Vishwa Deepak-
अगर पानीपत की दूसरी लड़ाई में हेमू की आंख में तीर नहीं लगता तो क्या भारत का इतिहास दूसरा नहीं होता? अकबर का क्या होता तब?
अगर शेर शाह सूरी की कालिंजर के दुर्ग में असमय मौत नहीं होती तो क्या मुगल वंश की पुनर्स्थापना हो पाती? अगर सिराजुद्दौला को धोखा नहीं मिलता तो क्या अंग्रेज़ भारत को गुलाम बना पाते?
सवाल उमड़-घुमड़ रहे कई दिनों से. हाल ही में शरद पावर ने कहा कि 2002 के गुजरात दंगों के बाद कांग्रेस के कई नेता/मंत्री मोदी के ख़िलाफ़ कड़ी करवाई के पक्ष में थे लेकिन मनमोहन सिंह और शरद पावर ने ऐसा नहीं होने दिया.
इन लोगों का मानना था कि बदले की भावना से कार्रवाई नहीं होनी चहिए. ऐसा नहीं है कि यह बात किसी को पता नहीं थी. पता तो थी ही. बस, शरद पवार ने जाते हुए साल के अंत में एक दमदार मुहर लगा दी.
शरद पवार ने कहा कि मनमोहन सिंह सरकार के कई लोग मोदी (तब गुजरात के मुख्यमंत्री) के खिलाफ़ कड़ी कार्रवाई के पक्षधर थे लेकिन उन्होंने (शरद पवार) और मनमोहन सिंह ने हस्तक्षेप किया. कहा बदले- भावना से कार्रवाई नहीं होनी चाहिए.
आज उस रियायत का परिणाम पूरा देश भुगत रहा है. देश छोड़िए. देश तो बड़ी इकाई है, एक-एक व्यक्ति भुगत रहा है. अगर कांग्रेस ने कड़ी कारवाई की होती तो क्या भारत का वर्तमान दूसरा नहीं होता?
Sikander Hayat
कांग्रेस चाहती तो 2004 बड़े आराम से मोदी को जेल में डाल सकती थी बहुत से भाजपाई भी अंदर खाने यही चाहते होंगे मगर ओवरस्मार्ट कोंग्रेसी यही सोचते रहे की मोदी जैसा अयोग्य इंसान आ जाएगा ये डर से भारत की कुछ समझदार जनता भी और मुसलमान भी हमे वोट करता रहेगा फिर दूसरे की आलस में ये सोशल मीडिया गोदी मीडिया के असर का आकलन नहीं कर पाए ,
Vishwa Deepak
आंकलन में गलती थी
Sikander Hayat
2013 मुज्जफरनगर दंगा तो पाकिस्तान में दो भाइयो की हत्या का वीडियो मुज्जफरनगर कव्वाल का बता कर वायरल किया गया। मुलायम भी सोशल मीडिया को बिलकुल नहीं समझे थे। इनका इरादा हल्का भाजपा के साथ सांठ गांठ में हल्का फुल्का दंगा करके ध्रुवीकरण का था। लेकिन सोशल मीडिया वाट्सअप यूनिवर्सिटी से भड़का कर बड़ा दंगा करवा लिया गया और 73 सीटे ले ली। मुलायम का इरादा 45 सीटे जीतकर पीएम की कुर्सी का था लेकिन उन्हें मिली मोदी के शपथग्रहण में अमित शाह द्वारा हाथ पकड़ कर आगे की कुर्सी .
Jeevan Deep Vishwakarma
सवाल तो यह भी है कि क्या मोदी के खिलाफ जांच बदले की कार्रवाई मानी जाती? फिर जो उन्हें बुलाया जा रहा था आयोग के सामने, वह क्या था?
Vishwa Deepak
अगर आपके हिसाब से आयोग के सामने बुलाया जाना बदले कि कारवाई था तो फिर बदला शब्द का मतलब बदल देना चाहिए
Jeevan Deep Vishwakarma
आयोग के सामने बुलाने का मतलब बदले की कार्रवाई नहीं कह रहे। हम तो ये कहना चाह रहे कि कांग्रेस ने कार्रवाई तो की ही थी तो क्या उसे बदले की कार्रवाई कहा जायेगा? अगर नहीं तो उसमें और क्या होता जिसे रोका गया ताकि बदले की कार्रवाई न हो? कांग्रेस मोदी के मोर्चे पर फेल हुई है, बाकी सभी अगर-मगर सिर्फ बहाने हैं।
मनोज रैदास कबीर
कांग्रेस आरएसएस की जननी है। हेडगेवार कांग्रेसी ही थे । चाहे कुछ भी हो ,मां अपने बच्चों को कभी भी नुकसान नही पहुंचा सकती भले वो बच्चा अपने घर परिवार की बर्बादी का कारण न बन जाए।
अनन्य दीप
कांगेसी तो बहुत थे – सावरकर से लेकर, मालवीय तक.. तिलक, राधाकृष्णन वगैरह सब। लेकिन गांधी-नेहरू की कांग्रेस और उनके पहले की कांग्रेस में ज़मीन-आसमान का अंतर था। NCERT की history book में ही अंतर दिया है। थोड़ा पढ़ लेना चाहिए, generalization से बचना चाहिए।
Vikas Tiwari
बदले की भावना से कार्रवाई !!! महान कांग्रेस ने बदले की भावना से कार्रवाई नहीं की? मासूम और महान कांग्रेस कैसे कर पाती बदले की भावना से कार्रवाई! कांग्रेस के उसूल तो गांधी जी ने सुदृढ किये हैं! सुभाष बाबू के अध्यक्ष पद जीतने पर…से लेकर…चलो छोड़ो..Happy New Love …oops Happy New Year
Sanjay Vaidhya
वाह, वाह, वाह… वही बात जो जागरूक जन जानते और मानते हैं। आखिर कहीं तो मजबूत होना पड़ेगा ना।
Anurag Singh
तो आप मानते है कि कांग्रेस हमेशा से कानून के साथ मजाक करते आयी है? आज आप ने मुहर लगा दिया कि कांग्रेस ने कैसे न्यायतंत्र का मज़ाक बना दिया था।