कनुप्रिया-
इस सरकार की उपलब्धि चंद्रयान नहीं, तृप्ता त्यागी हैं, चेतन सिंह हैं. जो घृणा आम लोगों के जहन में बोई गई वो फलने फूलने लगी है, वो इस सरकार का हासिल है।
ये जो हज़ारों लाखों लोग एक व्हाट्सएप पर घर बैठे लिंचिंग मॉब बन जाते हैं, ये सफलता गिनाई जानी चाहिये.
ये जो लोग सच झूठ का फ़र्क़ करना भूल गए, जानना समझना भूल गए, भले बुरे का अंतर भूल गए, मीडिया सोशल मीडिया के सहारे इन्हें झूठ ओढ़ना पहनना सिखाया गया, ये भी कम बड़ा अचीवमेंट नही.
ये जो सड़कों पर बेरोज़गारों की फ़ौज खड़ी की है जो दंगाई बनने को तैयार हैं , नग्न परेड कराने को तैयार है, ये 9 साल की उपलब्धि है.
आपको क्रेडिट छीनने की ज़रूरत ही नही महाराज , आपके ख़ुद के खाते में इतनी उपलब्धियाँ हैं कि उन्हें ही दिखाकर वोट ले सकते हैं.
पता नही क्यों आप झूठे आँकड़े परोसते है, क्रेडिट छीनते हैं, जब आपको अपने किसी कृत्य पर शर्म नही आती तो अपनी असल उपलब्धियों पर वोट माँगने में क्यों आती है.
सुदीप्ति-
तृप्ता त्यागी ने शिक्षकों की दुनिया की वह सच्चाई सामने ला दी है जो बरसों से ढकी छिपी थी। जाति- धर्म आधारित भेदभाव और कलुषता इनके व्यक्तित्व की बनावट में हैं। सुना है वे हिंदी की शिक्षिका हैं। हिंदी, संस्कृत तो ज़ाहिरन ऐसी सोच से जोड़ दिए जाते हैं पर विज्ञान, गणित और सामाजिक विज्ञान पढ़ाने वालों के भीतर भी ऐसा चरित्र भरा पड़ा है।
सच कहूँ तो मुझे इस वक्त उस खास अध्यापक या अध्यापक समुदाय के प्रति नहीं लेकिन जो बच्चे इस समय और माहौल में बड़े हो रहे हैं; जो पिट रहा है और जो पीट रहा है- उन दोनों के ट्रामा और उन दोनों के व्यक्तित्व के विकास के लिए बहुत चिंता और दुख हो रहा है।
समाज ऐसा भयावह बन रहा है कि आने वाले समय में बच्चों का जीवन घृणा, क्षोभ और अन्य नकारात्मक भाव से भरते हुए दिख रहा है। इसलिए मैं कहती हूं कि शिक्षक को कभी गुरु मत मानो। वह होता ही नहीं है।
मैं बेशक शिक्षण पेशे में हूँ लेकिन मुझे शिक्षक समुदाय से बहुत शिकायतें हैं। आए दिन होने वाले भेदभाव की खबरें, हिंसा की खबरें बताती हैं कि वह शिकायतें वाज़िब हैं।
उर्मिलेश-
अपने ही स्कूल के एक मुस्लिम बच्चे को बहुसंख्यक समाज के बच्चों से भरपूर पिटवाने वाली मुज़फ़्फ़रनगर की महिला टीचर तृप्ता त्यागी के बचाव में सिर्फ़ कुछ सियासतदां ही नहीं, तरह-तरह के कथित ‘सामाजिक कार्यकर्ता’ और मीडियापुरम् का एक हिस्सा भी उतर आया है. पीटे गये बच्चे या उसके परिवार की जगह उक्त महिला टीचर को ही ‘विक्टिम’ साबित किया जा रहा है. यही है न्यू इंडिया!
एफए किदवई-
जिस समाज में नफ़रतें इतनी बढ़े की उसकी लौ, जवान लड़के, अधेड़ मर्द और बूढ़े से बढ़कर औरतों के दिलों तक आने लगें समझो वो समाज नफरत की चरम सीमा तक पहुँच चुका है।
क्योंकि एक औरत के दिलों तक नफरत सबसे अंत में पहुँचती है।
औरत का दिल नर्म होता है, उसमें करुणा होती है, उसमें ग़ैर के बच्चों के लिए भी ममता होती है, तृप्ता त्यागी तुमने समाज को कलंकित किया है, तुमने ममता करुणा जैसे शब्द को तार-तार किया है।
सौमित्र रॉय-
यूपी के मुजफ्फरनगर का नेहा पब्लिक स्कूल। स्कूल की टीचर तृप्ता त्यागी एक हिंदू बच्चे को साथी मुस्लिम बच्चे के गाल पर थप्पड़ मारने को कहती है।
क्योंकि वह मुसलमान है। बच्चे के पिता इरशाद अपने बेटे को स्कूल नहीं भेजना चाहते। रिपोर्ट भी नहीं लिखवाएंगे। शायद कानून के राज पर यकीन नहीं बचा।
फिर, अपने बेटे को देश के किस स्कूल में भेजें, जहां धर्म के आधार पर विभाजनकारी सोच न हो ?
उस बच्चे की विचारधारा इस देश, लोकतंत्र और गरिमा, बराबरी और धार्मिक स्वतंत्रता की बड़ी बात करने वाले संविधान के प्रति कैसी होगी, जिसकी आत्मा को सरेआम एक थप्पड़ से कुचल दिया गया हो?
आप घर से बाहर निकलें। पाएंगे कि हर तीसरे दिमाग में यह ज़हर भरा है। यकीनन, ये सिर्फ एक घटना नहीं, एक विचारधारा की हार है। हम ऐसे ट्रेलर तब तक देखेंगे, जब तक बीजेपी और आरएसएस का सफाया नहीं हो जाता।
1857 से 1947 तक जिस एकजुटता के साथ हमने ब्रिटिश हुकूमत से जंग लड़ी, वह विचारधारा गांधी के साथ कैसे खत्म हो गई?
गाल पर मजहबी नफ़रत का थप्पड़ खाते उस बच्चे का क्या भविष्य है? उसके लिए इस देश की क्या तस्वीर है? देश का क्या तसव्वुर है?
सब–कुछ भूल जाना और डरकर, दुबककर, चुपचाप किसी मदरसे की आड़ लेना? मैं नहीं जानता कि प्रगतिशील विचारक इस घटना को किस तरह देखते हैं। मेरे लिए यह भारत की आत्मा पर थप्पड़ है।