योगेश बाजपेयी-
लखनऊ : आज एक अजीब वाकया पेश हुआ। सूचना विभाग परिसर में हुआ यूँ कि मैं अपने रूटीन काम निपटा के सूचना भवन के बाहर आया तो देखा कि नावेद भाई (स्वामी नवेदानन्द) कुछ परेशान से दिखे तो मैंने तुरंत उनका हाल जानने कि कोशिश की। उन्होंने बताया कि मेरी मोटरसाइकिल नहीं मिल रही है।
इस दौर में अगर किसी भाई की मोटरसाइकिल गायब हो जाये तो यह कमर टूटने से कम नहीं है। मैंने उनको धर्य बंधाते हुवे यह जानने की कोशिश की कि गाड़ी खड़ी कहाँ थी, तो उन्होंने बताया कि बिल्डिंग के पीछे वाले गेट के पास थी। मैं आश्वस्थ हो गया कि गाड़ी सुरक्षित है।
मैंने उनको व्यवस्थाधिकारी कपिल भाई साहब से मिलाने ले गया। कपिल जी ने भी तत्परता के साथ तुरंत कैमरे में जांच करवाई तो पता चला कि गाड़ी दीक्षा के गंगेश भाई लेकर चले गए हैं।
उनको फ़ोन किया गया तब उनको भी अहसास हुआ और उन्होंने तुरंत गाड़ी भिजवाई। अपनी गाड़ी देखकर नावेद भाई ने राहत की सांस ली और कपिल भाई साहब को धन्यवाद दिया। यहाँ पर ध्यान देने वाली बात है कि क्या किसी पत्रकार भाई की गाड़ी किसी दूसरे स्थान पर खोई होती तो क्या इतनी जल्दी इतनी आसानी से मिल पाती?