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इंडिया टुडे के जरिए इस पत्रकार ने बिहार सरकार को आईना दिखा दिया!

पुष्यमित्र-

स स्टोरी को करते हुए बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। पूरे बिहार में बमुश्किल 82 ऐसे बच्चे हैं जिन्होंने कोरोना के दौर में अपने माता और पिता दोनों को गंवा दिया था। उस वक्त बड़ी बड़ी योजनाएं बनीं। केंद्र और राज्य दोनों सरकारों ने तय किया कि ऐसे बच्चों को कोई कमी नहीं होने दी जाएगी।

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बिहार सरकार ने तय किया था ऐसे बच्चों को 1500 रुपए प्रति माह की सहायता दी जाएगी। साल का कुल बजट सिर्फ 15 लाख का था। मगर सरकार से यह छोटी सी राशि भी जुटाई नहीं जा सकी। जनवरी, 2023 से इन्हें मिलने वाली सहायता बंद है। नतीजन कोई ठेले पर सब्जी बेच रहा तो कोई किराने की दुकान चला रहा।

सरकारी लापरवाही की वजह से इनकी जिंदगी मुसीबतों से भर गई है। अधिकारी से कई दफा पूछा, उन्होंने हर बार मीटिंग में व्यस्त होने का बहाना बनाया और सवाल टाल गए। मगर सच तो यह है कि इस मामले में सरकार ने हद दर्जे की लापरवाही और संवेदनहीनता का परिचय दिया है।

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स्टोरी इंडिया टुडे के नए अंक में आई है।

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