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ये कैसा मोदी राज : बजट और कैग के आंकड़ों में भारी अंतर!

JP SINGH

देश की आर्थिक स्थिति को लेकर लगातार परस्पर विरोधी बातें सामने आ रही हैं। अब सवाल यह है कि कौन सच बोल रहा है कौन झूठ? नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सीएजी) यानि कैग की एक रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार के घाटे के आंकड़े, केंद्रीय बजट में बताए गए आंकड़ों से काफी अधिक हो सकते हैं।कैग ने वित्त वर्ष 2018 के लिए वित्तीय घाटे (फिस्कल डेफिसिट) का आगणन 5.85% किया है.। जबकि, सरकार ने फिस्कल डेफिसिट 3.46% बताया था।कैग ने कहा है कि सरकार का राजकोषीय घाटा केंद्रीय बजट में बताए गए आंकड़ों से ज्यादा हो सकता है।पांच जुलाई को पेश बजट के बाद आठ जुलाई को 15वें वित्त आयोग के साथ हुई बैठक में कैग से पूछा गया कि क्या बजट के इतर किए गए प्रावधान सही तस्वीर दिखा रहे हैं।इस पर सीएजी ने 2017-18 के लिए राजकोषीय घाटे को लेकर दोबारा की गई अपनी गणना को दिखाया। इन आंकड़ों से पता चला कि असल में ये घाटा 5.85 फीसदी है, जबकि सरकार ने इसे 3.46 फीसदी ही दिखाया है।

गौरतलब है कि बीती चार जुलाई को आर्थिक सर्वे के बाद सरकार ने एक प्रेस रिलीज जारी की थी।इसमें कहा गया था कि सरकार राजस्व समेकन और राजकोषीय अनुशासन के रास्ते पर है। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि वित्त वर्ष 2018-19 के लिए केंद्र और राज्यों का एकमुश्त राजकोषीय घाटा 6.4 फीसदी से गिरकर 5.8 फीसदी पर पहुंच गया है।इसके अलावा सरकार ने कहा था कि 2020-21 के लिए राजकोषीय घाटे को जीडीपी के तीन फीसदी पर लाने का लक्ष्य रखा गया है और सरकार इसे पाने के लिए सही रास्ते पर है।

सिर्फ राजकोषीय घाटे की गणना में अंतर नहीं आया है बल्कि कैग ने अपनी गणना में राजस्व घाटे में भी अंतर पाया है।बजट आंकड़ों में इसे जीडीपी का 2.59 फीसदी दिखाया गया है, जबकि कैग की गणना में ये 3.48 फीसदी बताया गया है।कैग ने पाया है कि राजस्व खर्चों के लिए बजट से इतर उधारी जीडीपी की 0.96 फीसदी रही। इसी तरह पूंजीगत खर्चों के लिए ये जीडीपी की 1.43 फीसदी रही। कैग ने जब इन आंकड़ों को राजकोषीय घाटे के साथ जोड़ा तब ये घाटा तेजी से ऊपर गया।सीएजी की गणना में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों पर पहले से बाकी देयताओं को भी जोड़ा गया है। इनमें खाद्य और उर्वरक सब्सिडी के लिए सार्वजनिक कंपनियों पर उधारी शामिल हैं।

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दरअसल वित्तीय घाटा सरकार के कुल राजस्व और कुल खर्च का अतंर होता है, वित्तीय और राजस्व घाटे के आंकड़े अर्थव्यवस्था की सेहत के बारे में इशारा करते हैं. ऐसे में अगर आंकड़ों में हेराफेरी सामने आती है तो ये लगता है की देश के सामने गलतबयानी इतने उच्चस्तर पर की जा रही है।आखिर क्यों ?

इससे पहले प्रधानमंत्री को आर्थिक सलाह परिषद के सदस्य रतिन रॉय ने कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था उस तरह के राजकोषीय घाटे से जूझ रही है, जो दिखाई नहीं दे रहा है।उन्होंने कहा था कि कर संग्रह में कमी को केंद्र में रखकर सरकार को अपनी योजनाओं पर एक श्वेत पत्र जारी करना चाहिए.।इस दौरान रतिन रॉय ने सवाल खड़ा किया था कि जब टैक्स-जीडीपी अनुपात इतना गिर रहा है तो ऐसी स्थिति में सरकार ने 3.4 फीसदी का राजकोषीय घाटा कैसे हासिल कर लिया।जून के पहले हफ्ते में हुई आरबीआई की मौद्रिक समीक्षा कमिटी की बैठक में भी इस मुद्दे पर बातचीत हुई थी।आरबीआई की वेबसाइट पर मौजूद बैठक की बातचीत के मुताबिक इसके सदस्य चेतन घाटे ने कहा था, राजकोषीय बाजीगिरी या हाथ की सफाई ‘डूम-लूप’ के हमारे अपने वर्जन में योगदान कर सकते हैं।उन्होंने राजघोषीय घाटा कम दिखाने के लिए बजट के बाहर के खर्चों को गणना से बाहर करने के तरीकों को हाथ की सफाई या बाजीगरी कहा था।उस समय आरबीआई के डिप्युटी गवर्नर रहे विरल आचार्य ने भी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों से ली गई उधारी और अन्य बैलेंस शीट से बाहर की उधारियों को जीडीपी का आठ से नौ फीसदी बताया था.।उस बैठक में आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास का विचार इससे अलग था।उनका मानना था कि सार्वजनिक क्षेत्रों से ली गई उधारी को घाटे से अलग दूसरी तरह से देखना चाहिए,क्योंकि इनमें से अधिकतर पूंजीगत खर्च के लिए ली जाती हैं।

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