झाबुआ : कंठ तक भ्रष्टाचार में डूबी देश की चिकित्सा व्यवस्था और उसके प्रति नितांत अगंभीर कारपोरेट मीडिया घरानों ने करोड़ो-करोड़ परेशानहाल लोगों से अपनी चिंताएं पूरी तरह हटा ली हैं। संसाधनहीन लोगों और गरीबों के प्रति जैसी उदासीनता सरकारी और प्राइवेट चिकित्सा संस्थान बरत रहे हैं, वही हाल खुद को चौथा खंभा कहने वाला मीडिया का भी है। प्रायः लगता है कि जैसे, देश की पूरी चिकित्सा व्यवस्था पैसे के भूखे इन गिरोहबाजों के चंगुल में फंस गई है। मीडिया घराने चिकित्सा क्षेत्र के विज्ञापनों को लेकर जितने आकुल-व्याकुल दिखते हैं, काश उतना आग्रह परेशान और असहाय मरीजों की मुश्किलों पर भी होता।
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एएमयू के व्यापमं में 25 करोड़ का खेल, मीडिया खामोश, एक ही कमरे के 30 बच्चे बाजी मार ले गए
आज अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के कुछ बच्चो के अभिभावकों का फोन आया। कहा, “आप अपनी पर वॉल ये मसला डाल दें.. हुक्मरानों की कान में तो जंग पड़ा हुआ है.. शायद आपकी चोट से निकल जाए..?” अरे…पता ही ना था कि अपन इतना मजबूत हो चुके हैं..तो सबसे पहले हर संघर्ष में साथ देने के लिए शुक्रिया मित्रों…और चाहूंगा कि सभी मित्र मुझ पर अपना नैतिक दबाव बनाएं रखें।
लालची-लापरवाह चिकित्सा माफिया ने काट डाला युवक का पैर
वाराणसी : ओंकार नाथ तिवारी, उम्र 16 साल, सपना था सेना में जाकर देशसेवा का, पर अब शायद कभी उसका ये सपना पूरा नहीं होगा। कारण चिकित्सा के नाम पर धन उगाही का केन्द्र बने नर्सिंग होम और इस काम में उनके सहयोगी बने लोभी और लापरवाह चिकित्सकों के चलते वो अपना दहीना पैर खो चुका है। पैर ही क्यों, चिकित्सकीय लापरवाही के चलते उसकी किडनी और लीवर भी संक्रमित हो चले हैं। चिकित्सकीय लापरवाही का ये नमूना ही है कि 16 साल के घायल इस नौजवान को इलाज के नाम पर नर्सिंग होम के अन्दर 12 घंटे ऐसे ही रख कर छोड़ दिया गया। इस दौरान बड़ा भाई चक्कर काटता रहा लेकिन किसी ने न तो कुछ सुना और न कुछ किया। अब हाल ये है कि ओंकार बनारस में कटे पैर और पस्त हाल के साथ जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रहा है। मां के बहते आंसू और बड़े भाई का प्रयास ही जिदंगी की इस जंग में उसके साथ है।
भ्रष्टाचार विरोधी कार्रवाई की कीमत चुका रहे एम्स के अधिकारी संजीव चतुर्वेदी
नई दिल्ली : एम्स (ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस) के अधिकारी संजीव चतुर्वेदी आज भी भ्रष्टतंत्र विरोधी अपनी ईमानदारी की कीमत चुका रहे हैं। उन्हें एक तरह से साइडलाइन कर दिया गया है। आरटीआई से पता चला है कि आंतरिक प्रताड़ना के शिकार चतुर्वेदी को न तो कहीं स्थानांतरित किया जा रहा है, न उनसे और कोई काम लिया जा रहा है। उनकी फाइल केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के पास जाकर अटक गई है।