्णित प्राविधानों के अनुसार विचार करने के लिए आदेश की व्यवस्था दी गयी है जिसके अनुसार विभागीय प्रोन्नति समिति का गठन में एक असेसमेन्ट बोर्ड का अध्यक्ष- अध्यक्ष, सम्बन्धित विभागाध्यक्ष-सदस्य, कुलसचिव-सदस्य का प्राविधान है। समिति की सहायता के लिये एक असेसमेन्ट बोर्ड का गठन भी किया गया है जिसमें संस्थान के एक वरिष्ठ प्रोफेसर-अध्यक्ष, सम्बन्धित विभागाध्यक्ष-सदस्य, एक वाह्य विशेषज्ञ-सदस्य, एक अन्य विभाग के वरिष्ठ शिक्षक-सदस्य होंगे। प्रधान सहायक पद के लिए विभागीय प्रोन्नति समिति का गठन किया गया था और प्रोन्नति प्रक्रिया सम्पन्न की गयी थी जिसमें अतिउत्तम श्रेणी में चयनित अभ्यर्थियों की पदोन्नति न करते हुये पांचवीं वरीयता प्राप्त अभ्यर्थी सदाशिव मिश्र की पदोन्नति की गयी।
वर्तमान कार्यवाहक निदेशक केएस वर्मा ने संस्थान स्तर पर गुपचुप तरीके से प्रोन्नति समिति का गठन करके सदाशिव मिश्रा की पदोन्नति चुपचाप कर दी और ‘स्टीयरिंग कमेटी’ के आदेश की अवहेलना करते हुये सीधी भर्ती के पदों को प्रोन्नत द्वारा भर दिया। जिनकी प्रोन्नति 1995 में ‘प्रधान सहायक’ पद पर ही गलत तरीके से की गयी थी। सदाशिव मिश्रा की ही दो पदोन्नतियाँ की गयी हैं जबकि अन्य अभ्यर्थी श्री मिश्र से आधिक योग्य अभ्यर्थी को एक भी प्रोन्नति नहीं दी गयी है। इसके साथ ही सदाशिव मिश्रा एवं राम चन्द्र तिवारी निदेशक के वैयक्तिक सहायक को पदोन्नति के साथ-साथ एसीपी का लाभ भी दिया जा रहा है।
फर्जीवाड़ा कर की गई निदेशक की नियुक्ति, बसपा शासन में नियम विरुद्ध दिया गया कार्यभार
बसपा के शासनकाल में रहस्यमयी तरीके से कमला नेहरू प्रोद्यौगिक संस्थान (केएनआईटी) के निदेशक की नियुक्ति नियमों की अनदेखी द्वारा की गयी थी। ‘बहनजी’ के कार्यकाल में प्रभावशाली कैबिनेट मंत्री के दबाव मे मंत्री के रिश्तेदार बताये जाने वाले केएस वर्मा को शासन द्वारा निर्धारित मापदडों को पूरा कराये बिना ही कमला नेहरू प्रोद्यौगिक संस्थान सुल्तानपुर के निदेशक पद पर नियुक्ति कर दी गई। यही नहीं तत्कालीन संसदीय कार्य मंत्री के रिश्तेदार बताए जाने वाले केएस वर्मा को 30 जनवरी 2010 को संस्थान में कार्यभार ग्रहण करा दिया गया।
गौरतलब है कि 2010 के पहले किसी भी तकनीकी संस्थान के निदेशक के लिए प्रकाशित विज्ञापन व भारत सरकार के नियम के अनुसार किसी भी तकनीकी संस्थान के निदेशक के पद के लिए 05 वर्ष का प्रोफेसर का अनुभव व 45 वर्ष की आयु का मापदंड निर्धारित था। तकनीकी शिक्षा के लिए अखिल भारतीय तकनीकि शिक्षा परिषद्, नई दिल्ली ने 5 मार्च 2010 को सम्पूर्ण भारत में तकनीकी शिक्षा हेतु शिक्षकों एवं अन्य पद पर नियुक्त के लिये सरकारी गजट एफ.नम्बर 37-3 / लीगल / 2010 जारी किया, जिसके अनुसार भी किसी भी संस्थान में निदेशक पद के लिए 03 वर्ष का प्रोफेसर का अनुभव अनिवार्य किया गया। लेकिन आईपीएन के सूत्रों के मुताबिक कमला नेहरू प्रद्यौगिक संस्थान में एक ऐसे निदेशक केएसवर्मा की नियुक्ति की गयी थी, जिसकी कार्यभार के समय उम्र 43 वर्ष, 09 माह, 27 दिन तथा प्रोफेसर का अनुभव मात्र 01 वर्ष, 03 माह, 09 दिन था।
प्रदेश सरकार द्वारा संस्थान के सर्वोच्च पद पर इस प्रकार की नियुक्ति एक गम्भीर अनियमितता की, जो उच्चस्तरीय जाँच का विषय है, परन्तु प्रकरण को लगातार दबाया जा रहा है। यहाँ तक कि केएस वर्मा का कार्यकाल जनवरी 2013 में समाप्त भी हो गया लेकिन दबंगई और राजनैतिक पकड़ की वजह से आजतक पद पर बने हुये हैं। नियमानुसार कार्यभार समाप्त होने के 06 माह पूर्व ही प्रशासनिक नीति-निर्णय के अधिकार समाप्त हो जाते हैं। यह शर्त सेवानिवृत्त होने पर भी लागू होती है, परन्तु केएस वर्मा पर यह भी लागू नहीं होता, क्योंकि आगामी 10 अक्टूबर को संस्थान के निदेशक पद के लिए साक्षात्कार का जो समय निर्धारित हुआ है, उसके चयनसमिति के सदस्यों का निर्धारण भी कार्यवाहक निदेशक एवं उम्मीदवार केएस वर्मा ने स्वयं किया है।
28 सितम्बर 2014 को संस्थान में प्रदेश सरकार के प्राविधिक शिक्षा मंत्री शिवाकान्त ओझा के दौरे को लेकर कार्यवाही किये जाने के भी संकेत मिले थे, लेकिन दौरे के बाद किसी प्रकार की कार्यवाही का कोई सुराख नहीं है। जबकि मंत्री जी के दौरे को लेकर संस्थान के शिक्षकों एवं कर्मचारियों का एक गुट लामबंद होता नजर आया था, लेकिन मंत्री जी के सामने ‘बिल्ली के गले मे घंटी कौन बाँधे ?’ वाली कहावत ही सामने आयी। केएस वर्मा के राजनैतिक रसूख के आगे कर्मिकों ने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी और मामला वहीं का वहीं दबाने में केएस वर्मा की लाबी सफल हुई, जबकि उस समय वर्मा संस्थान में उपस्थित नहीं थे। कई शिक्षकों एवं कर्मचारियों ने केएस वर्मा के भ्रष्टाचार को अनेकों बार उच्चस्तर तक पहुंचाया भी है, परन्तु उन्हें यातना ही झेलनी पड़ी है। जैसे दिवाकर जोशी एवं कमलेश कुमार को केएस वर्मा ने बिना किसी आरोप के निलम्बित भी कर दिया था। यही नहीं सहायक आचार्य आरुणी सिंह को कार्य करने के बाद भी 09 माह तक वेतन ही नहीं दिया गया।
केएनआईटी, सुल्तानपुर में कोई भी शिक्षक प्रताड़ित किए जाने के डर से कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हुआ। हालांकि नाम न छापने की शर्त पर इस मामले और इसके साथ अन्य कई भ्रष्टाचार के मामलों में कार्यवाहक निदेशक के संलिप्त होने की बात साक्ष्यों के साथ ऊजागर की गयी, लेकिन जब कार्यवाहक निदेशक केएस वर्मा से इस सम्बन्ध में जानकारी चाही गयी तो हफ्तों के टालामटोली के बाद भी उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला।
लखनऊ से योगेन्द्र श्रीवास्तव की विशेष रिपोर्ट.