Vinay Bihari Singh-
अलविदा कृष्णा। कृष्ण कुमार शाह। तुम्हारी मृत देह का फोटो ज्यादा देर तक देखना संभव नहीं है। लिखते हुए आंसू रोक रहा हूं । तुम्हारे जैसा सरल, सहज, निष्कपट और निर्मल व्यक्ति मिलना दुर्लभ है। तुम कहा करते थे कि रिटायर होने के बाद मैं और तुम पुराने दिनों की याद करेंगे। लेकिन रिटायर होने के पहले ही तुम ब्रेन हेमरेज के शिकार हो गए। पुरानी यादें धरी की धरी रह गईं।
कृष्णा और मैं इंडियन एक्सप्रेस समूह के हिंदी समाचार पत्र “जनसत्ता” से लगभग एक ही साथ रिटायर हुए।
सन 2012 के दिसंबर के आसपास। मैंने इस अखबार में कृष्णा के साथ लगातार 21 साल से ज्यादा काम किया। अनेक वर्षों तक “जनसत्ता” कार्यालय में कृष्णा मेरे बगल में बैठा। अस्वस्थ होने के पहले तक। रिटायर होने के तीन साल पहले उसे ब्रेन हेमरेज हुआ। फिर उसकी मानसिक स्थिति पहले जैसी नहीं रही। फोन करने पर “हूं”, “हां” के अलावा कुछ नहीं बोलता था। कई बार तो लगता कि वह गुमसुम और चुपचाप है। कुछ बोलना नहीं चाहता है। बीमारी आदमी को क्या से क्या कर देती है। अपने जीवंत स्वभाव के बिल्कुल उल्टा हो गया था वह। हार कर भाभी जी (कृष्णा की आदरणीय धर्मपत्नी) से हालचाल जानना पड़ता था।
कृष्णा के दो मेधावी बेटों और भाभी जी ने हर अच्छे अस्पताल में उसका इलाज कराया लेकिन कृष्णा पहले जैसा स्वस्थ नहीं हो पाया। कृष्णा खूब लिखता था। बोलचाल की भाषा में हम उसे लिक्खाड़ कहते थे। किस घटना पर रिपोर्टिंग करनी है, आप बता दीजिए। ऐसा रच के लिख देता था कि रिपोर्ट पठनीय हो जाती थी। वह इतना शांत व्यक्ति था कि आपके मन में उसके प्रति कोई भी शिकायत हो ही नहीं सकती थी। झगड़े की हर संभावना को वह खारिज कर देता था।
शाम को कार्यालय में खाने के लिए वह पार्ले जी का छोटा पैकेट रखता था। मुझे खिलाए बिना बिस्कुट नहीं खाता था। मजाक में उस बिस्कुट पर मैं अपना अधिकार जमाने लगा। वह मेरा यह अधिकार भी स्वीकार कर लेता था। सुगर की बीमारी से पीड़ित होने के पहले तक वह कार्यालय में रोज दो मिठाइयां लाता था। एक मुझे देकर तभी दूसरी मिठाई खाता था। किसी दिन मैं बाहर चला गया तो उसकी मिठाई नहीं खा पाता था। तो उससे शिकायत करता- “कृष्णा, कल वाली मिठाई मैं मिस कर रहा हूं” तो वह तपाक से हंसते हुए कहता- “तो आज दो पीस खा लो।” आप उससे कोई शिकायत कर ही नहीं सकते थे। किसी भी मामले में।
कृष्णा तुम इस पृथ्वी से चले गए लेकिन हमारे हृदय में हमेशा रहोगे। तुम्हारे जैसा सहकर्मी, मित्र और आत्मीय मिलना मुश्किल है। मैं उपसंपादक था। लेकिन अंतिम 10 वर्षों में रिपोर्टर की तरह भी काम किया। वह मेरे साथ कुछेक प्रेस कांफ्रेंसेज में जाता था। एक अखबार के दो रिपोर्टर, एक ही प्रेस कांफ्रेंस में। क्यों? क्योंकि उसे जिस प्रेस कांफ्रेस में जाना था, उसमें दो घंटे की देर होती थी। इस बीच मुझे जो प्रेस कांफ्रेस कवर करना है, उसमें वह आ जाता था। वह भी प्वाइंट्स नोट करता था और कहता था- “यार, यह प्वाइंट इंपार्टेंट है।” मैं कहता- कृष्णा, मैंने आलरेडी नोट कर रखा है। तो वह विनम्रता से कहता- “बुरा मत मानो, मैंने भी नोट किया है तो सोचा कि तुमको कह दूं।” वह चीफ रिपोर्टर था। लेकिन हम उम्र होने के कारण मैं उसकी कई बातें इग्नोर कर देता था। फिर भी वह प्रेम से मिलता, बात करता और कहता- “आज पेड़ा लाया हूं, खाओगे?” आप ऐसे आत्मीय व्यक्ति से कैसे नाराज हो सकते हैं?
पहले वामफ्रंट के राज में “कोलकाता बंद” हुआ करता था। एक भी वाहन नहीं चलता था। न बस, न टैक्सी। आफिस से हमारे घर कार आती थी ताकि हम आराम से अखबार निकाल सकें। कृष्णा आफिस की गाड़ी लेकर मेरे घर आ जाता था और मजाक करता- “यार कुछ खाऊंगा नहीं। तुम बस तैयार हो कर आफिस चलो।” मैं जानता था, वह मिठाई और नमकीन पसंद करता है। जलपान के बाद वह आफिस में और अपने घर में इसी जलपान चर्चा को अतिश्योक्ति अलंकार के साथ बताता रहता था। लेकिन कंप्यूटर पर बैठ कर रिपोर्ट लिखते समय वह अत्यंत गंभीर और एकाग्रचित्त रहता था। अलविदा मित्र, तुम हमारे दिल में हो और हमेशा रहोगे। ऊं शांति, शांति, शांति।