दिनेशपुर (ऊधमसिंह नगर, उत्तराखंड)। फैज अहमद फैज, गिरीश तिवारी गिर्दा इत्यादि के गीत गाते हुए लाल सलाम के नारों के साथ प्रताप सिंह को अंतिम विदाई दी गयी। जुझारू आंदोलनकारी, सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षक और पत्रकार प्रताप सिंह (जिन्हें कोई दो दशक से मास्टर प्रताप सिंह के नाम से भी जाना जाता है।) का कैंसर की बीमारी के चलते 18 मार्च की सुबह निधन हो गया।
हिंदी मासिक पत्रिका प्रेरणा अंशु के संपादक प्रताप सिंह आजीवन शोषितों, वंचितों, सत्य और न्याय के लिए लड़ते रहे। वे करीब एक साल से भी अधिक समय से कैंसर से पीड़ित थे। प्रताप सिंह 1980 के दशक में सरस्वती शिशु मंदिर में प्रधानाचार्य थे। बाद में उन्होंने अति पिछड़े क्षेत्र दिनेशपुर में काफी संघर्ष कर अपना विद्यालय समाजोत्थान विद्या मंदिर स्थापित किया। जनपक्षीय मुद्दों पर धारदार लेखन उन्होंने गदरपुर में शिशु मंदिर में प्रधानाचार्य रहते हुए ही प्रेरणा अंशु पत्रिका के माध्यम से प्रारंभ कर दिया था।
बाद में कुछ अपरिहार्य वजहों से उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र देकर निकटवर्ती कस्बे दिनेशपुर से जनता के पक्ष में संघर्ष शुरु किया। उनका पहला बड़ा संघर्ष इलाके के दबंग अमरीक सिंह के साथ हुआ जिसमें वे विजयी रहे। बाद में प्रताप सिंह भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के जिला प्रभारी रहे। क्षेत्र और राज्य के मजदूर और जनआंदोलनों में उन्होंने बढ़-चढ़कर सतत भागीदारी की। उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के वे संस्थापक सदस्यों में रहे। मानवता की विजय में अटूट भरोसा रखने वाले मास्टर प्रताप सिंह उत्तराखंड के जन आंदोलनकारियों में प्रमुख स्थान रखते हैं। उत्तर प्रदेश के रुहेलखंड सहित दिल्ली-एनसीआर में भी श्रमिक, जनांदोलनों में उन्होंने भागीदारी की। उन्होंने पत्रकारिता-लेखन के माध्यम से जनजागरूकता बढ़ाई।
उनके निधन का समाचार सुनते ही दूर-दराज से उनके चाहने वाले दिनेशपुर पहुंचे। परंपराओं को कुछ हद तक दरकिनार करते हुए उनकी बड़ी पुत्रवधु बबीता ने उनकी अर्थी को कंधा दिया। वहीं क्षेत्र की महिला सामाजिक कार्यकर्ता हीरा जंगपांगी ने भी कंधा दिया। शवयात्रा और श्मशान में दर्जनों महिलाएं भी मौजूद रहीं। उनकी शवयात्रा में मास्टर प्रताप सिंह अमर रहें, मास्टर प्रताप सिंह को लाल सलाम इत्यादि नारे लगाए जाते रहे। स्थानीय श्मशान में मुखाग्नि प्रताप सिंह के बड़े बेटे वीरेश ने दी। यहां वयोवृद्ध कम्युनिस्ट नेता बहादुर सिंह जंगी, सूफी गायक सर्वजीत टम्टा और अन्य लोगों ने फैज अहमद फैज का गीत, ‘हम देखेंगे, लाजिम है कि हम भी देखेंगे’ और गिरीश तिवारी गिर्दा का कुमाऊंनी गीत ‘ततुक नी लगा उदेख, घुनन मुनई न टेक, जैंता एक दिना तो आलो उ दिन यो दुनि में’ सहित कई अन्य जन गीत गाए।
अंतिम संस्कार में महेश गंगवार, संजय रावत, सलीम मलिक, मुनीश अग्रवाल, चंद्रशेखर जोशी, अजीत साहनी, नीलकांत, प्रीति गंगवार, प्रो, भूपेश कुमार सिंह, ललित सती, हेम पंत, डीएन भट्ट, सुनील पंत, अमर सिंह, विजय आर्या, भास्कर उप्रेती, जरनैल सिंह काली, नरेश कुमार, गोपाल गौतम, गोपाल भारती, राजेश नारंग, अमित नारंग, सरताज आलम, ऊषा टम्टा, प्रेरणा, विकास राय, भरत शाह, काजल राय, भोला शर्मा, ओमप्रकाश सहदेव, हिमांशु सरकार, बिशंभर मिगलानी, हर्षवर्धन वर्मा, मनिंद्र मंडल, गौतम सरकार, महेंद्र राणा, कुंदन कोरंगा, रीना कोरंगा, तारा रावत, गुरविंदर गिल, पलाश विश्वास, पद्दोलोचन विश्वास, राघवेंद्र गंगवार, डा. जीएल खुराना, वीरेंद्र हालदार, रवि सरकार, पीसी तिवारी, जसपाल डोगरा, प्रदीप मार्कुस, रेनू जोशी, पान सिंह, खीम सिंह, सुशील गाबा, परमपाल सुखीजा, दीप पाठक, अयोध्या प्रसाद ‘भारती’ सहित अन्य सैकड़ों लोग, प्रताप सिंह के अनुज धर्मवीर, पुत्र रूपेश कुमार सिंह, अनुज कुमार सिंह अन्य परिजन और संबंधी शामिल हुए।