Dilip Khan : पैराडाइज़ पेपर्स में कई मीडिया मालिकों के नाम हैं। शोभना भरतिया, सुभाष चंद्रा, राघव बहल, कलानिधि मारन, नवीन जिंदल। मीडिया में ये ख़बर क्यों चलेगी फिर? गड़ा हुआ कालाधन उखाड़कर दिखाने वाले ज़ी न्यूज़ के मालिक सुभाष चंद्रा का भी नाम पैराडाइज़ पेपर्स में है। महान देशभक्त सुधीर चौधरी ने इस पर …
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पैराडाइज पैपर्स : साक्ष्यों का अपमान करती पत्रकारिता
विवेक शुक्ला
लोकतंत्र में मीडिया को अपने कामकाज को निर्भीकता से करने की पूर्ण स्वतंत्रता मिलना स्वाभाविक है। सच्चा लोकतंत्र तब ही फल-फूल सकता है जब प्रेस की आजादी संदेह से परे हो। पर इमरजेंसी के काले दौर को छोड़कर हमारे यहां कमोबेश सभी केन्द्र और राज्य सरकारें सुनिशिचित करती रही हैं कि किसी भी परिस्थिति में प्रेस की आजादी पर हमला ना हो। ये तो सिक्के का एक पहलू है। हाल के दौर में बार-बार देखने में आ रहा है कि कुछ अखबार, खबरिया टीवी चैनल और न्यूज वेबसाइट किसी व्यक्ति या संस्था के ऊपर ठोस और पुख्ता साक्ष्यों के बिना भी आरोप लगाने से नहीं चूकते। इन्हें भारतीय सेना के पाकिस्तान में किए गए सर्जिल स्ट्राइक पर भी संदेश था। कुछेक मीडिया घराने रंगदारी में भी लिप्त रहते हैं विज्ञापन पाने के लिए। ये स्टिंग आपरेशन करके किसी अफसर, किसी निर्वाचित जनप्रतिनिधि या खास शख्स को बदनाम करने के बदले में पैसे की मांग करने से भी पीछे नहीं हटते। ये भारत की पत्रकारिता का नया मिजाज है। आप कह सकते हैं कि बीसेक साल पहले तक हमारे देश के मीडिया में नहीं होता था।
मौन व्रत वाले सांसद ने अपना पत्र विज्ञापन के रूप में छपवाया है
Sanjaya Kumar Singh : प्रेस की स्वतंत्रता का भाजपाई अर्थ… अमित शाह के बेटे के खिलाफ खबर छपने पर 100 करोड़ का दावा और स्टे। हालांकि बहाल नहीं रह पाया। भाजपा के सबसे पैसे वाले सदस्यों में एक माने जाने वाले राजस्यसभा सदस्य का नाम पैराडाइज पेपर में आने पर एक सप्ताह का मौनव्रत और अगले ही दिन अखबारों के लिए विज्ञापन तैयार हो जाना – बताता है कि भाजपा के नेताओं के लिए प्रेस की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी का अलग मतलब है। और इसे रोकने के लिए 40 साल पुराना मामला भी अचानक निकल सकता है। आइए, फिलहाल आरके सिन्हा का मामला देखें।
आरके सिन्हा का अख़बारों ने भावनात्मक दोहन किया है : रवीश कुमार
Ravish Kumar : क्यों छपी बीजेपी सांसद सिन्हा की सफाई विज्ञापन की शक्ल में… पैराडाइस पेपर्स में भाजपा के राज्य सभा सांसद आर के सिन्हा का भी नाम आया था। इंडियन एक्सप्रेस अख़बार ने उनकी सफाई के साथ ख़बर छापी थी। पैराडाइस पैराडाइस पेपर्स की रिपोर्ट के साथ यह भी सब जगह छपा है कि इसे कैसे पढ़ें और समझें। साफ साफ लिखा है कि ऑफशोर कंपनी कानून के तहत ही बनाए जाते हैं और ज़रूरी नहीं कि सभी लेन-देन संदिग्ध ही हो मगर इसकी आड़ में जो खेल खेला जाता है उसे भी समझने की ज़रूरत है। सरकार को भी भारी भरकम जांच टीम बनानी पड़ी है। ख़ैर इस पर लिखना मेरा मकसद नहीं है।
पैराडाइज पेपर्स ने फोर्टिस-एस्कॉर्ट्स के चेयरमैन डॉ अशोक सेठ की अनैतिकता और लालच का किया खुलासा
सिंगापुर की स्टेंट बनाने वाली कंपनी ने डा. अशोक सेठ को अपने शेयर दिए और डॉ. सेठ ने अपने मरीजों को यही स्टेंट लगवाने की सिफारिश की.. इस तरह प्राप्त शेयरों से लाभ कमाया.. कंपनी का नाम बायोसेंसर्स इंटरनेशनल ग्रुप है… यह मामला चिकित्सा पेशे में शीर्ष स्तर की अनैतिकता और लालच को दर्शाता है …
जयंत सिन्हा, ईबे, पियरे ओमिडयार, नरेंद्र मोदी और बाहरी पूंजी का भारतीय चुनाव में खुला खेल!
ओमिडयार नेटवर्क को लेकर पांडो डॉट कॉम पर प्रकाशित खबर के जयंत सिन्हा वाले हिस्से का पूरा हिंदी अनुवाद वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह के सौजन्य से पढ़ें…
केंद्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद pando.com पर Mark Ames ने 26 मई 2014 को लिखा था- “भारत में चुनाव के बाद एक कट्टरपंथी हिन्दू सुपरमैसिस्ट (हिन्दुत्व की सर्वोच्चता चाहने वाले) जिसका नाम नरेन्द्र मोदी है, को सत्ता मिल गई है। इसके साथ ही व्हाइट हाउस के प्रवक्ता जय कारने (यहां भी जय) ने कहा है कि ओबामा प्रशासन एक ऐसे व्यक्ति के साथ “मिलकर काम करने का इंतजार कर रहा है” जो अल्पसंख्यक मुसलमानों (और अल्पसंख्यक ईसाइयों) के घिनौने जनसंहार में भूमिका के लिए 2005 से अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट (विदेश विभाग) के वीजा ब्लैकलिस्ट में है।
काला धन और टैक्स चोरी का प्रकरण जब-जब उठेगा, अमिताभ बच्चन का नाम जरूर आएगा!
पनामा पेपर्स के बाद अब पैराडाइज़ पेपर्स में भी अमिताभ बच्चन का नाम! जहां कहीं टैक्स चोरी और काला धन का नाम आता है तो उसमें अमिताभ बच्चन जरूर होता है. कौन बनेगा करोड़पति के पहले सीजन के बाद अमिताभ ने एक विदेशी कंपनी में पैसा लगाया था. इंडियन एक्सप्रेस में Paradise Papers Leak के भारत के मामले की खबर आज छपी है. इंडियन एक्सप्रेस इंटरनेशनल कॉन्सार्शियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट यानि आईसीआईजे का सदस्य है.
पैराडाइज पेपर्स में फंसा भाजपा सांसद आरके सिन्हा ने लिख कर कहा- ‘सात दिन के भागवत यज्ञ में मौन व्रत हूं’
Shahnawaz Malik : साल 2017 की सबसे बड़ी ख़बर पैराडाइज़ पेपर्स के मार्फ़त कर चोरी और काले धन पर हुआ ख़ुलासा है। और, किसी रिपोर्टर को साल 2017 में दिया गया सबसे शानदार जवाब आरके सिन्हा का है। सवाल पूछने पर रिपोर्टर से कलम मांग कर सिन्हा ने काग़ज़ पर लिख दिया, ‘सात दिन के भागवत यज्ञ में मौन व्रत हूं’…
पैराडाइज पेपर्स में अमिताभ बच्चन, आरके सिन्हा, जयंत सिन्हा समेत 714 भारतीयों के नाम
Priyabhanshu Ranjan : दि इंडियन एक्सप्रेस ने रविवार रात 12.30 बजे से पैराडाइज़ पेपर्स पर 40 किस्तों पर अपनी स्टोरी की श्रृंखला शुरू की है लेकिन इंटरनेशनल कंसोर्शियम ऑफ इनवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स की वेबसाइट से पता चलता है कि ऑफशोर कंपनियों में पैसा लगाने वाले दो बड़े नेताओं का नाम कुल 714 लोगों की सूची में शामिल है। ये दोनों नेता सत्ताधारी पार्टी बीजेपी से हैं- सांसद आरके सिन्हा और नागरिक उड्डयन मंत्री जयन्त सिन्हा।
साल 2017 की सबसे बड़ी ख़बर… पैराडाइज़ पेपर्स के मार्फ़त कर चोरी और काले धन पर ख़ुलासा…
Dilip Khan : पनामा पेपर्स में जिनके नाम थे उनमें से कुछ को मोदी जी ने ब्रैंड एंबैसेडर बना लिया, कुछ ज़ुबां केसरी बोलने लगे, कुछ समय-समय पर सरकार को “नीतिगत” समर्थन जताने लगे। एक को ये सब करने की ज़रूरत नहीं पड़ी क्योंकि वो ख़ुद बीजेपी में थे और एक के छोटे भाई का नाम गौतम अडानी है, तो उन्हें किसी चीज़ का डर क्यों हो! अब पैराडाइज़ पेपर्स वालों के लिए पहले से एक मॉडल तैयार है। वो चाहे तो पनामा वालों की कॉपी कर सकते हैं। इनमें तो केंद्रीय मंत्री तक के नाम शामिल है। वे कोई न कोई व्यवस्था कर ही देंगे। दो दिन बाद सरकार काला धन विरोधी दिवस मना कर इन्हें भी ब्रैंड एंबैसेडर बना सकती है।
हिन्दी के पाठकों को आज का अंग्रेज़ी वाला इंडियन एक्सप्रेस ख़रीद कर रख लेना चाहिए
Ravish Kumar : इंडियन एक्सप्रेस में छपे पैराडाइस पेपर्स और द वायर की रिपोर्ट pando.com के बिना अधूरा है… हिन्दी के पाठकों को आज का अंग्रेज़ी वाला इंडियन एक्सप्रेस ख़रीद कर रख लेना चाहिए। एक पाठक के रूप में आप बेहतर होंगे। हिन्दी में तो यह सब मिलेगा नहीं क्योंकि ज्यादातर हिन्दी अख़बार के संपादक अपने दौर की सरकार के किरानी होते हैं। कारपोरेट के दस्तावेज़ों को समझना और उसमें कमियां पकड़ना ये बहुत ही कौशल का काम है। इसके भीतर के राज़ को समझने की योग्यता हर किसी में नहीं होती है। मैं तो कई बार इस कारण से भी हाथ खड़े कर देता हूं। न्यूज़ रूम में ऐसी दक्षता के लोग भी नहीं होते हैं जिनसे आप पूछकर आगे बढ़ सकें वर्ना कोई आसानी से आपको मैनुपुलेट कर सकता है।