एक अच्छी नीयत के ईमानदार व मेहनती मुख्यमंत्री की छवि को उनके ही अफसर तार तार कर रहे हैं!

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अश्विनी कुमार श्रीवास्तव-

यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से शासन – प्रशासन के अधिकारी – कर्मचारी डरते भी नहीं हैं और खौफ भी बहुत खाते हैं। आप सोचेंगे कि यह क्या बात हुई? यह तो दोनों विरोधाभासी बातें हैं… लेकिन यूपी का फिलहाल यही सच है।

ऐसा विरोधाभास इसलिए है क्योंकि तकरीबन हर विभाग का अफसर और कर्मचारी जानता है कि योगी तक कोई अन्याय या भ्रष्टाचार का मामला पहुंचा तो गाज गिरनी तय है। लेकिन उन्हें साथ ही यह भी पता है कि योगी ने जनता की शिकायत सुनने के सिस्टम जरूर बेहतरीन बना दिए हैं मगर इसी सिस्टम का सहारा लेकर मामला योगी तक पहुंचने ही नहीं देना है।

जाहिर है, अफसर – कर्मचारी जानते हैं कि एक तो इस सिस्टम में अगर फर्जी आख्या यानी गोलमोल अथवा झूठे जवाब लगा दिए जाएं तो जनता इतनी जागरूक ही नहीं है कि उसके आगे अपनी शिकायत को कैसे बढ़ाना है, यह कदम उसे पता हों।

दूसरा लंबित और फर्जी आख्या वाले मामलों में यदि रिमाइंडर या असंतुष्टि वाले फीडबैक दिए भी जायेंगे तो सिस्टम को ऑपरेट करने वाले तकनीकी लोग, आख्या देने वाले अफसर या शीर्ष पर बैठे अफसर तक चढ़ावा पहुंचा कर कैसे मामले को रफा दफा करवाना है, यह व्यवस्था भी अंदरखाने में चल रही है।

ऐसे हालात में इक्का दुक्का मामले अगर योगी तक पहुंच भी जाते हैं तो इन बेईमान अफसर – कर्मचारी का नेक्सस उसमें हार स्वीकार करके बाकी के मामलों से काली कमाई करता रहता है।

योगी तकरीबन हर रोज ही एक के बाद एक विभागों की जनशिकायतों के निपटारे की संख्यात्मक आंकड़े पर गहन बैठक करते हैं।

बैठक में उनके ही करीबी कुछ अफसर, जो इस नेक्सस को चला रहे हैं, जाहिराना तौर पर आंकड़े दिखाकर उन्हें हर जनशिकायत पर मिल रहे न्याय की गुलाबी तस्वीर दिखा देते होंगे।

यह जो कुछ मैं लिख रहा हूं, यह मेरा खुद के निजी अनुभवों पर आधारित है, जो साल 2017 से लेकर अब तक दर्जनों छोटे बड़े सरकारी कामों को करवाने की जद्दोजहद में मैंने महसूस किया है।

फिलहाल मैं किसी विभाग, किसी अफसर या किसी काम का जिक्र इसलिए नहीं कर रहा हूं क्योंकि यह किसी एक अफसर, विभाग या काम की कहानी ही नहीं बल्कि पूरे यूपी में यही दशा है।

ऐसी विरोधाभासी परिस्थितियों के चलते लगभग हर विभाग में योगी की बनाई पारदर्शी और बेहतरीन व्यवस्था भी चल रही है और भ्रष्टाचार भी उतने ही धड़ल्ले से चल रहा है, जितने बेखौफ होकर यह पहले भी चलता था। बल्कि मुख्यमंत्री के सुनवाई तंत्र और मुख्यमंत्री की बनाई व्यवस्थाओं को सोशल मीडिया पर गरियाने वालों और यूपी में बढ़ते भ्रष्टाचार को कोसने वालों की तादाद जरूर बढ़ रही है।

कुल मिलाकर लब्बोलुआब यह कि एक अच्छी नीयत के ईमानदार व मेहनती मुख्यमंत्री की छवि को उनकी ही नाक के नीचे बैठे अफसर पूरे यूपी में तार तार कर रहे हैं और योगी को पता तक नहीं चल रहा।

शायद प्रशासन चलाना इसीलिए आसान नहीं कहा जाता। एक मुख्यमंत्री ईमानदार हो, मेहनती हो लेकिन प्रशासन में कच्चा हो तो मुख्यमंत्री इस भ्रम में रहता है कि जनता उससे खुश है… और जनता इस बात से नाराज होती रहती है कि शासन – प्रशासन में उसकी सुनने वाला कोई है ही नहीं।

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