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सुख-दुख

पंकज श्रीवास्तव ने अपनी पत्नी के जरिए भड़ास के खिलाफ मोर्चा खुलवाया

Manisha Srivastava : यशवंत और उसकी भड़ास ! बरदाश्त की भी एक सीमा होती है। भड़ास का मॉडरेटर यशवंतसिंह जिस तरह मेरे पति पंकज श्रीवास्तव के खिलाफ घृणित अभियान चला रहा है, उसके बाद मेरे लिए चुप रहना मुश्किल है। हाँलाकि पंकज उसके ख़िलाफ एक शब्द न बोल रहे हैं और न ही लिख रहे हैं, पर चूंकि यशवंत ने उन्हें परेशान न करने का अपना वादा तोड़ दिया है, इसलिए उसे आईना दिखाना ज़रूरी है। खासतौर पर जब पंकज पूंजी की पत्रकारिता पर पड़े नकाब को नोचने में जुटे हैं और इसकी कोई भी कीमत चुकाने के लिए तैयार हैं।

<p>Manisha Srivastava : यशवंत और उसकी भड़ास ! बरदाश्त की भी एक सीमा होती है। भड़ास का मॉडरेटर यशवंतसिंह जिस तरह मेरे पति पंकज श्रीवास्तव के खिलाफ घृणित अभियान चला रहा है, उसके बाद मेरे लिए चुप रहना मुश्किल है। हाँलाकि पंकज उसके ख़िलाफ एक शब्द न बोल रहे हैं और न ही लिख रहे हैं, पर चूंकि यशवंत ने उन्हें परेशान न करने का अपना वादा तोड़ दिया है, इसलिए उसे आईना दिखाना ज़रूरी है। खासतौर पर जब पंकज पूंजी की पत्रकारिता पर पड़े नकाब को नोचने में जुटे हैं और इसकी कोई भी कीमत चुकाने के लिए तैयार हैं।</p>

Manisha Srivastava : यशवंत और उसकी भड़ास ! बरदाश्त की भी एक सीमा होती है। भड़ास का मॉडरेटर यशवंतसिंह जिस तरह मेरे पति पंकज श्रीवास्तव के खिलाफ घृणित अभियान चला रहा है, उसके बाद मेरे लिए चुप रहना मुश्किल है। हाँलाकि पंकज उसके ख़िलाफ एक शब्द न बोल रहे हैं और न ही लिख रहे हैं, पर चूंकि यशवंत ने उन्हें परेशान न करने का अपना वादा तोड़ दिया है, इसलिए उसे आईना दिखाना ज़रूरी है। खासतौर पर जब पंकज पूंजी की पत्रकारिता पर पड़े नकाब को नोचने में जुटे हैं और इसकी कोई भी कीमत चुकाने के लिए तैयार हैं।

ये वही यशवंत है जो पंकज को इलाहाबाद विश्वविद्यालय से लेकर लंबे पत्रकारीय जीवन में अपना बड़ा भाई, गार्जियन यहां तक कि आदर्श मानता था। जब पंकज सड़क पर खड़े होकर ढफली बजाते हुए क्रांति के गीत गाते थे तो वह पीछे कोरस में रहता था। लेकिन करीब सात साल पहले दिल्ली में जब उसने एक दलित कॉमरेड की बेटी के साथ रेप की कोशिश की और हवालात पहुंचा तो पंकज ने उससे बात करना बंद कर दिया। उसकी तमाम कोशिशों के बावजूद यशवंत पंकज की जिंदगी ही नहीं, फोन में भी दाखिल नहीं हो पाया। 

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पंकज का जन्मदिन 3 जुलाई है। 2011 की 7 जुलाई को फेसबुक के मैसेजबाक्स में यशवंत ने बधाई लिखी तो उन्होंने भी शुक्रिया कहने की औपचारिकता निभा दी। 8जुलाई को यशवंत ने बात आगे बढ़ाने की कोशिश की तो क्या हुआ, आप लोग खुद पढ़ लें। आप को पता चल जाएगा कि यशवंत किस चीज की भड़ास निकाल रहे हैं–


Conversation started 7 जुलाई 2011
Yashwant Singh
07-07-2011 09:59 अपराह्न
Yashwant Singh
जन्मदिन की बधाई पंकज भाई.
Pankaj Srivastava
07-07-2011 10:00 अपराह्न
Pankaj Srivastava
शुक्रिया..
8 जुलाई 2011
Yashwant Singh
08-07-2011 09:25 पूर्वाह्न
Yashwant Singh
लगत ह जवाब देवे में बड़ा मेहनत पड़ गईल है… न एक शब्द एधर न एक शब्द ओधर… सिरफ… शुक्रिया… दस बीस साल में तोहूं मरबा और हमहूं… त तोहार अंइठनवा भी साथ चल जाई…. बुझला बाबू…. चला, हमहूं तोहरे शुक्रिया खातिर शुक्रिया बोल देत हंई….
Pankaj Srivastava
08-07-2011 09:33 पूर्वाह्न
Pankaj Srivastava
कभी सोचना कि इस ऐंठन की वजह क्या है…हम लोगों की एकता का आधार कुछ मूल्य और विचार थे…जब वही नहीं रहे तो फिर किसी रिश्ते का मतलब क्या है……वैसे, ज्ञानदान का शुक्रिया…पर मैं अपने लिए दस-बीस नहीं, दो चार साल की भी गारंटी करने में असमर्थ हूं। बाकी तुम जियो हजारों साल… फूलो-फलो…
Yashwant Singh
08-07-2011 12:18 अपराह्न
Yashwant Singh
हम लोगों की एकता का आधार कुछ मूल्य और विचार थे…..
ठीक से अंदर देखना पंकज भाई, ये मूल्य व विचार किसने ज्यादा बचा रखे हैं, कौन इस पर ज्यादा जी रहा है, कर रहा है, लड़ रहा है, चल रहा है…
और, जो वाकई कुछ मूल्य व विचार पर चलता है वह विनम्र होता है, झुकता है, प्यारा होता है, ऐंठता नहीं है, गुमान नहीं पालता है….
वैसे, इस देश में हर किसी को मुगालते पालकर खुश होने का अधिकार है…. आप श्रेष्ठ बने रहें, आपकी श्रेष्ठता आपको मुबारक…
Pankaj Srivastava
08-07-2011 01:38 अपराह्न
Pankaj Srivastava
मैंने ये कब कहा कि मैंने मूल्यों को बचा रखा है। मुझे ये मानने में कोई दिक्कत नहीं कि तुम ज्यादा साहसी और रचनात्मक हो। जो अराजकताएं हैं, वो पहले भी थीं तुममे, जिनके बावजूद मैंने तुम्हें छोटे भाई जैसा मान दिया था। पर हुआ ये कि तुम्हारी याद आते ही मेरी आंख के सामने उस साथी का चेहरा नाचने लगता है। …इसलिए ये भरोसा टूटने का मामला है। वैसे भी भाई जब अलग राह पर चले जाते हैं तो दोस्त नहीं रह जाते। मैं तुम्हारे साथ सहज नहीं रह पाता। बात बस इतनी है। वैसे मेरी शुभकामनाएं हमेशा तुम्हारे साथ हैं।…पता नहीं क्यों मैं निकट के लोगों में कुछ बेहद बुनियादी किस्म की ईमानदारी चाहता हूं। इस कसौटी पर खुद को भी हमेशा कसता रहता हूं। ….वैसे, अब बहस नहीं करना चाहूंगा। जो किया, उसके लिए भी तुम्हारी जिद ही जिम्मेदार है। यही तुम्हारी ताकत है…
9 जुलाई 2011
Yashwant Singh
09-07-2011 11:39 पूर्वाह्न
Yashwant Singh
मैं अपने को अपनी संपूर्ण बुराइयों और अराजकताओं के साथ खूब प्यार करता हूं और गर्व करता हूं. गुण-अवगुण, अच्छा-बुरा, ईमानदारी-बेईमानी….. सब बाद में सोचता हूं, पहले जीवन जीता हूं….. और जीवन खांचों से परे होता है…. संपूर्णता में होता है…. जिसमें अच्छा-बुरा अलग अलग नहीं, वैकल्पिक नहीं बल्कि एक साथ होते हैं…. हर अच्छे में बुरा होता है और हर बुरे में अच्छा…. यही ईमानदारी और बेईमानी भी है…. कई बार कोई अपनी ईमानदारी को परिभाषित नहीं कर पाता सो वह बेईमान बन जाता है और कई बार बेईमान अच्छी परिभाषा गढ़कर अपने को ईमानदार घोषित कर देता है… भारतीय राजतंत्र, व्यवस्था, जीवनचर्या में हम आप रोज यह सब देखते रहते हैं…. रही किसी एक प्रकरण की बात तो मैं अपने जीवन से जुड़े सभी प्रकरणों विवादों में खुद को मुख्य आरोपी मानता हूं…. और ऐसा करके मैं कोई महान या नीच नहीं बन रहा बल्कि गल्तियां करते सीखते आगे बढ़ते खुद को ज्यादा समृद्ध और सहज पाता हूं….
पर मुझे आपसे कल भी प्यार था, आज भी है, आगे भी रहेगा… मैं अपने किसी दोस्त, करीबी, जानकार को इसलिए नहीं त्याग सकता कि वह कभी बुरा हो गया था.. बल्कि उसके बुरे होने के चलते आए मुश्किल क्षणों में उसके साथ मैं और मजबूती से खड़ा होता हूं…. और ऐसा करके एक आदमी को टूटने व डिप्रेस्ड होकर खत्म होने से बचा पाता हूं और उसे सीखकर आगे जाने को प्रेरित कर पाता हूं…. शायद, अपने निजी अनुभवों के कारण मैं कथित बुरे लोगों के पक्ष में ज्यादा खड़े होने लगा हूं, खुलेआम स्टैंड लेकर,,, क्योंकि मुझमें उनमें अच्छा बनने की सबसे ज्यादा संभावना दिखती है…. किताबी अच्छा बुरा पढ़कर अगर लोग अच्छा बुरा हो रहे होते तो दुनिया का नक्शा जाने क्या होता… खैर..
आपसे मैं इतना क्यों बात कर रहा हूं, मुझे खुद नहीं पता. लेकिन यह ठीक हो रहा है कि जीते जी संवाद हो रहा है हम लोगों का.. पता है, मैंने हमेशा आपको सिर पर हाथ रखने वाले गार्जियन की तरह जिया और पाया है,,, और वो रूप जब दिल्ली में न देखा तो मैं अपने हक के लिए आपके प्रति बदतमीज हो गया…. पर बाद में मुझे लगा कि मैं ऐसी जिद क्यों पाले हूं.. समय बदलने के साथ लोगों की पोजीशन बदलने लगती है… और मैं उसी पोजीशन की मांग कर रहा था…. खैर, दिल तो बच्चा है जी… आपने जो मेरी तारीफ की है, उसके लिए दिल से आभार कहता हूं, सच में, मुझे उम्मीद नहीं थी कि आपको मेरे में कुछ अच्छाई भी बची मिलेगी… अब मैं अपनी ‘ताकत’ का नाजायज इस्तेमाल नहीं करूंगा…. क्योंकि जब देने वाला देना नहीं चाहता तो मांगने वालों की क्या… बहुत मारे मारे मांगते फिरते रहते हैं….
जय हिंद साथी, लव यू, जहां रहें खुश रहे, प्रसन्न रहें
अब आपको कभी किसी तरह परेशान न करूंगा….
या हू…..

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रही आईबीएन7 से निकाले गए 365 लोगों की बात तो उनकी लड़ाई कौन लड़ सकता है जो अपनी लड़ाई के लिये हथियार उठाना तो दूर खड़े भी नहीं हो सकते। मैंने खुद कहा था कि क्या ये लोग कोर्ट जायेंगे तब उन्होंने बताया कि कोई नहीं जा रहा लोगों ने दस लाख तक मुआवज़ा लिया है और नौकरी दिलाने में उनका मदद की गई ज्यातर को मिल भी गई। यहाँ तक कि जब ibn7के आगे प्रदर्शन हुआ उसमें कोई एक व्यक्ति भी निकाले गये लोगों में से नहीं था।

पंकज श्रीवास्तव की पत्नी मनीषा श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से. उपरोक्त स्टेटस पर यशवंत ने जो कुछ कमेंट के रूप में लिखा है, वह इस प्रकार है…

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Yashwant Singh : यशवंत सिंह मुर्दाबाद। पंकज भैया अमर रहे। किसी के निजी चैट को सार्वजनिक करके कौन सी नैतिक्ता का परिचय दे रहीं हैं मनीषा सिंह। जाहिर है। पंकज से हुयी चैट को उनकी सहमति से ही आपने छापा होगा यहाँ। मतलब ये कि पंकज चुप निःशब्द नहीं हैं यशवंत को लेकर। वैसे, chat में मैंने क्या सुन्दर सुन्दर लिखा है। इसी को ध्यान से पढ़ लिए होते तो समझ में आ जाता कि इसमें भी पंकज को आइना दिखाया है। अच्छा किया आपने पढ़ाकर। ये सब भी शातिराना और मक्कारी का ही खेल है। पंकज को भी नौकरी दिला देंगे सुमित अवस्थी। काहें हाय हाय कर रही हैं। जब 365 लोग निकाले गए तब बड़ी ‪पूंजी‬ का ‪खेल नहीं दिखा‬। अब एक पंकज की पूर्व निर्धारित बर्खास्तगी से क्रान्ति और देश पे संकट दिखने लगा। चूमने की कोशिश करने के आरोप से ‘कामरेड्स’ के ठीक से पैरवी ना करने के कारण बरी कर दिया गया कोर्ट द्वारा। इस पर कई बार लिख भी चुका हूँ। अब क्या करूँ, कहो तो मैं जान दे दूँ? मुझे मालूम है इस आरोप की आड़ लेकर लोग बार बार असली मुद्दे को डाइवर्ट करने-कराने की कोशिश करते हैं। पंकज की फ़िक्सर और अवसरवादी क्रांतिकारिता निजी हमला नहीं, एक मीडिया ट्रेंड है। ऐसे ट्रेंड्स पर प्रहार होता रहेगा। 4 साल पुराना chat अब तक save रखकर और मेरी बिना सहमति के सार्वजनिक करके यह तो बता ही दिया कि आप लोग कितने नैतिक हैं और यह भी कि chat के वादानुसार मैंने 4 साल तक और अभी तक पंकज को निजी तौर पर परेशान नहीं किया। जनहित के मुद्दे पर बात होगी, चाहें उससे पंकज जुड़े हों या पीएम. जय हिन्द साथियों, दुश्मनों.

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