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सुख-दुख

अमर उजाला अख़बार में अग़ल-बगल लगी ये दोनों खबरें बहुत कुछ कहती है

इससे एक बात तो साफ है कि संघ का बौद्धिक जगत इनको ही साहित्यकार मानता है। इस नाते उनकी साहित्यिक समझ या लुगदी साहित्य के बारे में और कुछ टिप्पणी करना निरर्थक है. -अरविंद कुमार सिंह, वरिष्ठ पत्रकार

हमारे जमाने में जिन उपन्यासों को पढ़ने के आरोप में कई लोग अपने माँ-बाप से लात-जूते खा चुके थे, अब वही उपन्यास साहित्य की मुख्य धारा में ला दिए गए हैं। पाठ्यक्रम में शामिल करके। फिर भी लोग कह रहे हैं कि विकास ही नहीं हुआ! हद है। – समीरात्मज मिश्रा, वरिष्ठ पत्रकार

अमर उजाला में यह खबर लिखने वाले संवाददाता को यह नहीं पता कि निराला कभी डॉ. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला नहीं कहे गये क्योंकि उनकी कोई औपचारिक शिक्षा नहीं थी। डेस्क के लोगों ने भी इसे जस का तस जाने दिया। -शंभूनाथ शुक्ला, वरिष्ठ पत्रकार

निराला और फिराक़ पाठ्यक्रम से बाहर… NCERT के पाठ्यक्रम से महाप्राण निराला और फ़िराक गोरखपुरी की रचनाएं हटा दी गई हैं। उधर गोरखपुर विश्वविद्यालय में अब अब हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला और वेदप्रकाश शर्मा का उपन्यास वर्दी वाला गुंडा पाठ्यक्रम में शामिल हो गए हैं। -डाक्टर राकेश पाठक, वरिष्ठ पत्रकार


बहुत विचित्र लग रही है ये बात। जिन उपन्यासों को हम छुपाकर पढ़ा करते थे क्योंकि घर में ‘अलाउड’ नहीं था आज वही सब कोर्स में लगाया जा रहा है। । हमें सलाह नहीं बाकायदा आदेश होता था कि ‘ये सब नहीं, कोर्स की किताबें पढ़ो।’ ये भी सच है कि हमने गुलशन नन्दा और वेदप्रकाश शर्मा को भी चाहे छुपकर पढ़ा लेकिन पढ़ा जरूर। फिर भी लोकप्रियता के इस नए पायदान से हमें उलझन क्यों महसूस हो रही है? कुछ ऐसा महसूस हो रहा है कि हमारे साहित्यिक अभिजात्य में एक सेंध लग रही है। -अंजु शर्मा, विश्लेषक

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3 Comments

3 Comments

  1. Sanjay Agnihotri साहित्यकार(Litterateur)

    April 5, 2023 at 5:42 pm

    हमारी अपनी भाषा यानि हिन्दी उतनी आगे नहीं बढ़ पायी जितनी विश्व पटल पर विदेशी भाषायें मुखरित हैं। जानते हैं क्यों?
    ऑस्ट्रेलिया मे जब बच्चे छठी कक्षा पास कर सेकेंडरी स्कूल पहुंचते है तो उसे स्कूल का एक टूर कराया जाता है उस टूर मे जब वो बच्चे लाइब्रेरी पहुंचते हैं तो लाइब्रेरियन उन्हें एक छोटा सा लेक्चर देता है कि यदि आप इस लाइब्रेरी के सारे उपन्यास(जिसमे सब तरह के उपन्यास होते हैं ) पढ़ डालें तो आप भाषा (यानि अँग्रेजी) मे गणित के समान नम्बर ला सकते हैं। लाइब्रेरियन के उस कथन को भाषा अध्यापक निभाते भी हैं। मेरे बेटी और बेटे दोनों ने लाइब्रेरियन के कहे अनुसार किया और भाषा के नंबरों के दम पर यहाँ के सबसे अच्छे विश्वविद्यालय मे मनचाही व्यावसायिक शिक्षा मे प्रवेश पाया। यही नहीं यहाँ नॉवेल स्टडी एक विषय भी है उसने भी स्कोर करने मे बहुत मदद की थी।
    इसके विपरीत भारत मे उपन्यास पढ़ने वाले की डांट पड़ती है। कक्षा मे अध्यापक के सवाल पूछने पर यदि बच्चा किसी सवाल का जवाब न दे पाए तो वो अध्यापक टॉन्ट करता है कि क्या किताब के बीच मे नॉवेल छिपा के पढ़ते हो? हिंदी के अध्यापक किसी को सौ मे से पचास के ऊपर, नम्बर ही नहीं देना चाहते चाहे कोई कितना भी अच्छा लिखे। जैसे नम्बर उनकी तनखाह से कटने जा रहे हों।

  2. Sanjay Agnihotri Litterateur

    April 5, 2023 at 5:44 pm

    हमारी अपनी भाषा यानि हिन्दी उतनी आगे नहीं बढ़ पायी जितनी विश्व पटल पर विदेशी भाषायें मुखरित हैं। जानते हैं क्यों?
    ऑस्ट्रेलिया मे जब बच्चे छठी कक्षा पास कर सेकेंडरी स्कूल पहुंचते है तो उसे स्कूल का एक टूर कराया जाता है उस टूर मे जब वो बच्चे लाइब्रेरी पहुंचते हैं तो लाइब्रेरियन उन्हें एक छोटा सा लेक्चर देता है कि यदि आप इस लाइब्रेरी के सारे उपन्यास(जिसमे सब तरह के उपन्यास होते हैं ) पढ़ डालें तो आप भाषा (यानि अँग्रेजी) मे गणित के समान नम्बर ला सकते हैं। लाइब्रेरियन के उस कथन को भाषा अध्यापक निभाते भी हैं। मेरे बेटी और बेटे दोनों ने लाइब्रेरियन के कहे अनुसार किया और भाषा के नंबरों के दम पर यहाँ के सबसे अच्छे विश्वविद्यालय मे मनचाही व्यावसायिक शिक्षा मे प्रवेश पाया। यही नहीं यहाँ नॉवेल स्टडी एक विषय भी है उसने भी स्कोर करने मे बहुत मदद की थी।
    इसके विपरीत भारत मे उपन्यास पढ़ने वाले की डांट पड़ती है। कक्षा मे अध्यापक के सवाल पूछने पर यदि बच्चा किसी सवाल का जवाब न दे पाए तो वो अध्यापक टॉन्ट करता है कि क्या किताब के बीच मे नॉवेल छिपा के पढ़ते हो? हिंदी के अध्यापक किसी को सौ मे से पचास के ऊपर, नम्बर ही नहीं देना चाहते चाहे कोई कितना भी अच्छा लिखे। जैसे नम्बर उनकी तनखाह से कटने जा रहे हों।

  3. Sanjay Agnihotri

    April 5, 2023 at 5:45 pm

    हमारी अपनी भाषा यानि हिन्दी उतनी आगे नहीं बढ़ पायी जितनी विश्व पटल पर विदेशी भाषायें मुखरित हैं। जानते हैं क्यों?
    ऑस्ट्रेलिया मे जब बच्चे छठी कक्षा पास कर सेकेंडरी स्कूल पहुंचते है तो उसे स्कूल का एक टूर कराया जाता है उस टूर मे जब वो बच्चे लाइब्रेरी पहुंचते हैं तो लाइब्रेरियन उन्हें एक छोटा सा लेक्चर देता है कि यदि आप इस लाइब्रेरी के सारे उपन्यास(जिसमे सब तरह के उपन्यास होते हैं ) पढ़ डालें तो आप भाषा (यानि अँग्रेजी) मे गणित के समान नम्बर ला सकते हैं। लाइब्रेरियन के उस कथन को भाषा अध्यापक निभाते भी हैं। मेरे बेटी और बेटे दोनों ने लाइब्रेरियन के कहे अनुसार किया और भाषा के नंबरों के दम पर यहाँ के सबसे अच्छे विश्वविद्यालय मे मनचाही व्यावसायिक शिक्षा मे प्रवेश पाया। यही नहीं यहाँ नॉवेल स्टडी एक विषय भी है उसने भी स्कोर करने मे बहुत मदद की थी।
    इसके विपरीत भारत मे उपन्यास पढ़ने वाले की डांट पड़ती है। कक्षा मे अध्यापक के सवाल पूछने पर यदि बच्चा किसी सवाल का जवाब न दे पाए तो वो अध्यापक टॉन्ट करता है कि क्या किताब के बीच मे नॉवेल छिपा के पढ़ते हो? हिंदी के अध्यापक किसी को सौ मे से पचास के ऊपर, नम्बर ही नहीं देना चाहते चाहे कोई कितना भी अच्छा लिखे। जैसे नम्बर उनकी तनखाह से कटने जा रहे हों।

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