मीडिया संस्थान अमर उजाला में फुल टाइम कर्मचारियों को जबरन न्यूज़ एजेंसी का कर्मी बना कर उन्हें न्यूनतम वेतन लेने के दबाव बनाया जाता है. इसके लिए एक कॉन्ट्रैक्ट के तहत समय-सीमा निर्धारित करके दबावपूर्वक लिखवाया जाता है कि वे (कर्मचारी) संस्थान के स्थाई कर्मचारी न होकर एक न्यूज़ एजेंसी कर्मी के तौर पर कार्य करेंगे. लेकिन असलियत ये है कि न्यूज़ एजेंसी संचालक से एक स्थाई कर्मचारी वाला काम लिया जा रहा है. उसे न्यूनतम वेतन पर सुबह 10 बजे से लेकर रात के 10 बजे तक यानि 12 घंटे संस्थान के लिए कार्य करने को बाध्य किया जाता है.
अमर उजाला में जो फुल टाइम वर्कर हैं यानि पक्के कर्मचारी हैं, वे भी केवल 8 घंटे ही सेवाएं देते हैं. न्यूज़ एजेंसी संचालकों के लिए गाइडलाइन है कि वह किसी संस्थान के लिए बाध्य न होकर स्वतंत्र रूप से कार्य करेंगे. आज कई न्यूज एजेंसियों को अमर उजाला ब्यूरो ऑफिस में गुलामी की नौकरी करने को मजबूर किया जा रहा है. न तो उन्हें आईकार्ड दिया जाता है, न पूरी सैलरी दी जाती और न ही उनको समय पर अवकाश दिया जाता है. उन्हें एक बंधुआ मजदूर बना दिया गया है. यदि कोई कर्मचारी इसका विरोध करता है तो उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है. मीडिया संस्थान अमर उजाला के अधिकारियों और ब्यूरो प्रमुख द्वारा धमकी दी जाती है कि यदि किसी कर्मचारी ने इसके विरोध में आवाज़ उठाई तो उसे नौकरी से हटा दिया जाएगा. रोज़गार छिनने का भय दिखाकर अमर उजाला संस्थान लगातार कर्मचारियों का शोषण कर रहा है. इस कुव्यवस्था के खिलाफ आवाज़ उठाने पर मुझे (अमर उजाला के कुरुक्षेत्र कार्यालय में सेवारत दीपक शर्मा) तानाशाहीपूर्ण रवैया दिखाते हुए ज़बरदस्ती नौकरी से हटाया जा रहा है.
मेरा अपराध ये रहा कि कुरुक्षेत्र ब्यूरो प्रमुख मुकेश टंडन द्वारा कही गई मौखिक बात को लिखित में मांग लिया था. टंडन ने कहा था कि हेमंत राणा ज्योतिसर, विशेष नाथ गौड़, राकेश रोहिल्ला और दीपक शर्मा को न्यूज एजेंसी संचालक होने के बावजूद सुबह 10 बजे से लेकर रात के 10 बजे तक काम करना होगा. इसी बात को मैंने लिखित में हेड आफिस से मांग लिया. इसके बाद ब्यूरो प्रमुख ने हेड ऑफिस रोहतक में किसी संपादक से बात करके मुझे सर्विस से हटाने की रणनीति बना ली. न्यूज एजेंसी के कॉन्ट्रैक्ट में साफ़-साफ़ लिखा है कि अमर उजाला ने दीपक शर्मा न्यूज एजेंसी से तीन वर्षों के लिए अनुबंध किया है, जबकि अमर उजाला के जिला कुरुक्षेत्र ब्यूरो प्रमुख मुकेश टंडन और हेड ऑफिस रोहतक के अधिकारियों ने तानाशाही दिखाते हुए लगभग आठ माह के अंतराल में ही मेरी सेवाओं को समाप्त कर दिया.
ब्यूरो चीफ ने दूसरों की खबरें की अपने नाम से प्रकाशित
अमर उजाला के कुरुक्षेत्र ब्यूरो प्रमुख मुकेश टंडन ने ऐसा भी किया कि न्यूज के लिए भागदौड़ तो की मैंने या किसी अन्य ने और न्यूज प्रकाशित कराई मुकेश टंडन ने अपने नाम से। उदाहरण के तौर पर…. ‘कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में बिना चेकिंग के एंट्री कर रहे वाहन’ शीर्षक के तहत खबर छपी थी जो कि मैंने बायलाइन भेजी थी, लेकिन ब्यूरो प्रमुख ने डेस्क पर बात करके इस पर से मेरा नाम हटवा दिया. दो दिन बाद जब इस खबर का इम्पेक्ट आया तो कुरुक्षेत्र ब्यूरो चीफ मुकेश टंडन ने यह इम्पेक्ट अपने नाम से प्रकाशित करा दिया, जिसका शीर्षक कुछ ऐसा था कि… ‘अब स्टिकर लगे वाहनों की होगी यूनिवर्सिटी में एंट्री’. जब इस न्यूज को लेकर मैंने मुकेश टंडन से बात की तो वे ताव में आ गए और बोले कि टंडन ब्यूरो चीफ है कुरुक्षेत्र का, जो मर्जी आए करूंगा, जो मेरे अंडर काम करता है वो मुझसे कुछ पूछ नहीं सकता.
ब्यूरो चीफ ने कई बड़े मामले दबा दिए गए
मैंने कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में नियमों को ताक पर रख आनन-फानन में एक असिस्टेंट प्रोफेसर को प्रोफेसर के पद पर प्रमोट करने का मामला कवर किया था. इस खबर को खंगालते वक़्त सामने आया था कि ये प्रमोशन की फ़ाइल कई बार रिजेक्ट हो चुकी थी. लेकिन अमर उजाला संस्थान के कुरुक्षेत्र ब्यूरो चीफ मुकेश टंडन ने इस खबर को दबा दिया. इसके पीछे मुकेश टंडन की क्या मंशा थी या हेड ऑफिस रोहतक से किसी प्रकार के निर्देश आए थे, ये तो मुकेश टंडन और हेड ऑफिस रोहतक वाले ही बेहतर जानते होंगे. लेकिन, कुछ भी बात रही हो, मेहनत करने के बावजूद इतनी बड़ी खबर न छापना कुछ और ही इशारा कर रहा था.
मैंने जब खबर न छपने बारे कुरुक्षेत्र ब्यूरो चीफ मुकेश टंडन से बात की तो वे बोले कि हेड ऑफिस वाले नहीं छाप रहे, उनकी मर्जी. इसके दो दिन बाद जब दोबारा यह न्यूज भेजने की रिक्वेस्ट की तो मुकेश टंडन बोले कि ऑनलाइन सॉफ्टवेयर पर खबर नहीं है. फिर जब कंप्यूटर के फोल्डर में सेव की गई यही न्यूज भेजनी चाही तो वहां से भी गायब थी. ये क्या ड्रामा चल रहा है, कुछ समझ नहीं आ रहा. मीडिया संस्थान अमर उजाला के कुरुक्षेत्र ब्यूरो चीफ और हेड ऑफिस रोहतक के अधिकारी क्यों संस्थान को बट्टा लगवाने पर तुले हुए हैं? पर कभी तो आवाज उठेगी और मीडिया संस्थान अमर उजाला की असलियत सबके सामने आएगी.
सवाल उठने लगे हैं-
-क्या तानाशाही का विरोध करने की ये सजा हो सकती है कि एक कर्मचारी को नौकरी से हटा दिया जाए?
-क्या सुबह 10 से रात 10 बजे तक काम करवाकर बंधुआ मजदूर बनाना ही अमर उजाला संस्थान का उद्देश्य है?
-क्या एजेंसी संचालक द्वारा कुरुक्षेत्र ब्यूरो प्रमुख से 10 am to 10 pm कुरुक्षेत्र ब्यूरो में काम करने को लेकर हेड ऑफिस से लिखित में आदेश मंगवाने की गुज़ारिश करना भी किसी अपराध की श्रेणी में आता है?
-क्या मीडियापर्सन या एक कर्मचारी का शोषण करने के लिए ही अमर उजाला संस्थान ने न्यूज एजेंसी की पॉलिसी अपनाई हुई है?
-एक कर्मचारी को जबरन एजेंसी बनाकर उसे बेहद कम वेतन पर मजबूर करना, क्या यही नियम, कायदा और न्याय है अमर उजाला का?
कीजिए सच का सामना, दीजिए जवाब.
कहते हैं जब किसी जानवर को खून मुंह लग जाता है तो उसकी मजबूरी हो जाती है बार-बार खून पीना. ऐसी ही स्थिति यहां भी दिखाई दे रही है. न जाने कितने ही कर्मचारियों को इस कुव्यवस्था का शिकार बनाया होगा आपने अभी तक और न जाने कितनों को बनाओगे. कुछ भी हो, एक दिन पोल खुलती ज़रूर है. अब वक़्त आ गया है अमर उजाला संस्थान की पोल खोलने का. आखिर में दो लाइनें कहना चाहूंगा…
आपकी भी कुछ मजबूरी रही, अब मेरी भी कुछ मजबूरी है,
जल्दी अब तैयारी करो, कोर्ट की कितनी दूरी है।
अच्छा किया या बुरा किया, तुम खूब जानो अमर उजाला के नुमाइंदों,
न्याय नहीं है तुम्हारी शरण में, अब कोर्ट की शरण जरूरी है।।
जय हिन्द…. जय भारत….
एक पीड़ित प्रताड़ित कर्मचारी
दीपक शर्मा
रिपोर्टर
कुरुक्षेत्र, हरियाणा
संपर्क: फोन 098132 88085 मोबाइल [email protected]
पुरूषोत्त्म असनोडा
February 13, 2016 at 4:42 pm
3 जनवरी 15को दिवंगत आदरणीय अतुल माहेश्वरी की पुण्य तिथि पर हमने जो लिखा उसे अमर उजाला के संपादक और मालिकान पचा नहीं पाये भडासऔर दूसरे साथी पूरी स्थिति से अवगत हैंऔर हमने तत्काल उस अखबार को छोड दिया,सभीमित्रों और मां सरस्वतीी की क़पा से 40 साल की बधुवा पत्रकारिता से मुक्त उत्त्राखण्ड केइश्यूज को रीजनल रिपोर्टर के माध्यम से बखूबी उठा रहे हैं और लोकल समाचार विचार के लिए गैरसैंण समाचार सोशल मीडिया मेंअपडेट हो रहा हैा कहने का तात्पर्य है कि जिनसंस्थानों में पत्रकारों की गरिमााका ध्यान नही हैवहां बने रहना कोई बुद्धिमानी नहीं हैा