संजय कुमार सिंह-
ट्वीटर पर इनका परिचय इस तरह है, Editorial Director & Editor-in-Chief @TimesNow| Progressive Conservative| Columnist with ToI| Published Author. All views expressed here are personal. और यह इनका एक ट्वीट है।
निश्चित रूप से यह पत्रकारिता नहीं है। पत्रकारिता होती जब जिसके बारे में कुछ कहा जा रहा है उससे उस विषय पर बात की जाती। पर यहां तो उद्देश्य भी वह नहीं होगा।
साकेत गोखले ने ट्वीट कर कहा है कि ऐसा रघुराम राजन ने नहीं, सी रंगराजन की रिपोर्ट में था।
जो भी हो, रघुराम राजन और सी रंगराजन में कनफूजियाना कोई खास बात नहीं है। पर उन्हें गलत बताना हो, सवाल उठाना हो तो चेक कर लेना चाहिए। ऐसी हालत में बेचारे किसका इंटरव्यू करते क्या पूछते सो हाजिरी लगा दी। मुद्दा यह है कि उसी के हित की बात की जाती है जिसे जिसकी जरूरत हो।
आप इसे जो कहिए पर जरूरत यही है कि जिसे पैसे चाहिए उसे पैसे मिले, जिसे नौकरी चाहिए उसे नौकरी मिले और जिसे बुद्धि चाहिए उसे बुद्धि मिले। अलग-अलग यह भले इनक्लूसिविटी न हो पर देशहित में यही जरूरी है। और भारत यात्रा में शामिल होना, आयरनिक यानी विडंबनापूर्ण तो बिल्कुल नहीं है। आपका यह ट्वीट भले हो।
एनडीटीवी को ये बीमारी नई लगी है या पुरानी अब बढ़ गई है?
रघुराम राजन के भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने पर चर्चा कि अर्थशास्त्री को राजनीतिक आयोजनों में जाना चाहिए? ज्वायन की हिन्दी करूं तो जुड़ना चाहिए होगा लेकिन तब सवाल और मूर्खतापूर्ण लगेगा क्योंकि आयोजन को देखना, सुनना, उसके बारे में लिखना-पढ़ना, उसकी चर्चा, प्रशंसा-आलोचना सब उससे जुड़ना ही है। लेकिन इस तरह जुड़ने के लिए जाना – अपना काम ठीक से करने का भाग है।
फिर भी, अब अगर कोई पूछे कि अर्थशास्त्री को जुड़ना भी क्यों चाहिए तो मेरा सवाल है, पत्रकार तय करेंगे कि कौन क्या करे? या सेठ के नौकर तय करेंगे कि अर्थशास्त्री (या कोई भी) किसे राजनीति माने, किसे देशभक्ति, किसे पैदल चलना, किसे साथ देना, किसे बतियाना, किसे प्रचार पाना, किसे बदनाम होना या नाम कमाना माने। अगर अर्थशास्त्री ने खाली समय में यात्रा से जुड़ने या राजनीति में कूदने की योजना बनाई हो तो क्या पहले घोषणा करना अनिवार्य है?
यात्रा से जुड़ने का फैसला चर्चा का विषय भी कैसे हो सकता है। गलत तो है ही नहीं। न किसी कानून का उल्लंघन है ना किसी नैतिकता के खिलाफ। खासकर तब जब नौकरशाह सीधे मंत्री बनाए गए हैं और पत्रकार की तो कोई बात ही नहीं है। दल-बदल के बाद भी सेठ की पार्टी के मंत्री थे और अपने कारनामों के बावजूद हटाए नहीं गए। हालांकि तरक्की पाने की जगह नौकरशाह के शिकार हो गए।
कौशल विकास में नौकरी करने के लिए गुलाम बनाए जाते हों तो ठीक है लेकिन मूर्ख भी बनाए जाने लगे हैं क्या? और ये तो अकेले की मूर्खता नहीं हो सकती है पूरी टीम ही गड्ढे में जा रही लगती है।
Dr. Sanjay Pandey
December 18, 2022 at 6:26 pm
भाई साब, आपके लेख दरबारी टाइप के होते हैं। सत्ता विरोधी हर चीज सही ही नहीं होती। आप जिसकी बहुत तारीफ करते हैं उस टेलीग्राफ अखबार में 50% खबरें बेवजह मोदी विरोध के लिए गढ़ी जाती हैं या उनका एंगल चेंज किया जाता है। रही बात रघुराम राजन की , तो ऐसे आइकन्स को ऐसे राजनीतिक आयोजनों में नहीं जाना चाहिए। अब कोई माने या ना माने यह दरबारी अर्थशास्त्री ही कहलाएंगे।,,