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सियासत

चीफ जस्टिस यौन शोषण केस की प्रक्रिया पर जस्टिस ए पी शाह ने ने उठाए सवाल

जेपी सिंह

जज बृजगोपाल लोया की संदिग्ध मौत पर सवाल उठाने वाले न्यायपालिका से जुड़े पहले व्यक्ति लॉ कमिशन के पूर्व चेयरमैन एवं दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस ए पी शाह ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई पर यौन शोषण मामले में जैसी प्रक्रिया अपनाई गई उस पर नाराजगी जताई है।जस्टिस शाह ने जस्टिस गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न मामले की जांच में इन हाउस कमेटी द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया को संदिग्घ करार दिया। उच्चतम न्यायालय की एक पूर्व कर्मचारी ने चीफ जस्टिस पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था, जिसमें जांच कमेटी ने उन्हें क्लीन चिट दे दी थी।

जस्टिस शाह ने कहा कि इस केस में पूरी प्रक्रिया न्यायपालिका की स्वतंता के नाम पर बहुत गोपनीय तरीके से की गई। जस्टिस शाह ने कहा कि न्यायपालिका का सिद्धांत है कि अपने मामले में कोई शख्स खुद न्यायधीश नहीं बन सकता। पिछले तीन चीफ जस्टिस ने न्यायपालिका के मौलिक सिद्धांत का उल्लंघन किया है।

जस्टिस शाह ने यहां 27वें रोसलिंड विल्सन मेमोरियल लेक्चर में कहा कि हमें मजबूत तंत्र की जरूरत है, ताकि भविष्य में इस तरह के मामलों से अलग और बेहतर तरीके से निपटा जा सके।जस्टिस शाह ने कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता के नाम पर पूरी प्रक्रिया ‘गोपनीयता में डूबी’ हुई थी। उन्होंने कहा कि आरोपों की सच्चाई या झूठ पर निर्णय पारित किए बिना, मैं यह स्वीकार करता हूं कि कुछ ऐसे निश्चित तथ्य हैं जिस पर विचार किया जाना चाहिए।

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जस्टिस शाह ने कहा कि चीफ जस्टिस के खिलाफ आरोप सामने आने के बाद बिना किसी याचिका के उच्च न्यायालय में शनिवार के दिन सुनवाई हुई थी। उन्होंने 20 अप्रैल को हुई सुनवाई का जिक्र किया। इसमें चीफ जस्टिस ने अपने खिलाफ लगे मामले की सुनवाई की थी और आरोपों को अविश्वसनीय करार देते हुए कहा था कि इसके पीछे बड़ी साजिश है।शिकायतकर्ता को वकील द्वारा प्रतिनिधित्व करने की अनुमति नहीं दी गई और आंतरिक प्रक्रिया के बारे में उसे समझाया नहीं गया.।उन्होंने कहा कि संपूर्ण प्रक्रिया को न्यायिक स्वतंत्रता की सुरक्षा के नाम पर गोपनीयता में बदल दिया गया। यह सब भारत में न्यायाधीशों के लिए जवाबदेही प्रणाली पर फिर से गौर करने की मांग करती है, और कई सवाल उठाती है।

जस्टिस शाह ने कहा कि न्यायाधीशों के दिमाग में कोई पूर्व-निर्धारित नैतिक कोड नहीं होता है, जो कुर्सी पर बैठने के दौरान उनके व्यवहार को निर्धारित करता है।वास्तव में, वे वकील, वादी, प्रतिवादी, अपराधी, गवाह और पुलिस की तरह ही इंसान हैं।उन्होंने कहा, केवल उनके कार्यालय की प्रकृति के कारण उन्हें नैतिक होने का अधिकार प्रदान कर देना झूठा और बहुत ही खतरनाक है।उनके पूरे जीवन में उन्हें यह लगातार याद दिलाया जाना चाहिए कि सही व्यवहार क्या है ताकि उनके ऊपर जिस निष्पक्ष न्याय की जिम्मेदारी डाली गई है अपनी उस भूमिका से वे कभी समझौता न करें। न्यायपालिका का यही एकमात्र और अंतिम लक्ष्य है।

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जस्टिस शाह ने कहा कि दुखद रूप से जिस तरह से इस मामले में हुआ उस तरह से किसी भी मामले में चीफ जस्टिस को अपवाद नहीं माना जा सकता है।कोई भी जवाबदेही प्रणाली निश्चित तौर पर बिना किसी भेदभाव के सभी जजों पर लागू होनी चाहिए।कानून और प्रक्रिया को इस बात के साथ भी जोड़ना चाहिए कि विशाखा दिशानिर्देश न्यायपालिका पर कैसे लागू किए जा सकते हैं और इसी तरह सूचना का अधिकार किस हद तक लागू है।

पूर्व चीफ जस्टिस शाह अपनी साफगोई और खरी खरी बात करने के लिए जाने जाते हैं।एक साक्षात्कार में न्यायपालिका से जुड़े पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने 48 वर्षीय जज बृजगोपाल लोया की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत के बारे में बात की।बृजगोपाल लोया की मृत्यु 1 दिसम्बर 2014 में हुई थी, जिस समय वे सीबीआई के स्पेशल कोर्ट में सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह समेत गुजरात पुलिस के आला अधिकारियों के ख़िलाफ़ सुनवाई कर रहे थे।

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जस्टिस शाह ने कहा था कि यह ज़रूरी है कि हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस स्वयं इस मामले का संज्ञान लें और यह फैसला करें कि जांच होनी चाहिए या नहीं।क्योंकि अगर इन आरोपों की जांच नहीं कि गई तो ये न्यायपालिका की साख पर कलंक लगने जैसा होगा।जस्टिस शाह ने कहा कि न्यायपालिका में लोगों का विश्वास बनाए रखने के लिए ऐसा होना ज़रूरी है।लोया को एक ईमानदार और सच्चा जज बताते हुए जस्टिस शाह ने कहा था कि परिवार द्वारा लगाये गये आरोपों की जांच न करना न्यायपालिका, खासकर निचले कैडर के लिए बेहद गलत संकेत होगा।

मेडिकल कॉलेज रिश्वत मामले की ओर इशारा करते हुए जस्टिस शाह ने कहा था कि हाल ही में न्यायपालिका पर कई गंभीर आरोप लगे हैं। जनता का न्याय व्यवस्था में भरोसा बनाए रखने के लिए ज़रूरी है कि ऐसे मामलों की जांच की जाये।ऐसे मामलों में जहां जांच करने के लिए प्रथम दृष्टया सामग्री उपलब्ध हो, वहां जांच का आदेश देना बेहद ज़रूरी है.।न्यायपालिका इस देश की सर्वोच्च संस्था है, लोग इस पर सबसे ज़्यादा भरोसा करते हैं। इस संस्था या इससे जुड़े किसी भी व्यक्ति के किसी गलत काम में लिप्त होने पर बात होनी चाहिए।

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वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार जेपी सिंह की रिपोर्ट.

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