वाराणसी : ओंकार नाथ तिवारी, उम्र 16 साल, सपना था सेना में जाकर देशसेवा का, पर अब शायद कभी उसका ये सपना पूरा नहीं होगा। कारण चिकित्सा के नाम पर धन उगाही का केन्द्र बने नर्सिंग होम और इस काम में उनके सहयोगी बने लोभी और लापरवाह चिकित्सकों के चलते वो अपना दहीना पैर खो चुका है। पैर ही क्यों, चिकित्सकीय लापरवाही के चलते उसकी किडनी और लीवर भी संक्रमित हो चले हैं। चिकित्सकीय लापरवाही का ये नमूना ही है कि 16 साल के घायल इस नौजवान को इलाज के नाम पर नर्सिंग होम के अन्दर 12 घंटे ऐसे ही रख कर छोड़ दिया गया। इस दौरान बड़ा भाई चक्कर काटता रहा लेकिन किसी ने न तो कुछ सुना और न कुछ किया। अब हाल ये है कि ओंकार बनारस में कटे पैर और पस्त हाल के साथ जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रहा है। मां के बहते आंसू और बड़े भाई का प्रयास ही जिदंगी की इस जंग में उसके साथ है।
पूरा मामला बनारस और बिहार के बीच चल रहे चिकित्सा माफिया के उस गठजोड़ से जुड़ा है, जिसके चलते मरीज कहीं के चलते कहीं पहुंचा दिये जा रहे हैं। जहां मोटे मुनाफे के चलते लोभी और जमीर फरोश चिकित्सक और नर्सिंग होम संचालक मरीज के जान से खेलने में जरा भी नहीं हिचक रहे हैं।
बक्सर के रहने वाले ओंकार का बक्सर में ही बाइक दुर्घटना के चलते पैर टूट गया था। घायल ओंकार को लेकर उसके घरवाले सदर अस्पताल पहुंचे तो मौजूद चिकित्सकों ने प्राथमिक उपचार के बाद पटना के पी.एम.सी.एच या बी.एच.यू के लिए रेफर कर दिया। ओंकार के घरवालो के अनुसार रात ही में वो बीएचयू के लिए एम्बुलेंस से चल पड़े लेकीन पहुंच गये बाई पास टोल प्लाजा के करीब स्थित मैक्सवेल अस्पताल।
बड़े भाई की मानें तो अस्तपताल के गेट पर एम्बुलेंस रुकते ही चार आदमी स्ट्रेचर पर घायल भाई को लाद कर अन्दर ले कर चले गए। इसके बाद शु हो गया आर्थिक-मानसिक शोषका दौर। अस्पताल में उनसे जमकर धनउगाही की गई। हर बात पर पैसे की मांग की जाती रही। उधर घायल छोटा भाई 12 घंटे बिना इलाज के तड़पता रहा। 22 अप्रैल को दोपहर 2 बजे कोई डा. बरनवाल आए और और 15 मिनट के अन्दर ही ओंकार के पैर को काटने की बात कही, साथ में कहा गया अगर पैर न काटा तो जान को खतरा है।
पहले से ही मानसिक स्तर पर डरे-सहमे घरवालों के सामने मरता क्या न करता वाले हालात थे। घुटने के नीचे का पैर काट कर अलग कर दिया गया। हफ्ते भर इलाज के नाम पर मनमाना पैसा लिया जाता रहा। अंत में किडनी और लीवर को भी संक्रमित बता खर्च के मीटर को तेज कर दिया गया। इसी बीच बड़े भाई ने ओंकार को बेहतर इलाज के नाम पर नर्सिंग होम के मैनेजर से बीएचयू ले जाने की बात कही तो जवाब मिला, इससे बेहतर इलाज कहीं और नहीं हो सकता। छोटे भाई को मरते हाल में देख अनजाने शहर में बड़े भाई ने अंततः कानून का सहारा लेने की सोची और गुरूवार की शाम लंका थाने पहुंच कर अस्पताल संचालक के नाम पर तहरीर देकर एफआईआर दर्ज करने की मांग की। थाने पर मौजूद एस.ओ रमेश यादव ने अस्पताल पहुंच कर मामले की पड़ताल शुरू की।
दूसरी तरफ अस्पताल वाले सफाई देते रहे, ऐसी कोई बात नहीं है, मरीज का बेहतर से बेहतर इलाज किया गया है। सबूत के तौर पर उन्होंने कागज पर लिखे आधा दर्जन चिकित्सकों की सूची दिखा दी। गौर करने कि बात तो ये है कि ये आाधा दर्जन डाक्टर यहां के स्थाई डाक्टर हैं भी कि नहीं, इस बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं मिल सकी। दूसरी बात ये कि अगर मरीज को लेकर नर्सिंग होम की संवेदना इतनी लबालब थी तो मरीज 12 घंटे बिना इलाज के क्यों पड़ा रहा? इस बारे में नर्सिंग होम संचालक गोल-मोल बात करते रहे। देर रात तक चले विवाद के बाद घरवाले ओंकार को लेकर इलाज के लिए बीएचयू पहुंच तो गए पर साथ ही एक सवाल छोड़ गए कि इसके बाद कौन?
सूत्रों के मुताबिक इन दिनों लंका से लेकर सुंदरपुर-बाईपास तक नर्सिंग होम का कारोबार फल-फूल रहा है। कही बंद कमरों में तो कहीं दड़बेनुमा आईसीयू में बिना किसी मानक को पूरा किए नर्सिंग होम का कारोबार दौड़ रहा है। जहां इलाज के नाम पर मरीज के साथ आए परिवार के लोगों को एटीएम कार्ड की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। इलाज के नाम पर बेसिर-पैर की जांच और दवाइयों की लम्बी सूची से मरीज को कितना फायदा पहुंच रहा है, ये तो पता नहीं पर निजी नर्सिंग होम वालो का कारोबार चल निकला है।
कसाई भी इतनी निर्ममता से जानवरों को हलाल नहीं करता होगा जितनी बेर्ददी से अपने पेशे के मूल्यों और आदर्शों को ताक पर धरकर लालची नर्सिंग होम संचालक और लापरवाह किस्म के डाक्टर मरीज और उसके परीजनों के साथ पेश आते हैं, तो दूसरी तरफ पूरा का पूरा प्रशासनिक अमला पैसे के इस खेल में लोगों की मौत पर मौन साधे है। दलालों के गठजोड़ के आगे सब मौन हैं। शायद इसलिए कि सबका हिस्सा सब तक पहुंच रहा है। ऐसे में जो मर रहा है, जो तबाह हो रहा है, जिसके खेत, गहने सब बिक रहे हैं, उसके बारे में सोचने की फुर्सत किसे है भला। वहीं पीड़ित पक्ष शुक्रवार को भी एफआईआर करवाने थाने पहुंच गया। उनका कहना था कि हमे न्याय चाहिए।
वाराणसी के युवा पत्रकार-लेखक भास्कर गुहा नियोगी से संपर्क : bhaskarniyogi.786@gmail.com