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अमर उजाला, अतुल माहेश्वरी और HT स्पोर्ट्स रूम

विवेक शुक्ला-

यह बात 1988 की है। मैं एक दिन हिन्दुस्तान टाइम्स लाइब्रेयरी में अखबारों के पन्नें पलट रहा था। तब मेरे कानों आवाज सुनाई दी, क्या विवेक शुक्ला हैं… मैंने पीछे देखा तो एक नौजवान खड़ा था। उसने अपना परिचय दिया। बताया, मैं हरि जोशी Hari Joshi …। मैं अमर उजाला में संडे मैगजीन का एडिटर हूं। मैंने गर्मजोशी से हरि का स्वागत किया। हरि कहने लगे कि आप हमारे लिए लिखिए। उन्हें मेरा नाम साप्ताहिक हिन्दुस्तान के किसी दोस्त ने सुझाया था और कहा था कि वे HT लाइब्रेरी में होते हैं।
खैर, हमने अमर उजाला में तुरंत लिखना चालू कर दिया। एक के बाद एक कवर स्टोरी छपनी चालू हो गई। हमारे वेस्टर्न यूपी के जानने वाले कहने लगे कि आप तो छा गए। हमारे जैसे अनाम इंसान के लिए य़ह उपलब्धि थी.

अमर उजाला की प्रसार संख्या तब भी कमाल की थी। फिर एक दिन हरि जोशी कहने लगे कि आपसे अतुल जी मिलना चाहते हैं। अतुल माहेश्वरी जी यानी अमर उजाला के सब कुछ। मैं तुरंत उनसे मिलने मेरठ चला गया। अतुल जी ने मिलते ही कहा कि हम चाहते हैं कि आप दिल्ली से खेलों की एक्सक्लूसिव खबरें हमारे लिए लिखे। हम आपको एक सम्मानजनक मानदेय देंगे। मैं तैयार हो गया। उन्होंने बातचीत भी की और डोसा भी खिलाया!

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चूंकि मैं हिन्दुस्तान टाइम्स के खेल डेस्क पर रोज काफी समय बिताता था, इसलिए मुझे लगा कि मेरे लिए खेलों की खास खबरेंलिखना मुश्किल नहीं होगा। एचटी स्पोर्ट्स रूम का माहौल बेहद शानदार रहता था। वहां पर ही वेस्ट इंडीज के कप्तान रहे एल्विन कालीचरण से लंबी भेंट हुई थी।

वह 90 के दशक के शुरू का दौर था और तब एचटी खेल डेस्क पर केएनके मेनन, संदीप नकई, जयदीप बसु, एम. माधवन जैसे आईकन काम कर रहे थे। इन सबने कई-कई ओलंपिक खेल कवर किए थे। इन सबसे ही घनिषठता थी। इनसे रोज बातचीत में खेल संघों की राजनीति से जुड़ी खबरें मिलती थी।

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तो साहब मैंने अमर उजाला के लिए खेलों पर लिखना चालू कर दिया। कुछ दिनों के बाद मुझे लगा कि इन खबरों को मुझे देश भऱ के अखबारों को देना चाहिए। तब मैं जो खबर अमर उजाला के लिए लिखता उसे अंग्रेजी में भी लिख लेता। फिर आईएनएस बिल्डिंग में जाकर 40-50 अखबारों को लिफाफे में दे देता। आप यकीन मानिए कि मेरी खबरें असम के सेंटिनल से लेकर कश्मीर टाइम्स तक में छपनी लगीं।

हर महीने मेरे पास देश भर के हिन्दी, उर्दू, तमिल, असमिया वगैरह अखबारों की दर्जनों क्लिपिंग आने लगीं। इस काम से पैसा और आनंद दोनों आने लगा। आज अतुल जी की पुण्य तिथि पर याद आ रही है उनके साथ हुई वह पहली मुलाकात और बाकी मुलाकातें.

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