Jayant Jigyasu : ऐसा है अनुराग मुस्कान, होशोहवास में रहा करो। लालू प्रसाद को जो अपने चैनल एबीपी न्यूज़ पर “ललुआ” बुला रहे हो न, तो सारी होशियारी निकल जाएगी। आपने लालू यादव को अपनी गोद में खिलाया है? लालू जादव आपके भतीजे हैं? यही सिखाया है आपके मां-बाप ने? काहे को ‘ऊंच’ जात में पैदा होने का घमंड पाले हुए हो? कभी बोले हो, अटलबा, अडबनिया, मुरली मनोहरा, गोलवलकरवा, जगरनथवा, भगबतवा, कलरजबा, जेटलिया, नितिनमा, सुरेशबा? पत्रकारिता कर रहे हो कि गुंडागर्दी करते हो? सारी अक्ल ठिकाने आ जाएगी।
और सुनो अहमक! आप अटलबा-अडबनिया भी बोलोगे, तब भी हमें उतना ही बुरा लगेगा और उतने ही उज्जड नज़र आओगे। जब हमारी युनिवर्सिटी में लोग अपने नारे में “मोदिया” बोलते हैं, तो मेरे जैसे लोग प्रतिकार करते हैं। हम अहिंसक लोग हैं, मगर बिहार उड़ती चिड़िया को भी हल्दी लगाता है। आप उकसाएंगे, ज्यादा भचर-भचर करेंगे, तो लोग शारीरिक समीक्षा भी करते हैं। जो काम है, उतना ही किया कीजिए, और अपनी नफ़रत को अपने भेजा तक ही महदूद रखा करिए।
Anjule : ABP न्यूज के एंकर अनुराग मुस्कान जबतक लालू जी को #ललुआ नाम से पुकारने के लिए माफ़ी नहीं मांगते कम से कम #राजद के सभी प्रवक्ताओं को इसका बहिष्कार करने चाहिए और बिहार में इनकी तमाम कवरेज़ प्रभावित करना चाहिए.. इस जातिवादी सोच के एंकर को हर हाल में माफ़ी मांगने के लिए मजबूर कर दिया जाना चाहिए…
Samarendra Singh : हमारे देश के ये महान पत्रकार “प्यार” से “अटलवा”, “वाजपेइया”, “नरेनदरा”, “नेहरूआ”, “मालवइया” “भागवतवा” क्यों नहीं बोलते? ये प्यार से “ललुआ” या “मुलयमा” ही क्यों बोलते हैं? ये “प्यार” है या फिर इनके भीतर छिपी नफरत है? श्रेष्ठ होने का इनका अहंकार है?
Nirala Bidesia : टीवी का दर्शक नहीं होने की वजह से मालूम नहीं कि किस चैनल के एंकर या पत्रकार ने लालू प्रसाद को ललुआ कहकर सम्बोधित किया है। जिस पत्रकार ने भी ऐसा किया है, उसका विरोध सबसे पहले तो पत्रकारों को ही करना चाहिए। जब इतना भी बेसिक प्रशिक्षण नहीं,संस्कार नहीं, सउर नहीं तो इस पेशे को जिंदगी भर वह बदनाम ही करेगा। बदनामी पहले से भी कोई कम नहीं। विश्वसनीयता और साख की वजह से बदनामी दिन ब दिन बढ़ी ही है लेकिन ऐसी हरकत तो इस पेशे को रसातल के आखिरी तल में पहुंचाने वाली हरकत है।
Rashtriya Janta Dal : चैनल ABP के पत्रकार अनुराग मुस्कान ने अकारण अपनी जातिवादी सोच के कारण लालू जी को जातिसूचक, हेयसूचक “ललुआ” कहा! पत्रकारिता धर्म का निर्वाह हो! पत्रकारिता निम्नतम स्तर पर पहुँच चुकी है! जिस जातिवाद के विरुद्ध, दलित पिछड़ों के सम्मान की लालू जी ने जंग लड़ी वह जंग आज भी जारी है! यह सम्बोधन बिहार के अभिजात वर्ग के नेताओं या नीतीश जैसे सामंती मानसिकता के पोषक नेतागण के लिए नहीं होता है, दलित पिछड़ा उत्थान व आरक्षण की बात करने वाले लालू प्रसाद या कर्पूरी ठाकुर जैसे पिछड़े दलित नेताओं के लिए ही योग्य माना जाता है! -राष्ट्रीय जनता दल
ये रहा अनुराग का माफीनामा….
Anurag Muskan : कई दिनों से बिहार में हूँ और यहां लोगों के मुंह से लालू जी के लिए लाड़ और प्यार से अक्सर ये संबोधन सुना. मैंने लाइव डिबेट में इस संबोधन पर आपत्ति जताए जाने के बाद अपने स्पष्टीकरण में भी यही कहा लेकिन फिर भी अगर इस शब्द से किसी की भावनाओं को ठेस पंहुची हो तो मुझे बेहद खेद है.
अनुराग के माफीनामे पर राजद की प्रतिक्रिया….
Rashtriya Janta Dal : अनुराग मुस्कान जी, ये लाड़-प्यार उच्च वर्गों का कटाक्ष है। दलितों, पिछड़ों, अतिपिछड़ों, अल्पसंख्यकों और अगड़ों में जो ग़रीब है, उनके लिए लालू जी मसीहा की तरह हैं जो आप नहीं समझ सकते। लेकिन जब लोग चढ़े तो पहचाने। क्या आपने लालू जी को अपनी गोद में खिलाया है जो ऐसी बेशर्मी से उन्हें संबोधित कर रहे थे? -राष्ट्रीय जनता दल
सौजन्य : ट्विटर-फेसबुक