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सुख-दुख

अमित शाह की प्रेस कांफ्रेस में जूट बैग पाने के लिए भूखे नंगों की तरह टूट पड़े पत्रकार

Sandip Thakur : इन दिनों मोदी सरकार के तीन साल पूरे हाने के उपलक्ष्य पर जश्न का दौर चल रहा है। पीएमओ के निर्देश पर तमाम प्रमुख मंत्रालय के मंत्री और नेता अपन-अपने कामों के 3 साल का ब्यौरा देने के लिए संवाददाता सम्मेलन कर रहे हैं। आज यानी 26 मई को भाजपा मुख्यालय में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की प्रेस कांफ्रेंस थी। वहां मोदी सरकार की उपलब्धियों के बखान वाले उपहार को लेने की पत्रकारों में मची मारामारी के दृश्य पत्रकारिता की गिरती साख के प्रत्यक्ष गवाह थे। जूट के एक बैग जिसमें सरकारी घोषणाओं से भरे कुछ कागज और एलईडी बल्ब थे को हासिल करने के लिए पत्रकारों का हुजूम जिस तरह से एक दूसरे को धकिया मुकिया रहे थे उसे देख कर ऐसा लगा कि मानों भूखे-नंगों को खाने का पैकेट बांटने के लिए कोई गाड़ी आई हो।

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Sandip Thakur : इन दिनों मोदी सरकार के तीन साल पूरे हाने के उपलक्ष्य पर जश्न का दौर चल रहा है। पीएमओ के निर्देश पर तमाम प्रमुख मंत्रालय के मंत्री और नेता अपन-अपने कामों के 3 साल का ब्यौरा देने के लिए संवाददाता सम्मेलन कर रहे हैं। आज यानी 26 मई को भाजपा मुख्यालय में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की प्रेस कांफ्रेंस थी। वहां मोदी सरकार की उपलब्धियों के बखान वाले उपहार को लेने की पत्रकारों में मची मारामारी के दृश्य पत्रकारिता की गिरती साख के प्रत्यक्ष गवाह थे। जूट के एक बैग जिसमें सरकारी घोषणाओं से भरे कुछ कागज और एलईडी बल्ब थे को हासिल करने के लिए पत्रकारों का हुजूम जिस तरह से एक दूसरे को धकिया मुकिया रहे थे उसे देख कर ऐसा लगा कि मानों भूखे-नंगों को खाने का पैकेट बांटने के लिए कोई गाड़ी आई हो।

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इन दिनों संवाददाता सम्मेलनों की बाढ़ आई हुई है। रोज कहीं न कहीं प्रेस कांफ्रेंस, लंच और फिर कोई न कोई गिफ्ट। खिलाने व बांटने वाले हैं मोदी सरकार के मंत्री व पार्टी के नेता, जो तीन साल का बखान करने में लगे हुए हैं। अधिकांश संवाददाता सम्मेलन या तो नेशनल मीडिया सेंटर या फिर शास्त्री भवन के पीआईबी कांफ्रेंस हॉल में होता है। नियमतः ऐसे संवाददाता सम्मेलन में सिर्फ वही पत्रकार आ सकते हैं जिनके पास पीआईबी कार्ड है। इस शर्त का उल्लेख बाकायदा प्रेस निमंत्रण पत्र पर भी होता है। लेकिन सम्मेलन में अवांछित कथित पत्रकारों की भीड़ उमड़ती है। भीड़ का मतलब भीड़।

कोई भी संवाददाता सम्मेलन चार अभियानों में संपन्न होता है। पहला, बैग लूटो अभियान। दूसरा, खाओ-पिओ अभियान। तीसरा, मंत्री के साथ सेल्फी खिंचाओ अभियान और चौथा, सोशल मीडिया पर अपलोड करो अभियान। वैसे अति सुरक्षित नेशनल मीडिया सेंटर में भीड़ अंदर अंदर कैसे आती है, यह अपने आप में जांच का विषय है। क्याोंकि मीडिया सेंटर में सिर्फ उन्हीं पत्रकारों को अंदर आने की इजाजत है जिनके पास पीआईबी का कार्ड है। कार्ड चेक करना मुख्य गेट पर तैनात सीआईएसएफ कर्मियों का काम है। लेकिन ऐसा लगता है कि इनदिनों सीआईएसएफ वाले अपनी ड्यूटी ठीक से नहीं कर रहे हैं। ऐसे में किसी दिन मीडिया सेंटर में किसी अनहोनी की आशंका से पूरी तरह इंकार नहीं किया जा सकता है। जिनके पास पीआईबी कार्ड नहीं है वे अंदर घुसने के बाद क्या करते हैं, जरा उसकी एक बानगी देखिए। कांफ्रेस हॉल के बाहर जहां मंत्रालय वाले प्रेस रीलीज बांटते हैं, जा धमकते हैं। यदि बैग बंट रहा हो तो फिर नजारा देखने लायक होता है। ऐसी मारा मारी मचती है कि पूछिए मत। ऐसे में जो बड़े अखबारों के पीआईबी मान्यता प्राप्त पत्रकार प्रेस रिलीज व चैनलों के संवाददाता होते हैं वे बैग व प्रेस रीलीज दोनों से वंचित रह जाते हैं। क्योंकि वे मारा मारी में पड़ना नहीं चाहते। इंतजार करते हैं लेकिन लूट के बाद कुछ बच नहीं पाता है। खैर बैग लूटने के बाद ऐसे लोग हॉल में जा कर सीटों पर जम जाते हैं।

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प्रेस कांफ्रेंस खत्म हुई नहीं कि लिफ्ट व सीढ़ियों से भाग कर खाने के लिए कतार में लग जाते हैं। देखते ही देखते खाने वाले हॉल में ऐसी भीड़ हो जाती है कि पूछिए मत। इतना हीं नहीं मंत्री के साथ फोटो खिंचा उसे सोशल मीडिया पर अपलोड करने के लिए भी अफरा तफरी मच जाती है। पिछले दिनों शिक्षा मंत्री प्रकाश जावेडकर की प्रेस कांफ्रेंस थी। जावेडकर के डायनिंग हॉल में पहुंचने से पहले ही उनके टेबल पर भाई लोग जम गए। किसी ने खाना खाते तो किसी ने बात करते हुए मंत्री के साथ अपनी सेल्फी ली और फटाक से फेसबुक पर अपलोड कर दिया। टेबल पर जमे एक भाई ने मंत्री से कहा, सर, आपका इंटरव्यू नहीं मिलता है। इस पर टिप्पणी करते हुए मंत्री के एक स्टाफ ने कहा कि जितने मंत्री के इर्द गिर्द बैठे हैं वे किसी समाचारपत्र या पत्रिका में हैं ही नहीं तो फिर इंटरव्यू छापेंगे कहां। बात खाने पीने पर ही खत्म नहीं होती है। खाने के बाद भाई लोग ग्रांउड फ्लोर पर बने मीडिया कक्ष में आते हैं और फिर सोफा, कुर्सिंयों पर सो जाते हैं।

एक नींद सोने के बाद ठंडा पानी पिया और मीडिया कक्ष में रखे पत्र पत्रिकाओं को अलटते पलटते दो चार बैग में रख लिया। गत 19 मई को लंबे बाल वाले एक ऐसे ही सज्जन मीडिया रुम में घुस आए। दो चार अखबार समेटे और लेकर जाने लगे। पीआईबी कार्ड होल्डर एक मीडियाकर्मी ने उसे टोका तो बहसबाजी शुरू हो गई और नौबत हाथापाई तक आ गई। फिर अन्य पत्रकारों ने हस्तक्षेप कर मामला शांत कराया। जो सज्जन अकड़ रहे थे वे न तो पत्रकार हैं और न ही उनके पास पीआईबी का कार्ड है। फिर वे नेशनल मीडिया सेंटर के अंदर रिपोर्टस रुम तक कैसे पहुंचे, यह अपने आप में बड़ा सवाल है। वैसे सवाल कई हैं। यदि केंद्रीय मंत्रालय के संवाददाता सम्मेलन में कोई भी आ सकता है तो फिर पीआईबी कार्ड का क्या मतलब है। अवांछित लोगों (जिनके पास पीआईबी कार्ड नहीं है) के प्रवेश से सही पत्रकारों को जो परेशानी होती है उसके लिए कौन जिम्मेदार है। खाने के लिए मारा मारी, बैग लेने के लिए मारा मारी…। कोई भी वरिष्ठ मान्यता प्राप्त पत्रकार ऐसे माहौल से बचना चाहता है। लेकिन उन भाई लाोगों का क्या करें जो ऐसे माहौल के लिए जिम्मेदार हैं।

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वरिष्ठ पत्रकार संदीप ठाकुर की एफबी वॉल से साभार. उपरोक्त स्टेटस पर आए ढेर सारे कमेंट्स में से कुछ प्रमुख यूं हैं :

Sn Verma 100% true. About security i talked to concerned staff and complained last year. He told that pib staffs forced us on telefone to allow such persons to enter media centre. Kahi na kahi saanth gaanth hain bhai.

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Sandip Thakur thats true…i think minister needs crowd,so may be indirectly there is instruction to security staff that let come each and every journalist inside the conference hall.

Govind Mishra V true, bhai, thatswhy I avoid mostly press confrences

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Dhanan Jay पीआईबी कार्ड होल्डर क्या सब genuine पत्रकार हैं। मुझे शक है।

Shashidhar Pathak बड़े चिरकुट नंदन घुस आए हैं। फूहड़, म्लेच्छ, राक्षस इंसान के करम होते हैं। ऐसे तमाम निर्लज्ज दुष्ट लोग मीडिया का चीरहरण कर रहे हैँ। एक उत्तराखंड का भी कुख्यात ब्लैक मेलर है। दरअसल, मीडिया उभार के बाद अवसर आए। मीडिया के कई दुर्भिक्षु दुम हिलाकर करोड़पति हो गए। संत संतई में रह गए। यह उसी का नतीजा है।

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Dhanan Jay जो पत्रकार गण संदीप की भीड़ में नहीं हैं वे कौन दूध के धुले हैं। वे सफेदपोश कंबल ओढ़ कर घी पी रहे । इतना ही फर्क है।.तो संदीप बाबू इन अकिंचनों की ही लानतमलानत क्यों।

Sandip Thakur हम आप एक नोबल प्राोफेशन में हैं। उसकी एक गरिमा है। उसे मेनटेन करना चाहिए। आप मंत्री से कोई बड़ा काम करवा लीजिए..नो प्राेब्लम। लेकिन आप किसी संवाददाता सम्मेलन में बैग में पानी की बोतल भर लें, पेन फोल्डर के लिए दो बार लाईन में लग जाएं, खाने के डिब्बे पर डिब्बे लेते जाएं..इस चिरकुटआई पर मेरी आपत्ति है। शायद यही वजह है कि आज नेता से लेकर अधिकारी तक पत्रकारों पर हावी हो गए हैं…सिर्फ चिरकुट पत्रकारों के कारण।

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Dhanan Jay अगर कोई गिरा है और दिखता भी है तो मुझे कोई प्राबलम नहीं। मुझे दिक्कत उससे है जो इलीट रंग रोगन के अंदर गिरी हुई हरकत करता। मेरा मानना है कि पाखंड किसी भी पाप से ज्यादा घृणित है। और मेरे भाई कौन ऐसा प्रोफेशन है जिसे नोबल नहीं होना चाहिए। जो कुछ आपने हुआ देखा, अच्छा है पत्रकारों की जात तो पहचानी गई। आई एम लविंग इट। सही बात यह है मेरे दोस्त मुझे मुझे बड़ी बड़ी बातें चुभती हैं।

Joginder Solanki संदीप भाई फ्री मे जहर भी मिलेगा तो मार-काट मच जाएगी।

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Kewal Tiwari कोई नयी बात नहीं। सत्ता से क्या क्या फायदे नहीं लेते लोग।

Sandip Thakur सत्ता से फायदे उठाना और चिरकुटआई करना, दोनों में फर्क है। मेरी आपत्ति चिरकुटाई पर है। मतलब, पेन फोल्डर के लिए मारामारी करना, बीट नहीं होने पर भी संवाददाता सम्मेलन में जा धमकना, खाने का एक डब्बा बैग में ठूस लेना और दुसरा हाथ में पकड़े रखना, एक की जगह पानी की चार पांच बोतलें बैग में भर लेना…आदि।

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Subhash Chandra Sir.. Ek baar PIB card ka verfication ho jaye to behtar. … Kya marketing manager v PIB card le sakta hai aur lisoner v.

Ashok Shukla PIB card? No criteria even a street newspaper carrying the card.

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Vishwat Sen सर, मुद्दा तो आपने अच्छा उठाया, मगर पीआईबी कार्ड पर फोकस करके मामले को भटका दिया। गुस्ताखी माफी के साथ एक सवाल करूँगा। वह यह कि क्या जिसके पास पीआईबी कार्ड नहीं है, तो वह पत्रकार नहीं है? माना आपके पास यह कार्ड है और मेरे पास नहीं है। मेरे संस्थान ने मंत्रालय की जिम्मेदारी तय कर दी, तो क्या मैं मंत्रालयों में जाने का हक नहीं रखता? इस देश में कितने ऐसे पत्रकार हैं, जिनके पास पीआईबी या राज्य सरकार का कार्ड है? क्या जो सही मायने में पत्रकार है, उसके पास कार्ड है? आज एक दशक से ऊपर हो गया पीआईबी और दिल्ली सरकार में आवेदन दिए हुए, मगर आज तक कार्ड जारी नहीं हुआ। तो क्या मैं पत्रकार नहीं हूं? क्या मान्यता प्राप्त कार्ड ही पत्रकारिता का मानदंड और पैमाना है? किसी के द्वारा चिरकुटई करना और किसी की पत्रकारिता पर सवाल खड़ा करना, दोनों में फर्क है। आज जो चिरकुट संस्थान में है, वह जुगाड़ से कार्ड बनवा लेता है, मगर पत्रकारिता की मुख्यधारा में काम करनेवाला ठिठकाते रह जाता है। कभी इस पर भी गौर किया है?

Sandip Thakur सवाल पीआईबी या राज्य सरकार के कार्ड का नहीं है। सवाल है पत्रकारिता के क्षेत्र में व्याप्त लचीलेपन का नाजायज फायदा उठा सुख सुविधा बटोरने और ऐसे कथित पत्रकारों के कारण सही पत्रकारों को होने वाली असुविधाओं का। आज तक यदि आप जैसे सैकड़ों सही व जुझारु पत्रकारों का कार्ड नहीं बन पाया है तो उसके लिए जिम्मेदार ऐसे ही झोला छाप पत्रकार हैं जिनका जिक्र मैंने आपनी रपट में किया है। अमित शाह के जिस संवाददाता सम्मेलन का जिक्र मैंने किया है उसमें या किसी और संवाददाता सम्मेलन में पेन, फोल्डर, नोटबुक और गिफ्ट लूटने वाले मान्यता प्राप्त पत्रकार कम नहीं है। जो कहीं पत्रकार नहीं हैं उनकी संख्या टिड्डियों की तरह है। आपके पास कार्ड हो भी न तो आप बैग-फोल्डर काउंटर तक बगैर धक्का मुक्की के पहुंच ही नहीं सकते। पत्रकारिता के नाम पर ऐसे लोगों की बढ़ती संख्या पूरे पेशे के लिए खतरनाक संकेत है।

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Sanjay Vohra अब तो संवादाता सम्मेलन में तालियां भी बजती सुनायी देती हैं …पत्रकारों को जुट बेग और मीडिया हाउस मालिकों को विग्यापन …यही होगा

Sn Verma भाई pib hall main bhi aaj six aise log baithe mil gaye. Security person bata raha ki usse adesh mila hai jiske paas bhi press identity card hai, allow hain.

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