

कोरोना के प्रकोप से बचने के लिए जब प्रधानमंत्री मोदी जनता से बाहर न निकलने की गुजारिश कर रहे थे तो उस समय हजारों की संख्या में लोग एक गांव में इकट्ठे हो रहे थे। दूरदराज से आने वालों के वाहनों का ताँता लगा था। न इनके पास मास्क थे और न ही उन्हें मौत की परवाह थी। चिंता थी तो बस अपनी जमा पूँजी को वापस लेने की। लेकिन वहाँ सिर्फ आश्वासन मिला और फिर धमकी का सिलसिला शुरू हुआ। किसी तरह जनता ने जैसे-तैसे कुछ हफ्ते गुजारे तो धन समेटने वाले ठग ही गायब हो गए। न वहाँ धन गिनने वाली मशीन थी न धनकुबेर।
जी हाँ, यह घटना है पश्चिमी उत्तर प्रदेश की गढ़मुक्तेश्वर तहसील के अंतर्गत बसे एक गांव चाँदनेर की। यहाँ लोगों का विश्वास जीत चुके अशोक व धर्मपाल ने उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली के कई हजार ग्रामीण, व्यापारी व नौकरी पेशा जनता को चूना लगा दिया।
कुछ वर्ष पहले उन्होंने अपनी कम्पनी निफ्टेक ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड
व अन्य फर्मों के माध्यम से, शेयर मार्किट में अठारह महीने में पैसे दुगना करने का लालच देकर, लोगों से निवेश करवाना शुरू किया था । स्थानीय निवासियों के साथ ही अन्य लोगों ने भरोसा कर अपनी कड़ी मेहनत की कमाई के साथ जमीन और मकान तक बेचकर उन्हें पूँजी दी।
अपनी जालसाजी को कानूनी जामा पहनाने के लिए कम्पनी द्वारा कुछ डीमेट अकाउंट खुलवाए गए और वे कुछ ब्याज देने लगे। लेकिन कम्पनी की आड़ में उन्होंने ठगी शुरू कर दी। इसके अंतर्गत अधिकाँश ग्राहकों के न तो खाते खुले और न ही उनका धन शेयर मार्किट में लगा। कम्पनी के मालिक और उनके एजेंटों ने भारी मात्रा में धन इकट्ठा कर नामी-बेनामी सम्पतियों में लगा दिया। और फिर अंततः वही हुआ जो पोंज़ी घोटालों में होता है। वे चम्पत हो गए।


लेकिन जब तक मामला साफ़ होता नटवरलालों ने अपने फ़ोन नंबर ही बदल दिए। न उनके फ़ोन चलते हैं और न ही उनका कोई अता-पता है।
फिर निफ्टेक ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड
के ऑफिस में कार्यरत कर्मचारी भी सच्चाई न बताकर, उनकी ऊँची पहुँच का हवाला देकर लोगों को धमकाने लगें कि सबूत के अभाव में उनका पुलिस और अदालत कुछ नहीं बिगाड़ सकती। अब RTF 71, रॉयल टावर मार्किट, शिप्रा सन सिटी, इंदिरापुरम, उत्तर प्रदेश स्थित इसके मुख्य आफिस के अतिरिक्त अन्य ब्रांच आफिस बंद है। लैपटॉप तमाम तरह के कागजात, भारी मात्रा में इकट्ठे हुए कैश, धन गिनने की अनेक मशीनों का कोई पता नहीं। अपने ही घर पर तथाकथित कंपनियों का काम देखने वाले कर्मचारी आराम की मुद्रा में हैं।
इसी माह कुछ पीड़ितों ने तथाकथित भगोड़े और कुछ एजेंटों के खिलाफ नामपनाही रिपोर्ट थाना बहादुरगढ़ डेहरा कुटी, जिला हापुड़ व थाना नरसैना, जिला बुलंदशहर में दर्ज कराई। कुछ एजेंट पकडे भी गए परन्तु कम्पनी के निदेशक सपरिवार अभी तक भी पुलिस की पकड़ से बाहर हैं। अनुमान लगाया जा रहा है कि कम से कम 5000 करोड़ की धोखाधड़ी के अभियुक्तों ने भारी संख्या में हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, कर्नाटक और विदेश तक में नामी -बेनामी संपत्ति खरीदीं हैं।
कुछ ग्रामीणों के अनुसार भगोड़ों ने अपने भाइयों की मदद से हवाला के माध्यम से धन विदेश भेज दिया है। कुछ पीड़ितों ने बताया कि नटवरलाल अपने भाई के पास रह रहे हैं। विदित हो कि भगोड़ों का एक भाई विदेश में कार्यरत है व दूसरा भारत में ही कहीं नौकरी करता है। इलाके के ही कुछ भुक्तभोगियों के अनुसार वे दोनों यानी सुभाष व ब्रहमपाल भी इस गंभीर मामले से जुड़े हैं और इनमें से एक आई आई टी दिल्ली का पूर्व ग्रेजुएट रहा है। मालूम हो कि सारे अभियुक्त और उनके परिवार के सदस्य पासपोर्ट धारी हैं।
इधर अपना सब कुछ दाव पर लगा चुके निवेशक सरकार और तमाम अधिकारियों से गुहार लगा रहे हैं कि इस महाघोटाले की उच्चस्तरीय जांच की जाये। उधर ठग अपने सबूत मिटाने में लगे हैं। सरकार व प्रशासन कई हजार करोड़ की ठगी के अन्वेषण के लिए उच्चस्तरीय जांच पर चुप्पी साधे है। स्थानीय स्तर पर थाना अध्यक्ष बहादुरगढ़ नीरज कुमार ने तत्परता दिखाई। मामले को कोर्ट तक पंहुचा दिया। लेकिन माना जा रहा है कि इतने बड़े और फाइनेंस से जुड़े जटिल घोटाले के लिए उच्च स्तरीय जांच बेहद जरूरी है।
जो भी हो कोरोना से आयी आर्थिक मंदी के बाद कम्पनी के निदेशकों को खोजते हजारों परिवार की बेचैनी एक बार फिर धोखाधड़ी की कहानी को दोहरा रही है। और कम्पनी के कर्ताधर्ता अकूत सम्पत्ति के साथ रामराज
में आराम फरमा रहे हैं।