Om Thanvi : लाल बत्ती से परहेज़ के बाद योगी आदित्यनाथ का पान मसाले, सुरती-ज़र्दा थूक कर दीवारें रंगने के ख़िलाफ़ किया गया फ़ैसला मुझे सही लगा। हालाँकि इस क़िस्म के शौक़ दफ़्तर में पूरे न करने का निर्देश उन्होंने शास्त्री भवन (एनेक्सी) के मामले में ही दिया है, जहाँ मुख्यमंत्री का अपना कार्यालय है। पर यह मुमानियत – धूम्रपान निषेध की तरह – प्रदेश के तमाम सरकारी दफ़्तरों, सार्वजनिक स्थलों पर भी लागू हो जानी चाहिए।
कहा जा सकता है कि पान चबाना, सुरती-गुटका खाना किसी का निजी मामला है। लेकिन इनसे सार्वजनिक स्थल गंदे होते हैं। गंदगी से बीमारी फैलती है। दीवारों और अन्य स्थलों का रखरखाव भी सरकारी ख़र्च पर ही होता है। ज़ाहिर है, निजी शौक़ के चलते बोझ समाज के स्वास्थ्य और जेब पर पड़ता है। सार्वजनिक स्थल पर सिगरेट पर प्रतिबंध भी आख़िर इसीलिए लगाया गया था कि इससे दूसरों का स्वास्थ्य और हमारा पर्यावरण प्रभावित होता है।
इतना ही नहीं मेरा मानना रहा है कि पान-गुटका-सिगरेट का सेवन कर लोक-व्यवहार (पब्लिक डीलिंग) करने में उस शख़्स के प्रति अवज्ञा या असम्मान का भाव भी झलकता है, जिससे सेवन करने वाला मुख़ातिब होता है। इसलिए बड़े अफ़सरों के सामने तो सरकारी कर्मचारी इनका त्याग कर लेते हैं, बाक़ी हरदम खाना-थूकना-फूंकना क़ायम रहता है।
बूचड़खाने या श्मसान-क़ब्रिस्तान को छोड़ योगी अगर साझा हित के कामों पर ध्यान दें तो लोग शायद उनके विभिन्न विवादास्पद वीडियो पर कम ध्यान देंगे। रिश्वतखोरी, शासन में जातिवाद और सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग (मसलन वाहनों का निजी कामों में इस्तेमाल, जो बहुत आम है) को रोकना उनकी बड़ी प्राथमिकता हो सकता है।
वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी की एफबी वॉल से.