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सियासत

चीफ जस्टिस की दो टूक- कौन सही और कौन गलत की सुनवाई तभी जब हिंसा-तोड़फोड़ रुके

JP Singh

चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा है कि हम यह नहीं कह रहे कि कौन सही और कौन गलत है, लेकिन हर तरफ सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। शांतिपूर्ण प्रदर्शनों तक बात ठीक थी। लेकिन इस तरह से नहीं चलेगा। आप प्रदर्शनों को सिर्फ इस आधार पर सही नहीं ठहरा सकते कि इसे करने वाले छात्र थे। दोनों तरफ, पुलिस और छात्र, से कुछ न तो कुछ हुआ है। यह टिप्पणी चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने उस समय की जब नागरिकता संशोधन बिल के विरोध में जामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में उग्र प्रदर्शन और पुलिस कार्रवाई का मुद्दा सोमवार को उनके सामने उठाया गया ।

वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह और कॉलिन गोंजालवेज ने चीफ जस्टिस एसए बोबडे की पीठ से इस मामले में संज्ञान लेने की मांग की। इंदिरा जयसिंह ने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय सहित सारे देश में प्रदर्शन कर रहे छात्रों के साथ हिंसा की जा रही है। कई लोग अस्पताल में पडे हैं और उनके खिलाफ ही एफआईआर दर्ज की गई है, गिरफ्तार हुए हैं। यह मानवाधिकार का गंभीर उल्लंघन है।

जामिया में पुलिस ने ही बसें जलाईं हैं। इसके साथ ही कई वकीलों ने कहा कि कई छात्र गायब हैं. इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि हिंसा रुकनी चाहिए, हम यह चाहते हैं. बोबडे ने कहा कि हमारे पास अनुभव है कि दंगा कैसे होता है। हम ऐसे माहौल में कोई फैसला नहीं दे सकते हैं। हम पहले सुनवाई करेंगे फिर देखेंगे कि किसने दंगा किया। उधर, दिल्ली पुलिस ने जामिया हिंसा को लेकर दो एफआईआर दर्ज की हैं।

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वकीलों ने कहा कि रिटायर्ड जजों की एक टीम को यूनिवर्सिटी कैंपस भेजना चाहिए, तभी स्थिति नियंत्रण में होगी। जयसिंह ने कहा कि देशभर में मानवाधिकार की स्थिति गंभीर है। पहले उपद्रव को रोकिए। हम यह नहीं कह रहे कि कौन सही और कौन गलत है। लेकिन हर तरफ सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। शांतिपूर्ण प्रदर्शनों तक बात ठीक थी। लेकिन इस तरह से नहीं चलेगा। आप प्रदर्शनों को सिर्फ इस आधार पर सही नहीं ठहरा सकते कि इसे करने वाले छात्र थे। दोनों तरफ (पुलिस और छात्र) से कुछ न तो कुछ हुआ है।

वहीं, दिल्ली हाईकोर्ट ने जामिया में पुलिस की कार्रवाई के खिलाफ दायर याचिका पर तुरंत सुनवाई से इनकार कर दिया। याचिकाकर्ता ने जामिया में हुई हिंसा की न्यायिक जांच करने की मांग की। साथ ही कहा कि हिरासत में लिए गए 52 घायल छात्रों को मेडिकल सुविधा और मुआवजा दिया जाए। हालांकि, दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि वे कोर्ट तक रजिस्ट्री के माध्यम से ही पहुंचें।

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नागरिकता कानून के विरोध में रविवार रात जामिया यूनिवर्सिटी में रविवार को उग्र प्रदर्शन हुआ था। इस कांड में 4 बसों समेत 8 वाहन फूंक दिए। पुलिस छात्रों पर तो छात्र पुलिस पर इसके आरोप लगा रहे हैं। इसके अलावा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के छात्रों की पत्थरबाजी के बाद पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा। इसमें 60 से ज्यादा छात्र जख्मी हुए। एएमयू और जामिया प्रशासन ने 5 जनवरी तक छुट्‌टी घोषित कर दी है।

वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय से विवादित नागरिक संशोधन अधिनियम के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शनों के मद्देनजर जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रों के खिलाफ पुलिस हिंसा की खबरों पर स्वत: संज्ञान लेने का आग्रह किया। चीफ जस्टिस एसए बोबडे के समक्ष मामले का उल्लेख करते हुए वरिष्ठ वकील ने प्रस्तुत किया कि वर्दीधारी पुलिस द्वारा छात्रों के मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन किया गया है।

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जब चीफ जस्टिस ने कहा कि सभी दंगों को रोका जाना चाहिए तो जयसिंह ने जवाब दिया “दंगा कराया गया।” वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने भी हस्तक्षेप के लिए दबाव डालते हुए परिसर में स्थिति की समीक्षा करने के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को भेजने के लिए कहा।

गोंजाल्विस ने कहा कि पुलिस ने छात्रावास के कमरों और विश्वविद्यालय के पुस्तकालय पर हमला किया था। चीफ जस्टिस ने अदालत के हस्तक्षेप के प्रति अविश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि यह एक कानून और व्यवस्था की समस्या है, जिसका पुलिस को ध्यान रखना चाहिए।

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चीफ जस्टिस ने कहा कि हम जानते हैं कि दंगे कैसे होते हैं। इसे पहले बंद कर दें। हमारे लिए सिर्फ यह तय नहीं कर सकते क्योंकि पथराव किया जा रहा है। हमने काफी दंगे देखे हैं। यह तब तय करना होगा जब चीजें शांत हों। हम कुछ भी तय कर सकते हैं। दंगे रुकने दो। सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट किया जा रहा है। कोर्ट अभी कुछ नहीं कर सकता है, दंगों को रोकें। चीफ जस्टिस ने कहा कि अगर विरोध प्रदर्शन ऐसे ही चले और सार्वजनिक संपत्तियों को नष्ट किया गया तो हम कुछ नहीं करेंगे।उन्होंने कहा कि अगर हिंसा रोकी जाती है तो कोर्ट मंगलवार को इस मामले की सुनवाई करेगा।चीफ जस्टिस ने कहा कि कोर्ट को “तंग” नहीं किया जा सकता।

जामिया मिल्लिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रों के खिलाफ व्यापक पुलिस अत्याचार की खबरें हैं जो नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। पुलिस लाठीचार्ज में कई छात्र घायल हो गए। कई को रविवार रात हिरासत में ले लिया गया। छात्रों ने मीडिया को बताया कि पुलिस पुस्तकालय में भी घुस गई और उसके अंदर आंसू गैस के गोले दागे, और वहां बैठे लोगों पर हमला किया।

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जामिया के मुख्य प्रॉक्टर ने पुलिस पर बल और छात्रों और कर्मचारियों की पिटाई करके अपने परिसर में प्रवेश करने का आरोप लगाया। ह्रुमन राइट नेटवर्क एक याचिका दायर कर रहा है जिसमें घायल छात्रों को चिकित्सा सहायता और मुआवजा प्रदान करने, उनके खिलाफ आपराधिक आरोपों को रद्द करने के निर्देश मांगे गए हैं।

इस बीच नागरिकता अधिनियम के खिलाफ कल जामिया में हुए प्रदर्शन के दौरान चलने वाली पुलिस की गोलियों के भी सबूत सामने आ गए हैं। इनमें न केवल गोलियों के चलने की आवाजें हैं बल्कि उन युवाओं को भी देखा जा सकता है जिन्हें गोलियां लगी हैं। इसी तरह का एक वीडियो सामने आया है जिसमें छात्रों-युवाओं और पुलिस के जवानों के बीच पथराव हो रहा है। उसी समय पीछे से फायरिंग की आवाज आती है।

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आवाजें सुनने के बाद छात्र पीछे भागने लगते हैं। उसी समय एक छात्र घायल होकर गिर जाता है। उसके यह बताने पर कि गोली लगी है उसके बाकी साथी एंबुलेंस बुलाने की गुहार लगाना शुरू कर देते हैं। इसी तरह का एक दूसरा वीडियो भी सामने आया है जिसमें पुलिस को बाकायदा फायरिंग करते हुए देखा जा सकता है। लेकिन यह बात अभी तक सामने नहीं आ पायी है कि आखिर पुलिस ने यह फायरिंग किसके आदेश पर की है।

इस बीच, रात में पुलिस ने जामिया विश्वविद्यालय के सैकड़ों छात्रों को गिरफ्तार कर लिया था। इनमें से ढेर सारे छात्रों को गंभीर चोटें आयी थीं। लेकिन पुलिस उन्हें अस्पताल नहीं ले जा रही थी। बाद में दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष जफरुल इस्लाम खान ने अपने पैड पर इमरजेंसी आर्डर के जरिये कालका जी पुलिस स्टेशन के एसएचओ को तत्काल सभी छात्रों को छोड़ने का निर्देश दिया। साथ ही उसमें घायलों को तत्काल अस्पताल भेजे जाने की बात शामिल थी।

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इस्लाम ने अपने आदेश में कहा था कि इस आदेश का पालन न करने पर कालकाजी पुलिस स्टेशन के एसएचओ व्यक्तिगत तौर पर जिम्मेदार होंगे। इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि एक अर्ध न्यायिक संस्था के आदेश का पालन न करने के जो भी कानूनी नतीजे होंगे वे उन्हें भुगतने पड़ेंगे। इस आदेश के बाद लगभग 100 छात्रों को आस-पास के पुलिस स्टेशनों से छोड़ दिया गया।

वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट.

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