वाराणसी : भले ही लखनऊ में समाजवादी शासन फल-फूल रहा हो लेकिन भदोही के सवरपुर गांव में तो उसकी परछाई भी नहीं दिखती। यहां समाजवाद गरीब के दरवाजे पर नहीं पहुंचा, उलटे गरीब ही अपना घर-द्वार छोड़ भागता फिर रहा है। एक तरफ कैलाश गौड़ के दरवाजे पर बंद ताला, सूनी पड़ी झोपड़ी तो दूसरी तरफ प्रधान सभाजीत के बंद जुबान से एक कदम आगे मिश्रा बन्धुओं की बेबाक खुली जुबान खुद ब खुद बता रही है कि पंचायती राज व्यवस्था में सत्ता किसके नाम पर है, और उसे चला कौन रहा है। यहां प्रधान की हरकतें खुद ही बयान कर रही हैं कि वो महज एक रबर स्टंप से ज्यादा कुछ और नहीं है। प्रधान से कुछ पूछने पर जवाब मिश्रा बन्धु ही देते हैं।
भदोही के सवरपुर गांव के दबंगों से आतंकित परिवार वाराणसी की सड़कों पर दिन बिताते हुए
नरेगा की जांच की मांग पर दंबगों द्वारा मारपीट और कानून से मदद न मिलने पर परिवार सहित गांव से पलायन करने वाले कैलाश गौड़ घटना के 72 घंटे बाद भी गांव नहीं लौटना चाहते, भले ही बनारस में उन्होनें आईजी जोन और प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यालय पहुंच कर सोमवार को अपनी शिकायत दर्ज करवा दी हो। उनकी आंखों में डर और बेबसी साफ नजर आ रही है। इसका एक कारण और भी है कि घटना के बाद भी पुलिस का पूरे मामले को लेकर उदासीन बने रहना।
सोमवार को उनके गांव का नजारा कुछ ऐसा ही दिखा। चौरी थाना पहुंचकर घटना की जानकारी लेने पर उल्टे थाने पर मौजूद दरोगा ने हमसे ही पूछ लिया, कुछ हुआ है क्या? अगर आपको पता है, तो हमे बता दिजिए। यहां से संवरपुर पहुंचकर गांव प्रधान सभाजीत से घटना के बारे में पूछने पर वो मौनी बाबा बन गये। पीड़ित कैलाश के घर के आस-पास वालों ने कहा कि भैया यहां तो जेके ढेर बा उहे शेर बा। गांव के ही सदानंद गुप्ता, राजनाथ गुप्ता ने बताया कि मनरेगा के नाम पर घोटाला तो हुआ है, अब अगर उसकी जांच होती है, तो उसमें बुरा क्या है। नौजवान आयुश मिश्रा ने साफ कहा कि प्रधान तो महज एक रबर स्टंप है, सारा काम तो अखिलेश और अवधेश मिश्रा ही कर रहे हैं।
राजधानी में बैठकर भले ही खादी- खाकी समानता और कानून व्यवस्था में सुधार होने का जश्न मना रहे हैं, पर राजधानी से दूर इलाकों में आज भी दबंग की मार का कोई काट आम आदमी के पास नहीं है, इनके लिए हौसला भी जुर्म है, और बेबसी भी।
लेखक एवं पत्रकार भास्कर गुहा नियोगी का मोबाइल संपर्क : 09415354828