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उत्तर प्रदेश

विधानसभा सचिवालय : विज्ञापित पदों से ज्‍यादा सीटों पर नियुक्ति करने वाले प्रदीप दुबे की कहानी

अनिल सिंह, लखनऊ

-नियुक्ति में अधिकतम उम्र की बाध्‍यता को भी कर दिया दरकिनार
-सत्‍ता-सरकार में मौजूद लोगों के परिजन-रिश्‍तेदारों को बांटी गई नौकरी
-पहले भी लगे हैं आरोप, लेकिन नहीं हुई कोई कार्रवाई

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लखनऊ : यूपी विधानसभा सचिवालय में पिछले एक दशक में होनी वाली प्रत्‍येक नियुक्ति विवादों से घिरी रही है, लेकिन शिकायतों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं होने से प्रमुख सचिव विधानसभा इतने बेखौफ हो गये हैं कि नियम-कानून को दरकिनार कर नियुक्तियां देने में खौफ नहीं खाते हैं। एक बार फिर ऐसे ही मामले का खुलासा हुआ है। शिकायतों के बाद अब तक योगी सरकार ने इस मामले में कोई एक्‍शन नहीं लिया है। बताया जा रहा है कि मुख्‍यमंत्री के एक ओएसडी, जिनके पुत्र की नियुक्ति भी विधानसभा सचिवालय में समीक्षा अधिकारी के पद पर हुई है, वह विधानसभा सचिवालय से जुड़ी किसी भी शिकायत को सीएम तक नहीं पहुंचने देते हैं।

जानकारी के अनुसार वर्ष 2020 के दिसंबर महीने में समीक्षा अधिकारी के 13 एवं सहायक समीक्षा अधिकारी के 53 पदों के लिये भर्ती निकली थी। इसके अलावा मार्शल, अपर निजी सचिव, संपादक समेत कुल मिलाकर 87 पदों पर नियुक्ति होनी थी। इसके लिये लिखित परीक्षा का आयोजन किया गया। सहायक समीक्षा अधिकारी के लिये फाइनल रिजल्‍ट में 17 लोगों का चयन किया गया, जबकि 24 लोगों को वेटिंग लिस्‍ट में रखा गया। समीक्षा अधिकारी के 13 विज्ञापित पदों के सापेक्ष 17 फाइनल लिस्‍ट वालों को तो प्रमुख सचिव विधानसभा प्रदीप दुबे ने ज्‍वाइन कराया ही, वेटिंग लिस्‍ट वाले 24 लोगों को भी सारे नियम-कानून दरकिनार कर समीक्षा अधिकारी के पद पर नियुक्ति दे दी गई।

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इसी तरह सहायक समीक्षा अधिकारी के 53 पदों के सापेक्ष 56 कैंडिडेटों की फाइनल लिस्‍ट तथा 31 लोगों की वेटिंग लिस्‍ट तैयार की गई। प्रदीप दुबे ने यहां भी वही खेल करते हुए फाइनल लिस्‍ट वाले कैंडिडेटों के साथ वेटिंग लिस्‍ट वालों को भी सहायक समीक्षा अधिकारी के पद पर ज्‍वाइन करा दिया। ज्‍वाइन करने वाले ज्‍यादातर कैडिडेट किसी ना किसी के रिश्‍तेदार हैं। प्रदीप दुबे ने हर उस व्‍यक्ति के परिजन को नौकरी देकर ओबलाइज किया, जो उनके खिलाफ हो सकने वाली जांच-कार्रवाई को रोक पाने में सक्षम हो। एक ही परिवार के कई लोगों को नौकरी दी गई। कई मामलों में अधिकतम उम्र की बाध्‍यता को भी दरकिनार कर दिया गया।

आरोप तो यहां तक हैं कि प्रदीप दुबे ने मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ तक विधानसभा सचिवालय के भ्रष्‍टाचार की शिकायतें नहीं पहुंच सके, इसके लिये उनके ओएसडी अजय कुमार सिंह के पुत्र को विधानसभा सचिवालय में पहले संविदा पर रखा, फिर भर्ती निकलने पर समीक्षा अधिकारी बनवा दिया। इसी तरह गोसाईगंज तहसील के गंगागंज में 7 बीघे के चारागाह पर कब्‍जा कराने में मदद करने वाले राजस्‍व परिषद के पूर्व निजी सचिव एवं फरार चल रहे 50 हजार के इनामी विवेकानंद डोबरियाल के पुत्र समीर डोबरियाल को भी सहायक समीक्षा अधिकारी के पद पर चयन सुनिश्‍चत करा दिया। इस तरह की कई नियुक्तियां हैं, जो विधानसभा एवं विधान परिषद से जुड़े लोगों के नातेदार-रिश्‍तेदारों की हैं।

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उम्र की बाध्‍यता को किया दरकिनार

विधानसभा सचिवालय में 87 पदों के लिये निकली भर्तियों में अधिकतम आयु 40 वर्ष मांगी गई थी, यानी 1980 के बाद पैदा हुए लोग ही इन पदों के लिये आवेदन कर सकते थे, लेकिन भर्तियों में नियम कानून ना टूटे तो फिर प्रदीप दुबे होने का मतलब ही क्‍या है? समीक्षा अधिकारी पद पर रोल नंबर 1000030124 के जरिये परीक्षा देने वाले दीपक मिश्रा पुत्र आदित्‍य कुमार मिश्रा, जिनकी जन्‍म तिथि 10/08/1973 थी और आवेदन के समय वह 47 वर्ष भी पार कर चुके थे, को नियमत: इस परीक्षा के लिये अर्ह ही नहीं घोषित किया जाना चाहिए था, लेकिन प्रमुख सचिव विधानसभा की कृपा से इन्‍हें परीक्षा के लिये अर्ह पाया गया।

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उम्र की अनिवार्यता को दरकिनार कर दिया गया, क्‍योंकि दीपक मिश्रा हृदय नारायण दीक्षित के ओएसडी पंकज मिश्रा के सहोदर भाई थे। जिस व्‍यक्ति को 47 वर्ष की उम्र तक कोई नौकरी नहीं मिली अचानक जिंदगी के तीसरे पड़ाव में वह परीक्षा देकर समीक्षा अधिकारी बन गया। वह भी तब, जब कि फाइनल मेरिट लिस्‍ट में उसका ना ही शामिल ही नहीं था। दीपक मिश्रा का नाम 168.25 अंकों के था वेटिंग लिस्‍ट में था, इसके बावजूद उसे समीक्षा अधिकारी के पद पर ज्‍वाइन कर दिया गया। वहीं दीपक मिश्रा के छोटे भाई पंकज मिश्रा विधानसभा में ही संपादक के पद पर चयनित हो गये।

इसी तरह ओबीसी कोटे से रोल नंबर 1000030259 पर परीक्षा देने वाले संजीव कुमार पुत्र गजराम सिंह तथा एससी कोटे से रोल नंबर 1000030263 पर परीक्षा देने वाले धरमवीर भारती पुत्र मंगली राम भी 40 की उम्र पार कर चुके थे, जिनकी जन्‍मतिथि क्रमश: 10/05/1977 तथा 05/08/1978 थी। इन दोनों को भी समीक्षा अधिकारी बना दिया गया, जबकि इनका नाम भी वेटिंग लिस्‍ट में था। अब यह हिमाकत किसके कहने पर और किस नियम के तहत की गई यह तो विधानसभा सचिवालय ही दे सकता है, लेकिन बीते एक दशक से एकक्षत्र राज कर रहे प्रदीप दुबे के इस तरह के भ्रष्‍टाचार पर कोई कार्रवाई नहीं होना योगी सरकार की साख पर भी सवाल खड़े कर रहा है।

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इसी तरह सहायक समीक्षा अधिकारी के पद पर भी उम्र की अधिकतम सीमा को दरकिनार कर कई लोगों की नियुक्ति की गई है। रोल नंबर 1000050246 कौशलेंद्र कुमार शुक्‍ला पुत्र रामचंद्र शुक्‍ला, जिनकी जन्‍मतिथि 01/01/1973 है, उनका भी चयन कर लिया गया। इसी तरह रोल नंबर 1000050934 संजीव कुमार पुत्र गजराम सिंह जन्‍मतिथि 01/05/1977 तथा रोल नंबर 1000050962 अशोक कुमार पुत्र सुरेश कुमार जन्‍मतिथि 12/09/1976 ने आवेदन करते समय 40 वर्ष की उम्र को पार कर लिया था, इसके बावजूद इनका चयन हो गया, जो इस पूरी नियुक्ति प्रक्रिया में भ्रष्‍टाचार और मनमानेपन का सबूत है।

उक्‍त सभी आरोपों के संदर्भ में प्रदीप दुबे का पक्ष जानने के लिये फोन किया गया तथा मैसेज भेजा गया, लेकिन उन्‍होंने इसका कोई जवाब नहीं दिया।

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