Connect with us

Hi, what are you looking for?

उत्तर प्रदेश

कांग्रेस को मायावती की दुलत्तियां खाने का शौक होगा लेकिन अन्य दलों को भी हो, यह जरूरी नहीं है!

केपी सिंह-

उत्तर प्रदेश में भाजपा के विरूद्ध व्यापक गठबंधन बनाने के लिये कांग्रेस को बड़े नटकौशल का परिचय देना पड़ रहा है। अभी तक पटना और बैंगलौर में विपक्षी एकता की जो बैठक हुयी उनमें उत्तर प्रदेश से समाजवादी पार्टी और फिलहाल तक उसकी सहयोगी आरएलडी को ही आमंत्रित किया जा सका है। आरएलडी के संदर्भ में फिलहाल का उल्लेख इसलिये समीचीन है कि उसका आचरण उसे दुविधा में फसे होने का संकेत देने वाला है। भाजपा की तरफ से उसे अपने साथ बुलाने के इशारे हो रहे हैं जिन्हें दो टूक नकारना शायद जयंत चौधरी के लिये संभव नहीं हो पा रहा। इसलिये जयंत चौधरी विपक्ष की बैठकों में तो हाजिर रहे पर दिल्ली सेवा विधेयक को लेकर राज्यसभा में मतदान के समय उनकी इरादतन अनुपस्थिति भाजपा के मंतव्य के अनुरूप रही। इसे लेकर विपक्षी खेमा सतर्क हो गया है और उन्हें संदेह की निगाह से देख रहा है। मायावती को अभी तक हुयी विपक्ष की दो बैठकों में अलग थलग कर दिया गया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

दरअसल कांग्रेस को जो अघोषित तौर पर विपक्षी एकता की मुख्य सूत्रधार है, मायावती को लेकर कई कोंण से सोचना पड़ रहा है। समाजवादी पार्टी मायावती के प्रति बेहद तल्ख है। मायावती का उसके प्रति दांव देने जैसा रवैया रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी और बहुजन समाजवादी पार्टी ने गठबंधन किया था जो सफल नहीं हुआ। इसके पीछे कई कारक ढूंढे जा सकते हैं पर चुनाव परिणाम आने के कुछ ही दिनों बाद मायावती ने गठबंधन की हार का सारा ठीकरा समाजवादी पार्टी के सिर फोड़ दिया। इसके बाद अपने वक्तव्यों में उन्होंने लगातार अखिलेश यादव को नीचा दिखाया और इतनी गहरी खाई पैदा कर ली कि अखिलेश आसानी से दोबारा उनसे कोई रिश्ता बनाने की सोच नहीं सकते।

कांग्रेस को समाजवादी पार्टी की इन भावनाओं का एहसास है और सबसे पहले वह समाजवादी पार्टी को ही साधे रहना चाहती है। मायावती के लिये वह इसी कारण ऊपरी तौर पर कोई उत्सुकता नहीं दिखा रही। उसे लगता है कि सबको साधने के चक्कर में सब गवां देने की नौबत न आ जाये। लेकिन खबर यह है कि अंदरखाने में कांग्रेस मायावती के साथ तार जोड़ने की कोशिश कर रही है। शायद इस वजह से कि विश्लेषकों का आकलन यह है कि मायावती को भले ही चुनाव में एक भी सीट जीतने की सफलता न मिल पाये लेकिन अभी भी मतदाताओं के एक बड़े वर्ग पर उनकी पकड़ है। कांग्रेस मायावती के इस मतदाता वर्ग को विपक्षी गठबंधन में समेट लेना चाहती है ताकि भाजपा को दी जाने वाली चुनौती और बड़ी की जा सके।

Advertisement. Scroll to continue reading.

वैसे मायावती के मिजाज को देखते हुये यह नहीं कहा जा सकता कि भाजपा को सत्ता से बाहर करने की बहुत ज्यादा फिक्र उन्हें हो। गत विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के लगभग शून्य पर पहुंच जाने के बावजूद उनके गुरूर में अभी तक कोई कमी नहीं आयी है। वे अगर किसी गठबंधन में जाने को तैयार भी हो जायें तो अपनी शर्तों पर चीजें चलाने से बाज नहीं आ सकतीं। कांग्रेस के खिलाफ विषवमन करने में भी उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ रखी। समाजवादी पार्टी के प्रति वे अखिलेश के चन्द्रशेखर के साथ गठबंधन करने से वे बहुत कटु हो गयीं हैं तो कांग्रेस द्वारा एक दलित को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की भी उन्हें अपनी जागीर लुट जाने जैसी गहरी पीड़ा है। गो कि दलितों को वे अपनी मिल्कियत समझतीं हैं और इसमें किसी तरह का बंटवारा उन्हें मंजूर नहीं है। फिर भी कांग्रेस की तरफ से मायावती को मनाने की कोशिश हो रही है।

चर्चा यह है कि मायावती की सदभावना हांसिल करने के लिये ही कांग्रेस ने बृजलाल खाबरी से उत्तर प्रदेश के संगठन की बागडोर छीनी है। खाबरी एक समय मायावती के शिष्य थे। जब कांग्रेस ने उन्हें संगठन में उत्तर प्रदेश का अध्यक्ष बनाया तो मायावती ने इसे आजादी की लड़ाई के समय बाबा साहब अम्बेडकर के साथ कांग्रेस द्वारा की गयी साजिश जैसे कृत्य के रूप में प्रस्तुत किया। मायावती ने यह साबित करने की कोशिश की कि कांग्रेस पहले बाबा साहब अम्बेडकर के कद को छोटा करने के लिये बाबू जगजीवन राम को उनके समानांतर स्थापित करती रही और आज की कांग्रेस यही व्यवहार उनके साथ करने के लिये अपनी पार्टी में दलित नेताओं को उभार रही है। इसके पहले जब कांग्रेस ने पंजाब में पहली बार चन्नी के माध्यम से दलित नेता को मुख्यमंत्री पद के लिये अवसर दिया था उस समय भी मायावती काफी भड़क गयीं थी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

राहुल गांधी ने काफी पहले एक अभियान चलाया था जिसके तहत उन्होंने कहा था कि मायावती किसी दलित चेहरे को नेता नहीं बनने देतीं जिससे दलितों का बड़ा नुकसान हो रहा है और कांग्रेस पार्टी यह काम करेगी कि हर स्तर पर दलित नेतृत्व सामने आये। कांग्रेस के माफियाओं के दबदबे के कारण अपने अन्य प्रयोगों की तरह राहुल गांधी इसके लिये भी किसी प्रयोग को परवान नहीं चढ़ा पाये थे। अब जबकि कांग्रेस में राहुल गांधी की प्रभावी हस्तक्षेप की क्षमता स्थापित हो चुकी है और किसी पद पर न रहने के बावजूद उन्होंने पार्टी में सर्वोपरि नेता का दर्जा प्राप्त कर लिया है तो वे अपने मंसूबे पूरे करने में जुटे हैं।

मल्लिकार्जुन खरगे को कांग्रेस अध्यक्ष बनने का अवसर उनके इसी मकसद को पूरा करने के लिये मिला जिसमें वयोवृद्ध होते हुये भी मल्लिकार्जुन अपने को खरा साबित करने में सफल हो रहे हैं। ऐसा नहीं है कि दलितों पर इसका असर न हो। खरगे के आगे आने से दलितों में नये सिरे से कांग्रेस की स्वीकार्यता देशभर में बन रही है और भाजपा इस कारण भी कांग्रेस की चालों से दबाव में दिखने लगी है। पर मायावती दलित नेतृत्व के मामले में अपनी इजारेदारी के साथ कोई समझौता मंजूर नहीं कर सकती। ऐसे में विपक्षी एकता को भी उन्हें भाड़ में भेजने में संकोच नहीं हो सकता। बृजलाल खाबरी को उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष पद से हटाकर कांग्रेस ने मायावती को खुश करने की कोशिश की लेकिन क्या कांग्रेस उनकी खुशी के लिये मल्लिकार्जुन खरगे को हाशिये पर डालने की जोखिम मोल ले सकती है। जाहिर है कि इसका उत्तर होगा बिल्कुल नहीं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अच्छा होगा कि गठबंधन के मामले में कांग्रेस भावुक बनने की बजाय यथार्थ परक दृष्टिकोंण अपनाये। मायावती की राजनीति अपने हित तक सीमित है न कि कोई सैद्धांतिक लक्ष्य वे सामने रखती हैं। विपक्षी एकता का मूल तत्व धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की प्रतिबद्धता है। सिद्धांततः मायावती को भी इस प्रतिबद्धता से मुकरना नहीं चाहिए। पर वे इस मामले में कितनी प्रतिबद्ध रहती है यह तो तभी जाहिर हो गया था जबकि वे गुजरात के विधानसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के पक्ष में सभाऐं करने पहुंच गयीं थी। आकलन यह था कि इसके बाद वे अल्पसंख्यकों के समर्थन से हाथ धो बैठेंगीं। पर ऐसा कहां हुआ। उन्होंने हर जाति धर्म के बाहुबलियों को टिकट देकर उस वर्ग का वोट हथियाने की जो रणनीति अपनायी उसमें वे कुछ भी करके अभी तक सफल हैं। इसलिये धर्मनिरपेक्षता की लक्ष्मण रेखा उनके पांव कैसे बांधे। कांग्रेस अगर यह सोचती है कि वे ऐसी प्रतिबद्धता के कारण विपक्षी एकता की छतरी के नीचे आ जायेंगी तो वह मुगालते में है। इसके अलावा महत्वपूर्ण बात यह है कि कांग्रेस को मायावती की दुलत्तियां खाने का शौक होगा लेकिन अन्य दलों को भी हो यह जरूरी नहीं है। पता नहीं यह बात कांग्रेस के पल्ले पड़ती है या नहीं।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement