व्हाट्सएप विवाद पैदा करने के पीछे कहीं 2019 का लोकसभा चुनाव तो नहीं? मोदी सरकार 2019 के लोकसभा चुनाव के मोड में भी आ गई है। प्लानिंग से लेकर जनसंपर्क अभियान जोरशोर से चल रहा है। मीडिया के तमाम माध्यमों पर शिकंजा कसा हुआ है। चैनल हो या अखबार कोई भी सरकार के अंदर की …
Tag: sandip thakur
राहुल गांधी में नेतृत्व क्षमता है?
संदीप ठाकुर
राहुल गांधी का नाम सुनते ही आपके जहन में सबसे पहले उनकी कौन सी छवि
उभरती है…पप्पू वाली या गंभीऱ। पप्पू वाली न। आप बिल्कुल सही हैं। इसके
बाद उनकी कौन सी बात याद आती है। यदि में गलत नहीं हूं तो आपको याद आती
हाेगी, आलू की फैक्ट्री या नारियल जूस वाली कहानी। या फिर याद आती होगी
उनके ऊपर चल रहे सोशल मीडिया के जोक्स और भाजपा नेताओं द्वारा समय समय
पर किए गए कटाक्ष। जरा सोचिए, क्या इन बातों के आधार पर राहुल को जज
किया जा सकता है? सही मायने में राहुल गांधी पप्पू हैं? क्या राहुल
गांधी पॉलिटिकल मैटीरियल नहीं हैं? क्या राहुल गांधी में नेतृत्व क्षमता
नहीं है?
दिल्ली में मैकडॉनल्ड्स के 43 रेस्तरां बंद
सड़क पर खड़े हाेकर पाव-भाजी खाने वाले युवाआें काे खींच कर रेस्तरां के अंदर बर्गर खाने पर मजबूर करने वाले अमेरिकन फास्ट फूड कंपनी के दिल्ली में चल रहे 55 में से 43 मैकडॉनल्ड्स रेस्तरां आज से अनिश्चित काल के लिए बंद कर दिए गए। इसके लिए चलते उसके 1700 कर्मचारी बेरोजगार हो जाएंगे। यह नाैबत मैकडॉनल्ड्स और उसके 50:50 प्रतिशत हिस्सेदारी वाले जॉइंट वेंचर कनॉट प्लाजा रेस्ट्रान्ट्स प्राइवेट लिमिटेड (CPRL) के बीच चल रहे अंतरकलह का परिणाम है। देश में कुल 168 रेस्ट्रॉन्ट्स ऑपरेट करने वाली सीपीआरएल के फॉर्मर एमडी विक्रम बख्शी ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताय़ा है।
चैनल मालिक के खिलाफ जांच की कार्रवाई को मीडिया पर हमले का रंग देने का प्रयास क्यों?
प्रेस क्लब आफ इंडिया में बीते दिनों वरिष्ठ, कनिष्ठ, नामचीन, गुमनाम, बूढ़े, जवान
पत्रकारों का जमावड़ा लगा था। अवसर था एनडीटीवी के मालिक प्रणव राय के
यहां मारे गए सीबीआई छापे के विरोध का। मंच पर विराजमान थे एक से बढ़ कर
एक पत्रकारिता के अपने जमाने के दिग्गज अरुण शौरी, एच.के.दुआ, फली एस
नॉरीमन, कुलदीप नैय्यर, राज चेनप्पा, शेखर गुप्ता, ओम थानवी और प्रणव राय।
इन सभी ने एक स्वर में एक बैंक घोटाले की जांच के सिलसिले में एनडीटीवी
के मालिक प्रणव के यहां मारे गए छापे को प्रेस की आजादी पर हमला करार दे
दिया। इन्होंने साफ साफ कहा कि मोदी राज ने एक बार फिर आपातकाल की याद
दिला दी है और अब वक्त आ गया है कि मीडिया को एकजुट होकर विरोध करना
चाहिए सरकार की मीडिया विरोधी नीति का।
अमित शाह की प्रेस कांफ्रेस में जूट बैग पाने के लिए भूखे नंगों की तरह टूट पड़े पत्रकार
Sandip Thakur : इन दिनों मोदी सरकार के तीन साल पूरे हाने के उपलक्ष्य पर जश्न का दौर चल रहा है। पीएमओ के निर्देश पर तमाम प्रमुख मंत्रालय के मंत्री और नेता अपन-अपने कामों के 3 साल का ब्यौरा देने के लिए संवाददाता सम्मेलन कर रहे हैं। आज यानी 26 मई को भाजपा मुख्यालय में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की प्रेस कांफ्रेंस थी। वहां मोदी सरकार की उपलब्धियों के बखान वाले उपहार को लेने की पत्रकारों में मची मारामारी के दृश्य पत्रकारिता की गिरती साख के प्रत्यक्ष गवाह थे। जूट के एक बैग जिसमें सरकारी घोषणाओं से भरे कुछ कागज और एलईडी बल्ब थे को हासिल करने के लिए पत्रकारों का हुजूम जिस तरह से एक दूसरे को धकिया मुकिया रहे थे उसे देख कर ऐसा लगा कि मानों भूखे-नंगों को खाने का पैकेट बांटने के लिए कोई गाड़ी आई हो।
प्रचार के रथ पर सवार मोदी सरकार…. अच्छे दिन आ गए… किसके…किसी को नहीं पता
मोदी सरकार ने दो साल पूरे कर लिए हैं। इसे लेकर सरकारी स्तर पर जिसकदर हंगामा और हवाबाजी की जा रही है उसे देख तो ऐसा लगता है कि पतानहीं क्या हो गया? प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया में विज्ञापनों कीबाढ़ आ गई है। चैनलों पर मोदी सरकार पर हो रही बहस में अधिकांश वक्तायह साबित …
हमारे चारों ओर उंची जाति के लोग रहते हैं, वे नहीं चाहते थे कि हम उनके बीच रहें
केरल में निर्भया जैसी दरिंदगी से उबाल, घटनास्थल से लौटी महिलाओं की टीम ने किया की खुलासा
-संदीप ठाकुर-
नई दिल्ली। दुराचार और जघन्य हत्या की रोंगटे खड़े कर देने वाली यह
वारदात दिल्ली के निर्भया कांड से भी कहीं ज्यादा वीभत्स और दिल दहला
देने वाली है। यह केवल एक गरीब मेहनती और महत्वाकांक्षी दलित लड़की की
कहानी नहीं है बल्कि समाज के दबे कुचले उन हजारों-लाखों लड़कियों के
अरमानों की भी दास्तान है जो तमाम मुश्किलों के बावजूद न सिर्फ कुछ कर
गुजरने की चाह रखतीं हैं, परंतु चाहतों के असली जामा पहनाने का हौसला
लेकर दिन रात मेहनत करतीं हैं। लेकिन समाज के दबंगों को उनकी यह तरक्की
हजम नहीं होती।
शशि शेखर ने पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या पर एक भावुक पीस लिख मारा और हो गई इतिश्री
Sandip Thakur : हिंदी का पत्रकार तो वैसे भी रोज तिल तिल कर मरता है…. घर का किस्त भरने में, बच्चों के स्कूल की फीस भरने में, बूढ़े मां-बाप के ईलाज में खर्च होने वाली रकम जुटाने में। पढ़ा लिखा होता है इसलिए भीख भी नहीं मांग सकता। किसी हिंदी पत्रकार का घर जाकर देखिए कभी…वह भी छोटे जगहों पर काम करने वाले पत्रकार का। शशि शेखर ने सीवान के पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या पर एक भावुक पीस लिख मारा…और हो गई इतिश्री।