स्वर्गीय राकेश बिहारी झा
Satyendra PS : बीएचयू में मेरे सहपाठी रहे राकेश बिहारी झा नहीं रहे। वह मेरे ऑफिस के बगल में ही आईटीओ दिल्ली में पायोनियर अखबार में बिजनेस एडिटर थे। उनके पत्रकारिता का कैरियर पायोनियर में ही शुरू हुआ जहां उन्होंने सब एडिटर से लेकर बिजनेस हेड तक का सफर तय किया। लंबे समय से फोन पर बातचीत भी नहीं हुई थी। अचानक यह सूचना मिली, जो हतप्रभ कर देने वाली है। राकेश बिहारी झा पिछले 3 साल से वह किडनी के संक्रमण से पीड़ित थे। हँसमुख स्वभाव के राकेश अपने मित्रों, सहकर्मियों के अभिभावक के रूप में ही रहते थे। सहपाठी होने के बावजूद उन्हें मैं राकेश भैया ही कहता था।
बीएचयू में 2000 में पढ़ने आए, तब परिचय हुआ। बैचलर ऑफ जर्नलिज्म के 2000 बैच की प्रवेश परीक्षा में वह टॉपर थे जिसकी वजह से पहले ही चरण में उन्हें बिड़ला हॉस्पिटल अलॉट हुआ। उनके रूम पार्टनर बने Panini Anand. यह भी एक अनोखी जोड़ी। संभवतः राकेश झा उम्र में पाणिनि से एक दशक बड़े थे। उम्र और अनुभव दोनों हिसाब से। राकेश ने जब bhu में एडमिशन लिया था तो 3 बार उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग, 1 बार संघ लोक सेवा आयोग और सम्भवतः 4 बार बिहार लोक सेवा आयोग का इंटरव्यू दे चुके थे। वहीं पाणिनि ग्रेजुएशन कर आए थे और bhu के हिंदी विभाग में चलने वाले जर्नलिज्म में सम्भवतः धोखे से एडमिशन ले लिया था। पाणिनि भी संभवतः टॉपर ही थे जिन्हें पहले राउंड में होस्टल मिल गया था। जनरेशन गैप के बाद भी पाणिनि और राकेश में अच्छी जमती थी। बाद में पाणिनि ने iimc में एडमिशन ले लिया।
मेरे साथ हॉस्टल में रूम पार्टनर Anand Mishra बने। वह भी एक्स्ट्रा मॉड युवा थे और उनकी तुलना में मैं बुजुर्ग। दोनों के रहन सहन में इतना अंतर था किक्लास के ही किसी सहपाठी को 6 महीने बाद पता चला कि हम दोनों रूम पार्टनर हैं तो वह चकित रह गया। BJMC के बाद राकेश, आनन्द और मैने साथ साथ नौकरी के लिए कुछ साल संघर्ष किया। उत्तम नगर में एक कमरे में साथ रहे।
9 जनवरी 2018 के मनहूस रोज मैं अपने इलाज के लिए राजीव गांधी कैंसर अस्पताल में दिन भर भटकता रहा और राकेश एम्स से लेकर LNJP अस्पताल में एम्बुलेंस में भटकते रहे और आखिरकार दम तोड़ दिया। आज यह सूचना मिली तो उनके आवास गया। भाभी जी ने बताया कि तुम्हारी और आनंद की अक्सर चर्चा करते रहते थे। अफसोस यह है कि 3 साल में उन्होंने कभी नही बताया कि उन्हें किडनी की समस्या है। इस धंधे करीब हर आदमी की यही कहानी है। आदमी सबका दुख सुनता है लेकिन अपना दुख किसी को बताने का मौका भी नहीं आता। भाभी जी से कहा कि कम से कम मुझे ही बता दिया होता, मिल तो लेते, रोते हुए कहने लगीं कि किसी को नहीं बताने दिया। कहते थे कि सबकी अपनी व्यस्तता, अपनी मुसीबत है। सब ठीक हो जाएगा।
संभवतः उनको बिल्कुल सही पता था कि कुछ ठीक होने वाला नही है। इलाज के लिए पैसे भी नही रहे होंगे जिसके चलते फोर्टिस के डॉक्टरों द्वारा किडनी ट्रांसप्लांट की राय देने के बावजूद इधर उधर आयुर्वेदिक इलाज करा रहे थे! पत्नी के ऊपर दबाव बना रहे थे कि जॉब ज्वाइन कर लो! ईश्वर पर उनका जबरदस्त भरोसा था। जब भी मेट्रो में मिलते, ईश्वर को लेकर उनसे जबरदस्त झगड़ा हो जाता। आज फिर उनके ईश्वर पर से भी मेरा भरोसा उठ गया। अब सिर्फ यादें रह गईं। आज अंतिम संस्कार हो गया। ब्राह्मण भोज उनके पैतृक स्थान (सम्भवतः भागलपुर) पर होगा। ढेरों यादें छोड़कर यूं ही चले गए।
Pramod Singh Rathore : I am overcome by emotions as I write on your wall dearest friend Rakesh Bihari Jha. A gentleman, who welcomed all with a smiling face in our daily editorial meetings. Your sharp analysis & understanding of news was extraordinary .We all will miss you. May the noble soul Rest In Peace Rakesh…May God give strength to your family to bear this monumental loss..
पत्रकार सत्येंद्र पीएस और प्रमोद सिंह राठौर की एफबी वॉल से.