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अजमेर से निकलने वाले दैनिक भास्कर को क्या हो गया है? जरा इस न्यूज को तो देखिए

: मंत्री के सादगी से मनाए जन्मदिन में दो हजार का जीमण? : अजमेर से निकलने वाले दैनिक भास्कर को क्या हो गया है? खबर बनाते, उसका सम्पादन करते, पेज जांचते समय कोई यह देखने वाला नहीं है कि खबर क्या जा रही है। एक-दो साल पुरानी खबरों को ज्यों की त्यों छापने से भी जब पेट नहीं भरा तो अब भास्कर ने सारे शहर की आंखों में धूल झोंकने का काम शुरू कर दिया है। रविवार, 11 जनवरी 2015 का दिन था। वसुंधरा सरकार के एक मंत्री का जन्मदिन। मंत्री ने एक दिन पहले सारे अखबारों को प्रेस नोट भिजवा दिया, मंत्री जी सादगी से मनाएंगे जन्मदिन। पत्रकारों को मंत्री ने खुद फोन किया। गद्गद पत्रकार नतमस्तक हो गए। अब जरा मंत्री की सादगी पर गौर कीजिए।

: मंत्री के सादगी से मनाए जन्मदिन में दो हजार का जीमण? : अजमेर से निकलने वाले दैनिक भास्कर को क्या हो गया है? खबर बनाते, उसका सम्पादन करते, पेज जांचते समय कोई यह देखने वाला नहीं है कि खबर क्या जा रही है। एक-दो साल पुरानी खबरों को ज्यों की त्यों छापने से भी जब पेट नहीं भरा तो अब भास्कर ने सारे शहर की आंखों में धूल झोंकने का काम शुरू कर दिया है। रविवार, 11 जनवरी 2015 का दिन था। वसुंधरा सरकार के एक मंत्री का जन्मदिन। मंत्री ने एक दिन पहले सारे अखबारों को प्रेस नोट भिजवा दिया, मंत्री जी सादगी से मनाएंगे जन्मदिन। पत्रकारों को मंत्री ने खुद फोन किया। गद्गद पत्रकार नतमस्तक हो गए। अब जरा मंत्री की सादगी पर गौर कीजिए।

सुबह आर्य समाज के अनाथ आश्रम में हवन और अल्पाहार किया। वहां अपने विधायक कोष से दिए गए पांच कंम्प्यूटरों और एक प्रिंटर शुरू किए और अनाथ आश्रम द्वारा तैयार कराए गए कंप्यूटर कक्ष का फीता काटा। गौर कर रहे हैं आप मंत्री ने खुद के नहीं विधायक कोष से दिए गए कंप्यूटर-प्रिंटर और आश्रम के ही एक कमरे का फीता काटा। अल्पाहार की व्यवस्था भी मंत्री की खुद की नहीं थी। खास बात आश्रम के अध्यक्ष पांच दफा अजमेर के सांसद रहे हैं।

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अजमेर विकास प्राधिकरण की ओर से आनासागर झील के किनारे सवा करोड़ रूपए की लागत से बनाए जाने वाले पाथ वे का उद्घाटन किया। खुद के धेले की एक पाई नहीं। नाश्ता और सारा तामझाम अजमेर विकास प्राधिकरण का। इतवार के बावजूद सारे अफसर मंत्री और उसके चेले चपाटों की चाकरी में मौजूद। आधा दर्जन से ज्यादा स्कूलें रविवार होने के बावजूद खोली गईं। कुछ एक्टिव बच्चे-बच्चियां बुलाए गए। मौखिक फरमान था मंत्री जी का जन्मदिन है, कुछ करना है। पढाई जाए भाड़ में। मास्साब-मैडमों को तबादला/प्रमोशन जरूरी था। मंत्री का खास साबित होने की प्रतियोगिता शुरू हो गई। एक स्कूल के मास्साब-मैडमों ने स्कूल में ही मंत्री को लड्डुओं से तौला। एक स्कूल के मास्साब-मैडमों ने स्कूल में ही अपना खून दान कर डाला।

एक स्कूल के मास्साब-मैडमों ने पौधे लगवा डाले, बड़ी मैडम ने मंत्री को भी तुलसी लगा एक गमला मंत्री की हथेली में रख दिया। बच्चों को मंत्री से पेड़ और पर्यावरण पर उपदेश सुना डाला। एक स्कूल के मास्साब-मैडमों और में सरकारी योजना मंे बने तीन कमरों का फीता कटवा दिया। मास्साब-मैडमों के एक संगठन ने मंत्री को साफा पहनाया और हाथ में तलवार थमा दी। लोकतंत्र में मंत्री के हाथों किसकी हत्या का इरादा है मास्साबों ? और दांत निपोरते मंत्री किस पर तलवार चलाने का इरादा है। कभी अपने सास-ससुर, मां-बाप का जन्मदिन नहीं मनाने वाले इन मास्साबों-मैडमों ने लड़डू बांटे, बंटवाएं, केक काटे-कटवाए, बैंड बाजे बजवाए।

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मंत्री के चेले चपाटों ने शहर-भर में बधाई के बड़े-बड़े पोस्टर लगवाकर और अखबारों में पूरे पेज के विज्ञापन देकर मोदी के सफाई, सादगी,फिजूलखर्ची और सुंदरता के नारे की हवा निकाल दी। मंत्री ने एक अनाथ आश्रम में भी बुजुर्गों के हाल चाल जाने। यह अनाथ आश्रम भी भाजपा नेताओं की सरपरस्ती में चलता है। दिखावे के लिए थोड़ी दूरी तक साइकिल चलाई। अपने शागिर्दों की महंगी कारों में पुष्कर और नारेली तीर्थ पूजा। गायों को चारा भी खिलाया।

दोपहर बाद अपने घर पर सुंदरकांड का पाठ कराया और उसके बाद प्रसादी के नाम पर महाभोज कराया। मंत्री का भोज था। मंत्री से संतरी तक जुटे। अपने संपादकों के आगे पत्रकारों की बिसात क्या, मंत्री के चरणों में लोट लगाते नजर आए।  तोहफा भी कबूल किया। करीब दो हजार लोगों ने जमकर भोजन किया। मोदी के नारे, ‘न खाउंगा, ना खाने दूंगा’ को अपने भाषणों में दोहराने, तालियां पिटवाने वाले, पारदर्शिता का दावा करने वाले मंत्री क्या इस जीमण, निमंत्रण पत्र, सुंदरकांड के आयोजन पर हुए खर्च का ब्यौरा देने की हिम्मत रखते हैं।

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पता नहीं भास्कर के पत्रकारों-संपादकों को इतने आयोजनों के बावजूद कहां-कैसी सादगी नजर आई। कुछ पत्रकार तो बाकायदा हिमायत में खडे़ नजर आए बेचारे मंत्री जी तो सादगी चाहते थे, उनके चेलों ने सब पर पानी फेर दिया। अरे कोई मंत्री की गर्दन पर बंदूक रखकर क्या यह सब करवा रहा था। शिलान्यास, उद्घाटन, भाषण, बैनर, विज्ञापन, महाभोज अगर सादगी का नाम है तो धन्य है ऐसी पत्रकारिता। इतना ही क्यों मिनट टू मिनट का कवरेज।

एक बॉक्स न्यूज है 11 तारीख, 11 बजकर, 11 मिनट पर लोकार्पण। भइया हद है चमचागिरी और चापलूसी की भी। दूसरी बॉक्स न्यूज है जन्मदिन का शानदार तोहफा। केन्टोनमेट बोर्ड के चुनावों में छह में से चार सीटों पर भाजपा की जीत। अरे क्या सचमुच घास चरने चली गई अक्ल। कांग्रेस ने तो चुनाव ही नहीं लड़ा। दो सांसदों जिनमें से एक राज्य मंत्री, दूसरा भाजपा का राष्ट्रीय महामंत्री और दो राजस्थान सरकार के मंत्री और फिर छह में से चार पर भाजपा की जीत। कांग्रेस मैदान में नहीं, सामने सभी निर्दलीय। इनमें भी एक जीत सिर्फ चार मतों की। यह है अक्ल पत्रकारों की और फिर मांगते हैं मजीठिया। यह तो बात हुई पत्रकारों की परंतु अपनी पार्टी की सरकार के एक मंत्री की इस सादगी पर प्रधानमंत्री मोदी की नीति क्या होगी? 

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एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.

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