राकेश-
इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रनवीर सिंह ने एक आर्टिकल लिखा। आपसी बातचीत के बाद अपने पुराने दोस्त शंकर सुहैल को इस गरज से भेजा कि कहीं छप जाएगा। शंकर जी ने अपने परिचित इन मलिक साहब को दिया क्योंकि उनकी नजर में ये सज्जन जिम्म्मेदार पत्रकार हैं और उनकी जानकारी में दैनिक भास्कर में काम करते हैं।
लेकिन ये केपी मलिक इतना बड़ा फ्रॉड निकला कि इसने यह लेख अपने नाम से खुद छपवा लिया।
दैनिक भास्कर के देहरादून संस्करण की क्लिपिंग भी कुछ लोगों से शेयर की।
रनवीर सिंह न सिर्फ इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं बल्कि वयोवृद्ध रंगकर्मी और एक आजाद ख्याल विचारक और लेखक के रूप में उनकी पहचान हैं।
अब पता नहीं ये केपी मलिक किस फ्रॉड का नाम है जिसके परिचय में दैनिक भास्कर का राजनीतिक सम्पादक होना छपा है। पट्ठे ने किसी और का लेख अपने नाम से छापकर गजब की पत्रकारिता का परिचय दिया है। दैनिक भास्कर का यह संस्करण झांसी से संबद्ध है।
ये है केपी मलिक का पक्ष-
के पी मलिक खिलाफ भ्रामक खबर फैलाने के संदर्भ में
मेरे वरिष्ठ मित्र और दूरदर्शन के लिए लंबे समय से काम करने वाले शंकर सुहेल जी द्वारा लगातार रणवीर सिंह का आलेख छापने का आग्रह किया जा रहा था। मैंने उनका आलेख छापने में अपनी असमर्थता जताई थी और शंकर सुहेल जी को अवगत करा दिया था कि उनका आर्टिकल छापना मेरे कार्य क्षेत्र में नही आता। मैं उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुछ संस्करणों में राजनीतिक संपादक के रूप में कार्य करता हूं किसी का भी आर्टिकल प्रकाशित करना अथवा करवाना मेरी सामर्थ्य से बाहर का काम है।
लेकिन अगर वह फिर भी वह अपने विचार प्रकाशित करवाना चाहते हैं। तो मैं अपने आर्टिकल में उनके विचार समाहित करते हुए प्रस्तुति देकर प्रकाशित कर सकता हूं। उसके बाद सुहेल जी की सहमति के बाद ही मैंने उन्हीं के विचार छापते हुए सिर्फ प्रस्तुतीकरण किया है। अगर आप यह आर्टिकल देख रहे होंगे तो इसमें आर्टिकल मेरे नाम से नहीं बल्कि मेरे नाम से प्रस्तुति की गई है। जो लोग पत्रकारिता से जुड़े हुए होंगे। वह भलीभांति समझते होंगे कि प्रस्तुति का मतलब क्या होता है। इसलिए मेरा अनुरोध है कि इस गलती में सुधार किया जाए।
बहरहाल, इतने पुराने और सम्मानित मीडिया पोर्टल पर इस तरह की भाषा का प्रयोग मेरे लिए किया जाना, मेरे लिए आहत करने वाला है। मैं यशवंत जी और उनके इस पोर्टल का पिछले लगभग 15 साल से नियमित पाठक हूं अपने बारे में इस तरह की खबर इस सम्मानित पोर्टल पर पढ़कर बहुत आहत हूं और मुझे बड़ी पीड़ा पहुंची है कि मेरे नाम के साथ इस तरह के पट्ठे और फ्रॉड जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है। मैं आशा करता हूं कि यशवंत जी मेरी भावनाओं को समझते हुए तुरंत इसमें सुधार करेंगे। और लोगों को प्रस्तुतीकरण के विषय में भी बताएंगे।
धन्यवाद
के पी मलिक
राजनीतिक संपादक
(यूपी एवं उत्तराखंड)
संजय
October 25, 2021 at 3:53 pm
अरे यह केपी मलिक कब से संपादक हो गया। यह तो सहारा में कैमरामेन था। और कई आरोप से घिरा था। आर्टिकल चोर।
Vishnu Gupt
October 27, 2021 at 5:17 pm
मुझे तो पहले से यह मालूम था कि के पी मलिक का लेख कोई और लिखता है या फिर कुछ इसी तरह का फ्रोड कर रहा है। के पी मलिक फोटोग्राफर और वीडीओग्राफर रहा है। सहारा समय में वह कैमरामैन था। संपादकीय पेज पर छपने वाले लोग बुद्धिजीवी होते हैं, एक बुद्धिजीवी कैमरामैन अपवाद में ही होता है। यह गलती केपी मलिक से ज्यादा उन अखबारों का है जो अखबार ऐसे लोगों के नाम पर आर्टिकल छापते हैं। अखबारों को देखना चाहिए कि लेखक ऐसे विचार रखने में सक्षम है या नहीं।
मैं देखता हूं कि संपादकीय पेज पर ऐसे-ऐसे लोग थोक के भाव में छपते हैं जिन्हें आप आमने-सामने होकर कोई लेख लिखने के लिए कह देंगे तो फिर वे लेख तो क्या, दो-चार पैराग्राफ भी नहीं लिख पायेंगे।
के पी मलिक का तर्क भी झूठ है। किसी के लेख में अपना फोटो और नाम डालना अपराध है। प्रस्तुतिकर्ता का नाम नीचे होता है। लेख में फोटो और नाम तो वास्तविक लेखक का ही होता है। पत्रकारिता का यह सामान्य ज्ञान सभी को होना चाहिए।
देश में अब कोई न कोई कठोर कानून बनना ही चाहिए जो केपी मलिक जैसे फ्रोड लेखकों को जेल की हवा खिला सके। इसके साथ ही साथ फ्रोड के लेख छापने वाले अखबारों पर भी प्रतिबंध लगना चाहिए।
—– विष्णुगुप्त
मनन
November 5, 2021 at 2:41 pm
के पी मालिक का जवाब हास्यास्पद है। इनका कुकृत्य तो plagiarism से भी बड़ा है। फ्रॉड को फ्रॉड ही कहा जायेगा। यदि दैनिक भास्कर अपनी इज़्ज़त बचाना चाहता है तो इन पर फौरन कार्यवाही करे। ऐसा व्यक्ति किंचित भी पत्रकारिता करने योग्य नहीं है, राजनैतिक संपादक होना तो दूर की बात रही।