Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

पैराडाइज पेपर्स ने फोर्टिस-एस्कॉर्ट्स के चेयरमैन डॉ अशोक सेठ की अनैतिकता और लालच का किया खुलासा

सिंगापुर की स्टेंट बनाने वाली कंपनी ने डा. अशोक सेठ को अपने शेयर दिए और डॉ. सेठ ने अपने मरीजों को यही स्टेंट लगवाने की सिफारिश की.. इस तरह प्राप्त शेयरों से लाभ कमाया.. कंपनी का नाम बायोसेंसर्स इंटरनेशनल ग्रुप है… यह मामला चिकित्सा पेशे में शीर्ष स्तर की अनैतिकता और लालच को दर्शाता है जहां मरीज का हित प्रमुख नहीं बल्कि डाक्टर और अस्पताल का लाभ सर्वोच्च हो गया है…

-संजय कुमार सिंह-

Advertisement. Scroll to continue reading.

इंडियन एक्सप्रेस ने विदेशी कंपनियों में धन जमा करने के मामलों का अब तक का सबसे बड़ा खुलासा किया है। खोजी पत्रकारों के अंतरराष्ट्रीय संघटन की इस खोज में 714 भारतीय लिंक मिले हैं और ऐसी फर्में भी हैं जिनकी जांच सीबीआई कर रही है। अखबार इससे पहले पनामा पेपर छाप चुका है। इसे पैराडाइज पेपर नाम दिया गया है। अखबार का दावा है कि इस जांच में उसने 10 महीने लगाए हैं और 13.4 मिलियन (एक करोड़ 34 लाख) दस्तावेजों की जांच की है। इसके लिए 195 समाचार संगठनों के साथ मिलकर काम किया है। इनमें दि गार्जियन, बीबीसी (यूके), दि न्यूयॉर्क टाइम्स (अमेरिका), ओसीसीआरपी (रूस), ली मोन्डे (फ्रांस) , ईआई कांफिडेंशियल (स्पेन), एबीसी फोर कॉर्नर्स (ऑस्ट्रेलिया), सीबीसी/रेडियो (कनाडा), ला नैसियॉन (अर्जेन्टीना) शामिल हैं।

अखबार ने पहले पन्ने पर अपनी इस खबर को पूरे आठ कॉलम में बैनर बनाया है और उन्नी का कार्टून, “बिजनेस ऐड यूजुअल” भी लीड के साथ आ गया है. सिंगल कालम का यह छोटा सा कार्टून आज मारक है। इसमें 8 नवंबर को नोटबंदी दिवस के रूप में याद किया गया है और कहा गया है, “गुड मॉर्निंग! प्रकाश ध्वनि से थोड़ा पहले पहुंच गया है”। इसका मतलब बहुत गहरा है और समझने की जरूरत है, इसे समझाया नहीं जा सकता है। खासकर तब जब नोटबंदी का कोई फायदा दिखा नहीं सिर्फ बताया जाता रहा है और उसमें यह भी कि करोड़ों लोगों की जांच चल रही है। दो सौ लोगों को मारकर साल भर से जांच चल रही है और जैसा कि एक्सप्रेस के कार्टून में कहा गया है प्रकाश की किरण वहां से आ रही है, आवाज कहीं और से बाद में आएगी – यह विज्ञान है। लेकिन इसी को काबिलयत बना कर पेश करने का भी एक अंदाज है। संयोग से, आज इंडियन एक्सप्रेस के शुरू के पन्नों में विज्ञापनों का जैकेट नहीं है। इसलिए पढ़ना भी सुविधाजनक है और देखने में भी आज इंडियन एक्सप्रेस अपने पुराने तेवर में लग रहा है। एक्सप्रेस का यह खुलासा अभी जारी है। अखबार के कई पन्ने रंगने के बाद अभी आगे भी मसाला आएगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इंडियन एक्सप्रेस ने अपने खुलासे में पहले पेज पर फोर्टिस के डॉक्टर अशोक सेठ का मामला भी छापा है। शीर्षक में ही कहा गया है कि डॉ. सेठ अपने मरीजों के लिए जिस कंपनी के स्टेंट का उपयोग करते थे उन्हें उसके शेयर मिले थे। इस खबर के साथ डॉ अशोक सेठ की फोटो है और कैप्शन लगा है नो रांग डुइंग, क्लेम्स कार्डियोलॉजिस्ट अशोक सेठ। यानी कोई गलत काम नहीं, हृदय रोग विशेषज्ञ अशोक सेठ ने दावा किया। ऋतु सरीन की इस खबर के मुताबिक जांचे गए दस्तावेजों के एक सेट में यह हितों के संभावित टकराव के रूप में सामने आता है। इंडियन एक्सप्रेस ने रिकार्ड की जांच के बाद लिखा है कि पद्मभूषण और पद्मश्री से सम्मानित, फोर्टिस-एस्कॉर्ट्स के चेयरमैन डॉ अशोक सेठ को 2004 में सिंगापुर आधार वाली एक कंपनी जो स्टेंट बनाती है, ने पूंजी बाजार में जाने से पहले अपने शेयर दिए थे। बाद में डॉ. सेठ ने अपने मरीजों को यही स्टेंट लगवाने की सिफारिश की और प्राप्त शेयरों से लाभ कमाया। कंपनी का नाम बायोसेंसर्स इंटरनेशनल ग्रुप है। यह इंटरवेंशन कार्डियोलॉजी और क्रिटिकल केयर प्रक्रियाओं के लिए चिकित्सा उपकरणों का निर्माण और उनका विपणन करती है। कंपनी की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक,  बायोसेंसर्स इंटरनेशनल ग्रुप लिमिटेड का निगमन बरमुडा में 28 मई 1998 को हुआ था और यह सिंगापुर में पंजीकृत है।

इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि संपर्क करने पर डॉ.सेठ ने बताया कि उन्होंने तीन साल तक बायोसेंसर्स के शेयर अपने पास रखे और 54 लाख रुपए का मुनाफा कमाकर बेच दिया। डॉ. सेठ का दावा है कि जब तक कंपनी के शेयर उनके पास रहे उन्होंने इसका उपयोग उनका दावा है कि अपने टैक्स रिटर्न में उन्होंने इसकी घोषणा की है। अखबार की खबर में हितों के टकराव आदि का विस्तार से विवरण है। जब मेरे पास कंपनी के शेयर थे (कंपनी ने आवंटित 2004 में किए थे पर इन्होंने लिया अप्रैल 2013 में पर उसी कीमत में, ठीक से समझने के लिए एक्सप्रेस की पूरी खबर देखें) तब मैंने सिर्फ सिर्फ सात बायोमेट्रिक्स स्टेंट लगाए। डॉ. सेठ का कहना है कि उनके पास कंपनी के शेयरों की संख्या बहुत मामूली थी पर इसे हितों का टकराव माना जा सकता है इसलिए जब मेरे पास शेयर थे तब मैंने बायोसेंसर्स के उत्पादों का उपयोग नहीं किया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी मूल खबर में लिखा है, तेजी से अंतरराष्ट्रीय हो रही दुनिया में कॉरपोरेट पुनर्गठन या विस्तार के लिए विदेशी इकाई की स्थापना भले ही अवैध न हो पर एक अहम मुद्दा तो है ही कि कैसे कुछ विदेशी फर्में (यहां ऐप्पलबाई का जिक्र है) बहुराष्ट्रीय निगमों को कानून में गड़बड़ियों या चूक का लाभ उठाने का मौका देती हैं जिससे वे अपने देश में जायज टैक्स देने से बच जाती हैं। इसलिए पैराडाइज पेपर्स नियामक एजेंसियों के लिए जांच के दरवाजे खोलती हैं ताकि वे तय करें कि ये सौदे अथवा लेन-देन संबंधित देश के कायदे कानूनों के मुताबिक वैधानिक और विधिवत हैं कि नहीं। यहां सवाल उठता है कि एक्सप्रेस ने जब पनामा पेपर्स की रिपोर्ट छापी थी उसकी ही कौन सी जांच हुई और क्या फर्क पड़ा।

उल्टे, नोटबंदी की बरसी पर सरकार बता रही है कि एक साल से (नोटबंदी से मिले) कितने लोगों की जांच चल रही है और नोटो की गिनती की तरह जारी है। कार्रवाई करने में कितना समय लगेगा या कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है समझा जा सकता है। अखबार की खबर के मुताबक, लीक हुए डाटा में 180 देशों का प्रतिनिधित्व है उसमें भारत का स्थान, नामों की संख्या के लिहाज से 19वां हैं (इसका ईज ऑफ बिजनेस से संबंध है कि नहीं, राम जाने)। कुल मिलाकर 714 भारतीयों के नाम हैं। यह दिलचस्प है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐप्पलबाई के दूसरे सबसे बड़े क्लाइंट होने का श्रेय एक भारतीय कंपनी सन ग्रुप को है जिसकी स्थापना नंद लाल खेमका ने की है। इस कंपनी की 118 इकाइयां अलग-अलग देशों में हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

ऐप्पलबाई के भारतीय ग्राहकों में कई प्रमुख कॉरपोरेट और कंपनियां हैं जिनकी बाद में सीबीआई और ईडी जैसी एजेंसी जांच भी कर रही है। और इस जांच का आलम यह है कि सीबीआई का भेजा एक लेटर रोगेटरी ऐप्पलबाई के पास पहुंच चुका है। कॉरपोरेट के अलावा जो नाम हैं उनमें अमिताभ बच्चन, नीरा राडिया और फिल्म स्टार संजय दत्त की पत्नी शामिल हैं। एक नया नाम जो मुझे चौंकाने वाला लगा वह सिक्यूरिटी एंड इंटेलीजेंस सर्विसेज (एसआईएस) के संस्थापक और भाजपा के राज्य सभा सदस्य आरके सिन्हा से जुड़ी है। नाम तो जयंत सिन्हा, सचिन पायलट और कार्ति चिदंबरम के भी हैं पर मेरे लिए ताज्जुब वाला नाम आरके सिन्हा का ही है।

लेखक संजय कुमार सिंह ने जनसत्ता अखबार की नौकरी के बाद 1995 में अनुवाद कम्युनिकेशन AnuvaadCommunication.com की स्थापना की. बहुराष्ट्रीय निगमों और देसी कॉरपोरेट्स के साथ देश भर की तमाम जनसंपर्क व विज्ञापन एजेंसियों के लिए काम करते हुए संजय काफी समय से सोशल मीडिया पर ज्वलंत मुद्दों को लेकर बेबाक लेखन भी करते हैं. संजय से संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

ओमिडयार नेटवर्क को लेकर पांडो डॉट कॉम पर प्रकाशित खबर के जयंत सिन्हा वाले हिस्से का पूरा हिंदी अनुवाद, संजय कुमार सिंह के सौजन्य से, पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें : 

जयंत सिन्हा, ईबे, पियरे ओमिडयार, नरेंद्र मोदी और बाहरी पूंजी का भारतीय चुनाव में खुला खेल!

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement