न्यूज़ वर्ल्ड इंडिया के बारे में बड़ी ख़बर आ रही है। चैनल में ज़बर्दस्त छंटनी का दौर चल रहा है। सूत्रों के मुताबिक 65 हज़ार से ज़्यादा सैलरी पाने वाले सभी वरिष्ठों को इस्तीफ़ा देने का फरमान सुना दिया गया है। ख़बर है कि ये सभी लोग मैनेजमेंट पर दबाव बनाने के लिए 6 महीने की सैलरी मुआवजे के तौर पर मांग रहे हैं। साथ ही दलील दी रहे हैं कि प्रबंधन ने जब बांग्ला और हरियाणा चैनल बंद किया था तब निकाले गए कर्मचारियों को 6 महीने की तनख्वाह मुआवजे के तौर पर दी थी।
कर्मचारियों ने अपनी मांग एच.आर. हेड मनोज दुबे के सामने रख दी है। सूत्र बता रहे हैं कि मैनेजमेंट कर्मचारियों की मांग मानने को कतई राजी नहीं है और मैनेजमेंट का कहना है कि वो चैनल को बंद नहीं कर रहे हैं सिर्फ ज़्यादा सैलरी वालों की छंटनी कर रहे हैं। कुछ लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि ज़्यादा मुआवजे से बचने के लिए ही मैनेजमेंट चैनल बंद करने के बजाय छंटनी करने की बात कर रहा है लेकिन जिस तरह से पिछले कुछ महीनों में छंटनी हुई है और हो रही है ऐसे में चैनल बंद होने के रास्ते पर ही है। फिलहाल मैनेजमेंट और कर्मचारियों के बीच “तू डाल-डाल मैं पात-पात” के खेल चल रहा है।
उधर एक ख़बर ये भी मिल रही है कि इससे पहले जिन लोगों से इस्तीफ़ा लिया गया वो भी लामबंद हो रहे हैं और उनका कहना है कि अगर किसी भी कर्मचारी को 6 महीने की सैलरी दी गई तो वो भी उतना ही मुआवजा मांगेंगे और न्याय के लिए अदालत तक जा सकते हैं। सभी जानते हैं कि ये चैनल कांग्रेसी नेता नवीन जिंदल का है और फिलहाल उनकी पत्नी शालू जिंदल चैनल का कामकाज देखती हैं। छँटनी की प्रक्रिया में सीधे तौर पर तो एच.आर. हेड मनोज दुबे शामिल हैं लेकिन सूत्रों के मुताबिक परदे के पीछे शालू जिंदल और कंपनी के 5 डायरेक्टर्स में से एक विपिन शर्मा फ़ैसला ले रहे हैं।
फिलहाल छँटनी की गाज गिरने से कर्मचारियों में हड़कंप मचा हुआ है। जिनको इस्तीफ़ा देने के लिए अभी तक नहीं कहा गया है वो भी डरे-सहमे हैं। किसी तरह चैनल का काम हो रहा है। पूर्व केंद्रीय मंत्री मतंग सिंह के चैनल फ़ोकस को लीज पर लेने के बाद से लेकर कंपनी और चैनल का नाम बदलने तक नवीन जिंदल ने पूरी कोशिश की लेकिन न तो चैनल को कभी अच्छी टीआरपी मिली और न कभी चैनल ने उम्मीद के मुताबिक कमाई की। लिहाजा लगातार घाटा होने की वजह से मैनेजमेंट का मोहभंग हो गया है। संजीव श्रीवास्तव, शैलेश कुमार, विनोद दुआ, संदीप बामजई, सुदीप मुखिया, अखिल भल्ला और न जाने कौन कौन समय-समय पर चैनल के साथ जुड़े लेकिन नतीजा कभी बेहतर नहीं निकला।
कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि नवीन जिंदल ने ज़ी मीडिया के मालिक सुभाष चंद्रा से टकराव शुरू होने के बाद ही चैनल खोला था लेकिन दोनों में अब समझौते की प्रक्रिया अंतिम दौर में है इसलिए भी जिंदल चैनल चलाने के पक्ष में नहीं हैं। दरअसल 100 करोड़ की उगाही की कोशिश के एक मामले में सुभाष चंद्रा, सुधीर चौधरी, समीर अहलूवालिया के ख़िलाफ़ नवीन जिंदल ने कोर्ट में केस किया था। तब से दोनों चैनल एक दूसरे के ख़िलाफ़ ख़बर चलाने में पीछे नहीं रहे। अब पता चल रहा है कि कारोबारी छवि का नुकसान होने की चिंता दोनों को समझौते की मेज तक खींच लाई है।
उधर कांग्रेसी और कोयला घोटाले के आरोपी होने का नुकसान ये हुआ कि लाख कोशिश करने के बावजूद नवीन जिंदल कभी भी बीजेपी और मोदी सरकार की “गुड बुक” में नहीं आ पाए। पीएम मोदी के साथ दावोस जाने वाले प्रतिनिधिमंडल में भी नवीन जिंदल को जगह नहीं मिली। उड़ीसा के अंगुल में भारी-भरकम निवेश करने और उस प्लांट से अपेक्षित आमदनी न होने से नवीन जिंदल को बड़ा झटका लगा है। कंपनी पर पहले से ही लोन का भारी बोझ है। यहां तक की जिंदल स्टील और पावर प्लांट में भी कई लोगों को बाहर का रास्ता दिखाया गया है और कई लोगों की सैलरी में कटौती की गई है। अब उस छंटनी का असर चैनल तक पहुंच गया है।
NJ
April 24, 2018 at 5:22 am
किसी की नौकरी जाना एक दुखद घटना है लेकिन कुछ नाकारों को अगर बाहर का रास््ता दिखाया जाए तो संस््था के हित में होता है। वहां भी कुछ नाकारों ने चैनल का बैंड बजा रखा था। चैनल अगर ऐसे लोगों से निजात पा ले तो अच््छा है।
NJ
April 24, 2018 at 5:37 am
सबसे बड़ा नाकारा तो चैनल का मैनेजिंग एडिटर है। उसका नंबर आया ?